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०७:०५, ५ जुलाई २०१८ के समय का अवतरण

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उदयन चंद्र वंश का राजा और सहस्रानीक का पुत्र था। यह वत्स देश का राजा था, जिसकी राजधानी कौशांबी थी। कौशांबी, इलाहाबाद में नगर से प्राय: 35 मील की दूरी पर पश्चिम में बसी थी, जहाँ आज भी यमुना नदी के किनारे कोसम गाँव में उसके खंडहर उपस्थित हैं।

प्रसिद्धि

उदयन संस्कृत साहित्य की परंपरा में महान प्रणयी हो गया है और उसकी उस साहित्य में स्पेनी साहित्य के प्रिय नायक दोन जुआन से भी अधिक प्रसिद्धि है। बार-बार संस्कृत के कवियों, नाटयकारों और कथाकारों ने उसे अपनी रचनाओं का नायक बनाया है और उसकी लोकप्रियता के परिणामस्वरूप गाँवों में लोग निंरतर उसकी कथा प्राचीन काल में कहते रहे हैं। महाकवि भास ने अपने दो दो नाटकों- 'स्वप्नवासवदत्ता' और 'प्रतिज्ञायौगंधरायण' में उसे अपने कथानक का नायक बनाया है। वत्सराज की कथा 'बृहत्कथा' और सोमदेव के 'कथासरित्सागर' में भी वर्णित है। इन कृतियों से प्रकट है कि उदयन वीणा के वादन में अत्यंत कुशल था और अपने उसी व्यसन के कारण उसे उज्जयिनी में अवंतिराज चंडप्रद्योत महासेन का कारागार भी भोगना पड़ा। भास के नाटक के अनुसार वीणा बजाकर हाथी पकड़ते समय छदमगज द्वारा अवंतिराज ने उसे पकड़ लिया था। बाद में उदयन प्रद्योत की कन्या वासवदत्ता के साथ हथिनी पर चढ़कर वत्स भाग गया। उस पलायन का दृश्य द्वितीय शती ईसवी पूर्व के शुंग कालीन मिट्टी के ठीकरों पर खुदा हुआ मिला है। ऐसा ठीकरा 'काशी विश्वविद्यालय' के भारत-कला-भवन में भी सुरक्षित है। कला और साहित्य के इस परस्परावलंबन से राजा की ऐतिहासिकता पुष्ट होती है।

ऐतिहासिक व्यक्ति

वत्सराज उदयन नि:संदेह ऐतिहासिक व्यक्ति था और उसका उल्लेख साहित्य और कला के अतिरिक्त पुराणों और बौद्ध ग्रंथों में भी हुआ है। उदयन बुद्ध का समकालीन था और उसने तथा उसके पुत्र बोधी, दोनों ने तथागत के उपदेश सुने थे। बौद्ध ग्रंथों में वर्णित कौशांबी के बुद्ध के आवास पुनीत घोषिताराम से कौशांबों की खुदाई में उस स्थान की नामांकित पट्टिका अभी मिली है। उदयन ने मगध के राजा दर्शक की भगिनी 'पद्मावती' और अंग के राजा दृढ़वर्मा की कन्या को भी, वासवदत्ता के अतिरिक्त, संभवत: ब्याहा था। बुद्धकालीन जिन चार राजवंशों- मगध, कोशल, वत्स, अवंति, में परस्पर दीर्घकालीन संघर्ष चला था, उन्हीं में उदयन का वत्स भी था, जो कालांतर में अवंति की बढ़ती हुई सीमाओं में समा गया।

हाल में जो प्राचीन भारत का पुनर्जागरण हुआ है, उसके परिणामस्वरूप उदयन को नायक बनाकर की प्राय: सभी भाषाओं में नाटक और कहानियाँ लिखी गई हैं। इससे प्रकट है कि वत्सराज की साहित्यिक महिमा घटी नहीं और वह नित्यप्रति साहित्यकारों में आज भी लोकप्रिय होता जा रहा है।[१]


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भगवत शरण उपाध्याय, हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 2, पृष्ठ संख्या 90