"महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 28 श्लोक 19-30": अवतरणों में अंतर
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== | ==अष्टाविंश (28) अध्याय: द्रोण पर्व (संशप्तकवध पर्व )== | ||
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: | <div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: द्रोण पर्व: अष्टाविंश अध्याय: श्लोक 19-30 का हिन्दी अनुवाद</div> | ||
उन महारथियों ने अपने हृदय से भय को निकालकर अर्जुन को वहां घेर लिया । युद्धमें समस्त भारों को सहन करनेवाले अर्जुन उनसे लड़ने का भारी भार भी अपने ही ऊपर ले लिया। जैसे साठ वर्षका मदस्त्रावी हाथी क्रोध में भरकर नरकुलों के जगंल को रौदकर धूल में मिला देता है, उसी प्रकार प्रयत्नशील पार्थ ने आपकी सेना को मटियामेट कर दिया। उस सेना के भय डाले जाने पर राजा भगदत्त ने उसी सुप्रतीक हाथी के द्वारा सहसा धनंजय पर धावा किया। नरश्रेष्ठ अर्जुन ने रथ के द्वारा ही उस हाथी का सामना किया । रथ और हाथी का वह संघर्ष बड़ा भयंकर था। शास्त्रीय विधि के अनुसार निर्मित और सुसज्जित रथ तथा सुशिक्षित हाथी के द्वारा वीरवर अर्जुन और भगदत्त संग्रामभूमि में विचरने लगे। तदनन्तर इन्द्र के समान शक्तिशाली राजा भगदत्त अर्जुन पर मेघ-सदृश हाथी से बाण समूहरूपी जलराशि की वर्षा करने लगे। इधर पराक्रमी इन्द्रकुमार अर्जुन ने अपने बाणों की वृष्टि से भगदत्त की बाण वर्षा को अपने मस्तक पहॅुचने के पहले ही छिन्न-भिन्न कर दिया। आर्य ! तदनन्तर प्राग्ज्योतिष नरेश राजा भगदत्त ने भी विपक्षी की उस बाण वर्षा का निवारण करके महाबाहु अर्जुन और श्रीकृष्ण को अपने बाणों से घायल कर दिया। फिर उनके ऊपर बाणों का महान् जाल सा बिछाकर श्रीकृष्ण और अर्जुन दोनों के वध के लिये उस गजराज को आगे बढ़ाया। क्रोध में भरे हुए यमराज के समान उस हाथी को आक्रमण करते देख भगवान श्रीकृष्ण ने तुरंत ही रथ द्वारा उसे दाहिने कर दिया। यद्पि वह महान् गजराज आक्रमण करते समय अपने बहुत निकट आ गया था, तो भी अर्जुन ने धर्म का स्मरण करके सवारों सहित उस हाथी को मृत्यु के अधीन करने की इच्छा नही की *। आदरणीय महाराज ! उस हाथी ने बहुत से हाथियों, रथों और घोड़ों को कुचलकर यमलोक भेज दिया । यह देख अर्जुन को बड़ा क्रोध हुआ। | |||
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">इस प्रकार श्रीमहाभारत द्रोणपर्व के अन्तर्गत संशप्तकवधपर्व में भगदत्तका युद्धविषयक अट्ठाईसवाँ अध्याय पूरा हुआ।</div> | <div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">इस प्रकार श्रीमहाभारत द्रोणपर्व के अन्तर्गत संशप्तकवधपर्व में भगदत्तका युद्धविषयक अट्ठाईसवाँ अध्याय पूरा हुआ।</div> | ||
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ||
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==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
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०४:५४, २९ जुलाई २०१५ के समय का अवतरण
अष्टाविंश (28) अध्याय: द्रोण पर्व (संशप्तकवध पर्व )
उन महारथियों ने अपने हृदय से भय को निकालकर अर्जुन को वहां घेर लिया । युद्धमें समस्त भारों को सहन करनेवाले अर्जुन उनसे लड़ने का भारी भार भी अपने ही ऊपर ले लिया। जैसे साठ वर्षका मदस्त्रावी हाथी क्रोध में भरकर नरकुलों के जगंल को रौदकर धूल में मिला देता है, उसी प्रकार प्रयत्नशील पार्थ ने आपकी सेना को मटियामेट कर दिया। उस सेना के भय डाले जाने पर राजा भगदत्त ने उसी सुप्रतीक हाथी के द्वारा सहसा धनंजय पर धावा किया। नरश्रेष्ठ अर्जुन ने रथ के द्वारा ही उस हाथी का सामना किया । रथ और हाथी का वह संघर्ष बड़ा भयंकर था। शास्त्रीय विधि के अनुसार निर्मित और सुसज्जित रथ तथा सुशिक्षित हाथी के द्वारा वीरवर अर्जुन और भगदत्त संग्रामभूमि में विचरने लगे। तदनन्तर इन्द्र के समान शक्तिशाली राजा भगदत्त अर्जुन पर मेघ-सदृश हाथी से बाण समूहरूपी जलराशि की वर्षा करने लगे। इधर पराक्रमी इन्द्रकुमार अर्जुन ने अपने बाणों की वृष्टि से भगदत्त की बाण वर्षा को अपने मस्तक पहॅुचने के पहले ही छिन्न-भिन्न कर दिया। आर्य ! तदनन्तर प्राग्ज्योतिष नरेश राजा भगदत्त ने भी विपक्षी की उस बाण वर्षा का निवारण करके महाबाहु अर्जुन और श्रीकृष्ण को अपने बाणों से घायल कर दिया। फिर उनके ऊपर बाणों का महान् जाल सा बिछाकर श्रीकृष्ण और अर्जुन दोनों के वध के लिये उस गजराज को आगे बढ़ाया। क्रोध में भरे हुए यमराज के समान उस हाथी को आक्रमण करते देख भगवान श्रीकृष्ण ने तुरंत ही रथ द्वारा उसे दाहिने कर दिया। यद्पि वह महान् गजराज आक्रमण करते समय अपने बहुत निकट आ गया था, तो भी अर्जुन ने धर्म का स्मरण करके सवारों सहित उस हाथी को मृत्यु के अधीन करने की इच्छा नही की *। आदरणीय महाराज ! उस हाथी ने बहुत से हाथियों, रथों और घोड़ों को कुचलकर यमलोक भेज दिया । यह देख अर्जुन को बड़ा क्रोध हुआ।
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