"कुंभनदास": अवतरणों में अंतर
नेविगेशन पर जाएँ
खोज पर जाएँ
[अनिरीक्षित अवतरण] | [अनिरीक्षित अवतरण] |
Bharatkhoj (वार्ता | योगदान) छो (Text replace - "४" to "4") |
Bharatkhoj (वार्ता | योगदान) No edit summary |
||
(इसी सदस्य द्वारा किए गए बीच के ५ अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति १: | पंक्ति १: | ||
*कुंभनदास ( | {{भारतकोश पर बने लेख}} | ||
*कुंभनदास (1468-1582) पुष्टमार्गी अष्टछाप के प्रमुख कवि और बल्लभाचार्य के शिष्य। | |||
*इनका जन्म गोवर्धन के निकट जमुनावतो ग्राम के एक निर्धन क्षत्रिय कुल में हुआ था। | *इनका जन्म गोवर्धन के निकट जमुनावतो ग्राम के एक निर्धन क्षत्रिय कुल में हुआ था। | ||
*खेती इनका धंधा था। | *खेती इनका धंधा था। | ||
* | *1492 इ. में पुष्टिमार्ग में दीक्षित हुए और श्रीनाथ जी के मंदिर में कीर्तनकार के रूप में नियुक्त हुए। | ||
*इस पद पर नियुक्त होने के बाद भी वे अपना जीविकापोर्जन खेती से ही करते रहे। | *इस पद पर नियुक्त होने के बाद भी वे अपना जीविकापोर्जन खेती से ही करते रहे। | ||
*निर्धनता सहन करते रहे पर कभी किसी का दान स्वीकार नहीं किया। | *निर्धनता सहन करते रहे पर कभी किसी का दान स्वीकार नहीं किया। | ||
पंक्ति ९: | पंक्ति १०: | ||
*अपनी खेती के अन्न, करील के फूल, र्टेटी और झड़बेरों से ही संतुष्ट रहकर श्रीनाथ जी की सेवा करते रहे। | *अपनी खेती के अन्न, करील के फूल, र्टेटी और झड़बेरों से ही संतुष्ट रहकर श्रीनाथ जी की सेवा करते रहे। | ||
*इन्हें निकुंज लीला का रस अर्थात् मधुरभाव की भक्ति प्रिय थी। | *इन्हें निकुंज लीला का रस अर्थात् मधुरभाव की भक्ति प्रिय थी। | ||
*इनके रचे गए लगभग | *इनके रचे गए लगभग 500 पद उपलब्ध है जिनमें आठ पहर की सेवा तथा वर्षोत्सवों के लिये रचे गए पद ही अधिक है। | ||
०९:१४, २५ जुलाई २०१८ के समय का अवतरण
चित्र:Tranfer-icon.png | यह लेख परिष्कृत रूप में भारतकोश पर बनाया जा चुका है। भारतकोश पर देखने के लिए यहाँ क्लिक करें |
- कुंभनदास (1468-1582) पुष्टमार्गी अष्टछाप के प्रमुख कवि और बल्लभाचार्य के शिष्य।
- इनका जन्म गोवर्धन के निकट जमुनावतो ग्राम के एक निर्धन क्षत्रिय कुल में हुआ था।
- खेती इनका धंधा था।
- 1492 इ. में पुष्टिमार्ग में दीक्षित हुए और श्रीनाथ जी के मंदिर में कीर्तनकार के रूप में नियुक्त हुए।
- इस पद पर नियुक्त होने के बाद भी वे अपना जीविकापोर्जन खेती से ही करते रहे।
- निर्धनता सहन करते रहे पर कभी किसी का दान स्वीकार नहीं किया।
- कहते हैं कि एक बार राजा मानसिंह ने इन्हें सोने की आरसी और एक हजार मोहरों की थैली भेंट करना चाहा पर उन्होंने उसे अस्वीकार कर दिया।
- जमुनावतो गाँव की माफी भी इन्हें दी जा रही थी पर उन्होंने नहीं लिया।
- अपनी खेती के अन्न, करील के फूल, र्टेटी और झड़बेरों से ही संतुष्ट रहकर श्रीनाथ जी की सेवा करते रहे।
- इन्हें निकुंज लीला का रस अर्थात् मधुरभाव की भक्ति प्रिय थी।
- इनके रचे गए लगभग 500 पद उपलब्ध है जिनमें आठ पहर की सेवा तथा वर्षोत्सवों के लिये रचे गए पद ही अधिक है।
टीका टिप्पणी और संदर्भ