"गोमेध": अवतरणों में अंतर
नेविगेशन पर जाएँ
खोज पर जाएँ
[अनिरीक्षित अवतरण] | [अनिरीक्षित अवतरण] |
Bharatkhoj (वार्ता | योगदान) छो (Text replace - "३" to "3") |
Bharatkhoj (वार्ता | योगदान) No edit summary |
||
(इसी सदस्य द्वारा किए गए बीच के ७ अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति १: | पंक्ति १: | ||
*गोमेध यज्ञविशेष। इस यज्ञ में गो का आलंभन किया जाता है, अत: इसके लिये गवालंभ शब्द भी प्रयुक्त होता है। पहले अनेक अवसरों पर गो या वृष का वध किया जाता था, (हिस्ट्री ऑव धर्मशास्त्र, भाग 2, पृ. | {{भारतकोश पर बने लेख}} | ||
*श्राद्ध में भी गोवध का प्रसंग है। शूलगव में भी वृषवध उल्लिखित हुआ है।<ref>वही, भाग 2, पृ. | *गोमेध यज्ञविशेष। इस यज्ञ में गो का आलंभन किया जाता है, अत: इसके लिये गवालंभ शब्द भी प्रयुक्त होता है। पहले अनेक अवसरों पर गो या वृष का वध किया जाता था, (हिस्ट्री ऑव धर्मशास्त्र, भाग 2, पृ. 627)। मधुपर्क में गोवध भी बहुधा कहा गया है।<ref>वही, भाग 2, पृ. 543-545</ref> | ||
*श्राद्ध में भी गोवध का प्रसंग है। शूलगव में भी वृषवध उल्लिखित हुआ है।<ref>वही, भाग 2, पृ.831-532</ref>बाद में ये कर्म कलिवर्ज्य मान लिए गए हैं।<ref>वही, भाग 3, पृ. 939-940</ref> | |||
*गोमेध या गोसव के विशिष्ट विवरण अनेकत्र हैं, जिससे यह निश्चित होता है कि प्राचीनकाल में यज्ञ में गोवध वैध रूप से किया जाता था। बाद में हानि देखकर क्रमश: यह प्रथा त्याज्य हो गई। चरकसंहिता सदृश प्रामाणिक ग्रंथ में यज्ञीय गोवध पर कहा गया है कि पृष्घ्रा ने पहले गोवध किया था। | *गोमेध या गोसव के विशिष्ट विवरण अनेकत्र हैं, जिससे यह निश्चित होता है कि प्राचीनकाल में यज्ञ में गोवध वैध रूप से किया जाता था। बाद में हानि देखकर क्रमश: यह प्रथा त्याज्य हो गई। चरकसंहिता सदृश प्रामाणिक ग्रंथ में यज्ञीय गोवध पर कहा गया है कि पृष्घ्रा ने पहले गोवध किया था। | ||
*गोमेध और पशुयज्ञसंबंधी विशिष्ट तथ्य इतिहासपुराणों में हैं और पूर्वव्याख्याकारों ने उसे गोपशु का साक्षात् वध ही माना है। | *गोमेध और पशुयज्ञसंबंधी विशिष्ट तथ्य इतिहासपुराणों में हैं और पूर्वव्याख्याकारों ने उसे गोपशु का साक्षात् वध ही माना है। | ||
*एक गोसव नामक एकाह सोमयज्ञ है।<ref> तै.ब्रा. 2/ | *एक गोसव नामक एकाह सोमयज्ञ है।<ref> तै.ब्रा. 2/7/6 </ref>इस यज्ञ का विचित्र वर्णन है। वत्सर पर्यंत इस कर्म को करनेवाला पशुव्रत पदवाच्य होता है।<ref>आ.श्रौ.सू.</ref>गोसव संबंधी विवरण यज्ञतत्वप्रकाश में द्रष्टव्य है।<ref> पृ. 124</ref> | ||
१३:३०, २६ फ़रवरी २०१४ के समय का अवतरण
चित्र:Tranfer-icon.png | यह लेख परिष्कृत रूप में भारतकोश पर बनाया जा चुका है। भारतकोश पर देखने के लिए यहाँ क्लिक करें |
- गोमेध यज्ञविशेष। इस यज्ञ में गो का आलंभन किया जाता है, अत: इसके लिये गवालंभ शब्द भी प्रयुक्त होता है। पहले अनेक अवसरों पर गो या वृष का वध किया जाता था, (हिस्ट्री ऑव धर्मशास्त्र, भाग 2, पृ. 627)। मधुपर्क में गोवध भी बहुधा कहा गया है।[१]
- श्राद्ध में भी गोवध का प्रसंग है। शूलगव में भी वृषवध उल्लिखित हुआ है।[२]बाद में ये कर्म कलिवर्ज्य मान लिए गए हैं।[३]
- गोमेध या गोसव के विशिष्ट विवरण अनेकत्र हैं, जिससे यह निश्चित होता है कि प्राचीनकाल में यज्ञ में गोवध वैध रूप से किया जाता था। बाद में हानि देखकर क्रमश: यह प्रथा त्याज्य हो गई। चरकसंहिता सदृश प्रामाणिक ग्रंथ में यज्ञीय गोवध पर कहा गया है कि पृष्घ्रा ने पहले गोवध किया था।
- गोमेध और पशुयज्ञसंबंधी विशिष्ट तथ्य इतिहासपुराणों में हैं और पूर्वव्याख्याकारों ने उसे गोपशु का साक्षात् वध ही माना है।
- एक गोसव नामक एकाह सोमयज्ञ है।[४]इस यज्ञ का विचित्र वर्णन है। वत्सर पर्यंत इस कर्म को करनेवाला पशुव्रत पदवाच्य होता है।[५]गोसव संबंधी विवरण यज्ञतत्वप्रकाश में द्रष्टव्य है।[६]