"ईशानवर्मन": अवतरणों में अंतर
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'''ईशानवर्मन''' [[कन्नौज]] के [[मौखरि वंश]] का राजा था। उसके पहले के तीन राजा अधिकतर उत्तर युगीन मागध गुप्तों के सामंत नृपति रहे थे। | '''ईशानवर्मन''' [[कन्नौज]] के [[मौखरि वंश]] का राजा था। उसके पहले के तीन राजा अधिकतर उत्तर युगीन मागध गुप्तों के सामंत नृपति रहे थे। | ||
*ईशानवर्मन ने उत्तर गुप्तों का आधिपत्य कन्नौज से हटाकर अपनी स्वतंत्रता घोषित कर ली थी। | *ईशानवर्मन ने उत्तर गुप्तों का आधिपत्य कन्नौज से हटाकर अपनी स्वतंत्रता घोषित कर ली थी। | ||
*उसकी प्रशस्ति में लिखा है कि- "उसने आन्ध्रों को परास्त किया और गौड़ों को अपनी सीमा के भीतर रहने के लिए मजबूर कर दिया। इसमें संदेह नहीं कि यह प्रशस्ति मात्र प्रशस्ति है, क्योंकि ईशानवर्मन् के आन्ध्रों अथवा गौड़ राजा के संपर्क में आने की संभावना अत्यंत कम थी। | *उसकी प्रशस्ति में लिखा है कि- "उसने आन्ध्रों को परास्त किया और गौड़ों को अपनी सीमा के भीतर रहने के लिए मजबूर कर दिया। इसमें संदेह नहीं कि यह प्रशस्ति मात्र प्रशस्ति है, क्योंकि ईशानवर्मन् के आन्ध्रों अथवा गौड़ राजा के संपर्क में आने की संभावना अत्यंत कम थी। | ||
*गौड़ों और मौखरियों के बीच तो स्वयं उत्तर कालीन गुप्त ही थे, जिनके राजा [[कुमारगुप्त]] ने, जैसा कि उसके [[अभिलेख]] से विदित होता है, ईशानवर्मन को परास्त कर उसके राज्य का कुछ भाग छीन लिया था।<ref>औंकारनाथ उपाध्याय, हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 2, पृष्ठ संख्या | *गौड़ों और मौखरियों के बीच तो स्वयं उत्तर कालीन गुप्त ही थे, जिनके राजा [[कुमारगुप्त]] ने, जैसा कि उसके [[अभिलेख]] से विदित होता है, ईशानवर्मन को परास्त कर उसके राज्य का कुछ भाग छीन लिया था।<ref>औंकारनाथ उपाध्याय, हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 2, पृष्ठ संख्या 38</ref> | ||
==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== |
०६:४६, ३० जून २०१८ के समय का अवतरण
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ईशानवर्मन कन्नौज के मौखरि वंश का राजा था। उसके पहले के तीन राजा अधिकतर उत्तर युगीन मागध गुप्तों के सामंत नृपति रहे थे।
- ईशानवर्मन ने उत्तर गुप्तों का आधिपत्य कन्नौज से हटाकर अपनी स्वतंत्रता घोषित कर ली थी।
- उसकी प्रशस्ति में लिखा है कि- "उसने आन्ध्रों को परास्त किया और गौड़ों को अपनी सीमा के भीतर रहने के लिए मजबूर कर दिया। इसमें संदेह नहीं कि यह प्रशस्ति मात्र प्रशस्ति है, क्योंकि ईशानवर्मन् के आन्ध्रों अथवा गौड़ राजा के संपर्क में आने की संभावना अत्यंत कम थी।
- गौड़ों और मौखरियों के बीच तो स्वयं उत्तर कालीन गुप्त ही थे, जिनके राजा कुमारगुप्त ने, जैसा कि उसके अभिलेख से विदित होता है, ईशानवर्मन को परास्त कर उसके राज्य का कुछ भाग छीन लिया था।[१]
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ औंकारनाथ उपाध्याय, हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 2, पृष्ठ संख्या 38