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गोभिल धर्मशास्त्रीय क्षेत्र के ऋषि। इनका संबंध सामवेद से माना जाता है। वैदिकों में यह प्रसिद्धि है कि इस वेद की कौथुमशाखा का गृह्यसूत्र गोभिल गृह्यसूत्र है। यह भी अस प्रसंग में विचार्य है कि हेमाद्रि ने श्राद्ध कल्प में गोभिल का राणायनीय सूत्रकृत् माना है। गोभिलगृह्य गौतम धर्मसूत्र के बाद का है, क्योंकि इसमें गौतम को प्रमाणपुरुष माना गया है। गौतम धर्मसूत्र भी सामवेदी है और गोभिलगृह्य भी सामवेदियों का ही है।<ref>तंत्रवार्त्तिक 1- | {{भारतकोश पर बने लेख}} | ||
गोभिल धर्मशास्त्रीय क्षेत्र के ऋषि। इनका संबंध सामवेद से माना जाता है। वैदिकों में यह प्रसिद्धि है कि इस वेद की कौथुमशाखा का गृह्यसूत्र गोभिल गृह्यसूत्र है। यह भी अस प्रसंग में विचार्य है कि हेमाद्रि ने श्राद्ध कल्प में गोभिल का राणायनीय सूत्रकृत् माना है। गोभिलगृह्य गौतम धर्मसूत्र के बाद का है, क्योंकि इसमें गौतम को प्रमाणपुरुष माना गया है। गौतम धर्मसूत्र भी सामवेदी है और गोभिलगृह्य भी सामवेदियों का ही है।<ref>तंत्रवार्त्तिक 1-3-11</ref> इस सूत्रग्रंथ पर चंद्रकांत तर्कालंकार का भाष्य मुद्रित हो चुका है। इसके साथ गोभिल परिशिष्ट भी है<ref>बी.आई.सिरीज़</ref> एस.बी.ई., खंड 30 में इसका अंग्रेजी अनुवाद है। इस गृह्यसूत्र पर भट्टनारायणकृत भाष्य भी है। इसका यशोधरकृत भाष्य भी था, जिसका उद्धरण निबंधग्रंथों में मिलता है। | |||
गोभिलस्मृति भी प्रसिद्ध है। इसका नामांतर कर्मप्रदीप है। यह कात्यायनकृत माना जाता है। यह मुद्रित है (आनंदाश्रम संस्क.)। कहीं कहीं यह कात्यायनस्मृति भी कहलाता है (स्मृतिसंग्रह भाग 1, जीवानंद.)। एक गोभिलीय श्राद्धकल्प भी है। गोभिलनाम घटित अन्यान्य ग्रंथों के लिये काणेकृत हिस्ट्री ऑव द धर्मशास्त्र<ref>भाग 1, पृ. | गोभिलस्मृति भी प्रसिद्ध है। इसका नामांतर कर्मप्रदीप है। यह कात्यायनकृत माना जाता है। यह मुद्रित है (आनंदाश्रम संस्क.)। कहीं कहीं यह कात्यायनस्मृति भी कहलाता है (स्मृतिसंग्रह भाग 1, जीवानंद.)। एक गोभिलीय श्राद्धकल्प भी है। गोभिलनाम घटित अन्यान्य ग्रंथों के लिये काणेकृत हिस्ट्री ऑव द धर्मशास्त्र<ref>भाग 1, पृ. 542-543 </ref>द्रष्टव्य है। गोभिल गृह्यकर्मप्रकाशिका ग्रंथ भी है ।<ref>सुब्रह्मण्य शास्त्रिकृत</ref> यह अप्राचीन ग्रंथ है। | ||
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१२:४३, ९ जनवरी २०१४ के समय का अवतरण
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गोभिल धर्मशास्त्रीय क्षेत्र के ऋषि। इनका संबंध सामवेद से माना जाता है। वैदिकों में यह प्रसिद्धि है कि इस वेद की कौथुमशाखा का गृह्यसूत्र गोभिल गृह्यसूत्र है। यह भी अस प्रसंग में विचार्य है कि हेमाद्रि ने श्राद्ध कल्प में गोभिल का राणायनीय सूत्रकृत् माना है। गोभिलगृह्य गौतम धर्मसूत्र के बाद का है, क्योंकि इसमें गौतम को प्रमाणपुरुष माना गया है। गौतम धर्मसूत्र भी सामवेदी है और गोभिलगृह्य भी सामवेदियों का ही है।[१] इस सूत्रग्रंथ पर चंद्रकांत तर्कालंकार का भाष्य मुद्रित हो चुका है। इसके साथ गोभिल परिशिष्ट भी है[२] एस.बी.ई., खंड 30 में इसका अंग्रेजी अनुवाद है। इस गृह्यसूत्र पर भट्टनारायणकृत भाष्य भी है। इसका यशोधरकृत भाष्य भी था, जिसका उद्धरण निबंधग्रंथों में मिलता है।
गोभिलस्मृति भी प्रसिद्ध है। इसका नामांतर कर्मप्रदीप है। यह कात्यायनकृत माना जाता है। यह मुद्रित है (आनंदाश्रम संस्क.)। कहीं कहीं यह कात्यायनस्मृति भी कहलाता है (स्मृतिसंग्रह भाग 1, जीवानंद.)। एक गोभिलीय श्राद्धकल्प भी है। गोभिलनाम घटित अन्यान्य ग्रंथों के लिये काणेकृत हिस्ट्री ऑव द धर्मशास्त्र[३]द्रष्टव्य है। गोभिल गृह्यकर्मप्रकाशिका ग्रंथ भी है ।[४] यह अप्राचीन ग्रंथ है।