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अपामार्ग
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1 |
पृष्ठ संख्या | 140,141 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पाण्डेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1973 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
अपामार्ग एमरैंथेसी परिवार का एक पौघा है। इसका वानस्पतिक नाम एकाइरैंथेस ऐस्पेरा हैं। यह ऊष्ण शीतोष्ण कटिबंध में उपलब्ध एक शाक है। यह एशिया, अफ्रीका, आस्ट्रेलिया तथा अमेरिका के ऊष्ण प्रदेशों में पाया जाता है। पूरे भारतवर्ष, श्रीलंका तथा सभी सूखे स्थानों में, जहाँ की मिट्टी में पानी की मात्रा कम पाई जाती है यह पौधा मिलता हैं। एकाइरैंथेस की कई जातियाँ होती हैं। पौधे की लंबाई एक से तीन फुट तक और पत्तियों की लंबाई एक से पाँच इंच तक होती है। इसका तना शाखान्वित होता है। पत्रदल की सतह मखमली और कभी-कभी चिकनी भी होती है। तने पर एक ही स्थान से दो पतियाँ विपरीत दिशा मे निकलती हैं।
पुष्प छोटे 1/4-1/6 इंच तक लंबे तथा हरापन लिए हुए सफेद रंग के होते हैं। निपत्र तथा ब्रैक्टियोल पुष्प से छोटे होते हैं। यह उभयलिंगी तथा चिरलग्न होता है।
बीच आयताकार और बीजकवच चमकीला होता है। इस पौधे को औषधि के रूप में प्रयोग किया जाता हैं। गर्मी के कारण हुए धावों मे इसकी जड़ के चूर्ण को अफीम मे साथ मिलाकर सेवन किया जाता हैं। संग्रहणी तथा आँव में भी इसका प्रयोग किया जाता है। पत्तियों का रस पेट के दर्द में लाभदायक है। अधिक मात्रा देने से गर्भपात हो जाता है।
चित्र : अपामार्ग का स्पाइक सहित एक भाग
इसके बीज को पानी में पीसकर साँप के काटने पर लगाने से विष का असर कम हो जाता है। बलगम पैदा होने पर इसकी थोड़ी मात्रा का उपयोग लाभकर होता है। इसके बीज से बनाई गई खीर मस्तिष्क रोगों में लाभदायक है। हडक (हाइड्रोफोबिया) में भी इसका प्रयोग होता है। वमन की बीमरियों तथा कोढ़ में इसके बीज का प्रयोग किया जाता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ