"महाभारत द्रोणपर्व अध्याय 145 श्लोक 84-98": अवतरणों में अंतर
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<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: द्रोणपर्व: पंचत्वारिंशदधिकशततम अध्याय: श्लोक 84-98 का हिन्दी अनुवाद</div> | <div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: द्रोणपर्व: पंचत्वारिंशदधिकशततम अध्याय: श्लोक 84-98 का हिन्दी अनुवाद</div> | ||
हाराज ! कर्ण को इस प्रकार रथहीन हुआ देख अश्वत्थामा ने उस समय उसे रथ पर बैठा लिया और वह पुनः अर्जुन के साथ युद्ध करने लगा। मराज शल्य ने कुन्तीकुमार अर्जुन को तीस बाणों से घायल कर दिया। कृपाचार्य ने भगवान श्रीकृष्ण को बीस बाण मारे और अर्जुन पर बारह बाणों का प्रहार किया। महाराज ! फिर सिन्धुराज ने चार और वृषसेन ने सात बाणों द्वारा श्रीकृष्ण और अर्जुन को पृथक-पृथक घायल कर दिया। इसी प्रकार कुन्तीपुत्र अर्जुन ने भी उन्हें बाणों से बींधकर बदला चुकाया। अर्जुन ने द्रोणपुत्र अश्वत्थामा को चैसठ, मद्रराज शल्य को सौ, सिन्धुराज जयद्रथ को दस, वृषसेन को तीन और कृपाचार्य को बीस बाणों से घायल करके सिंहनाद किया। यह देख सव्यसाची अर्जुन की प्रतिज्ञा को भंग करने की अभिालाषा से आपके वे सभी सैनिक एक साथ संगठित हो तुरंत उन पर टूट पड़े। तदनन्तर अर्जुन ने धृतराष्ट्र के पुत्रों को भयभीत करते हुए सब ओर वारुणास्त्र प्रकट किया। कौरव सैनिक अपने बहुमूल्य रथों द्वारा पाण्डुपुत्र अर्जुन की ओर बढ़े और उन पर बाणों की वर्षा करने लगे। भारत ! सबको मोह में डालने वाले उस अत्यन्त भयंकर तुमुल युद्ध के उपस्थित होने पर भी किरीटधारी राजकुमार अर्जुन तनिक भी मोहित नहीं हुए। वे बाण समूहों की वर्षा करते ही रहे। अप्रमेय शक्तिशाली महामनस्वी सव्यसाची अर्जुन अपना राज्य प्राप्त करना चाहते थे। उन्होंने कौरवों के दिये हुए केशों और बारह वर्षों व भोगे हुए वनवास के कष्टों को स्मरण करते हुए गाण्डीव धनुष से छूटने वाले बाणों द्वारा सम्पूर्ण दिशाओं को आच्छादित कर दिया। आकाश में कितनी ही उल्काएं प्रज्वलित हो उठी और योद्धाओं के मृत शरीरों पर मांस भक्षी पक्षी गिरने लगे; क्योंकि उस समय क्रोध में भरे हुए किरीटधारी अर्जुन पीली प्रत्यन्चा वाले गाण्डीव धनुष के द्वारा शत्रुओं का संहार कर रहे थे। तत्पश्चात् शत्रुसेना को जीतने वाले महायश्स्वी किरीटधारी अर्जुन ने विशाल धनुष के द्वारा बाणों का प्रहार करके उत्तम घोड़ों और श्रेष्ठ हाथियों की पीठ पर बैठे हुए प्रमुख कौरव वीरों को मार गिराया। उस रणक्षेत्र में भयंकर दिखायी देने वाले कितने ही नरेश भारी गदाओं, लोहे के परिधों, तलवारों, शक्तियों और बड़े-बड़े अस्त्र शस्त्रों को हाथ में लेकर कुन्तीनन्दन अर्जुन पर सहसा टूट पड़े। तब यमराज के राज्य की वृद्धि करने वाले अर्जुन ने प्रलयकाल के मेघों के समान गम्भीर ध्वनि करने वाले तथा इन्द्रधनुष के समान प्रतीत होने वाले विशाल गाण्डीव धनुष को हंसते हुए दोनों हाथों से खींचा और आपके सैनिकों को दग्ध करते हुए वे बड़े वेग से आगे बढ़े। महाधनुर्धर वीर अर्जुन ने रथ, हाथी और पैदल समूहों सहित उन कौरव सैनिकों को प्रचण्ड गति से आगे बढ़ते देख उनके सम्पूर्ण आयुधों और जीवन को भी नष्ट करके उन्हें यमराज के राज्य की वृद्धि करने वाला बना दिया। | |||
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">इस प्रकार श्रीमहाभारत द्रोणपर्व के अन्तर्गत जयद्रथवधपर्व में संकुल युद्धविषयक एक सौ पैंतालीसवाँ अध्याय पूरा हुआ</div> | <div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">इस प्रकार श्रीमहाभारत द्रोणपर्व के अन्तर्गत जयद्रथवधपर्व में संकुल युद्धविषयक एक सौ पैंतालीसवाँ अध्याय पूरा हुआ</div> | ||
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१२:१४, २९ जुलाई २०१५ के समय का अवतरण
पंचत्वारिंशदधिकशततम (145) अध्याय: द्रोणपर्व (जयद्रथवध पर्व )
हाराज ! कर्ण को इस प्रकार रथहीन हुआ देख अश्वत्थामा ने उस समय उसे रथ पर बैठा लिया और वह पुनः अर्जुन के साथ युद्ध करने लगा। मराज शल्य ने कुन्तीकुमार अर्जुन को तीस बाणों से घायल कर दिया। कृपाचार्य ने भगवान श्रीकृष्ण को बीस बाण मारे और अर्जुन पर बारह बाणों का प्रहार किया। महाराज ! फिर सिन्धुराज ने चार और वृषसेन ने सात बाणों द्वारा श्रीकृष्ण और अर्जुन को पृथक-पृथक घायल कर दिया। इसी प्रकार कुन्तीपुत्र अर्जुन ने भी उन्हें बाणों से बींधकर बदला चुकाया। अर्जुन ने द्रोणपुत्र अश्वत्थामा को चैसठ, मद्रराज शल्य को सौ, सिन्धुराज जयद्रथ को दस, वृषसेन को तीन और कृपाचार्य को बीस बाणों से घायल करके सिंहनाद किया। यह देख सव्यसाची अर्जुन की प्रतिज्ञा को भंग करने की अभिालाषा से आपके वे सभी सैनिक एक साथ संगठित हो तुरंत उन पर टूट पड़े। तदनन्तर अर्जुन ने धृतराष्ट्र के पुत्रों को भयभीत करते हुए सब ओर वारुणास्त्र प्रकट किया। कौरव सैनिक अपने बहुमूल्य रथों द्वारा पाण्डुपुत्र अर्जुन की ओर बढ़े और उन पर बाणों की वर्षा करने लगे। भारत ! सबको मोह में डालने वाले उस अत्यन्त भयंकर तुमुल युद्ध के उपस्थित होने पर भी किरीटधारी राजकुमार अर्जुन तनिक भी मोहित नहीं हुए। वे बाण समूहों की वर्षा करते ही रहे। अप्रमेय शक्तिशाली महामनस्वी सव्यसाची अर्जुन अपना राज्य प्राप्त करना चाहते थे। उन्होंने कौरवों के दिये हुए केशों और बारह वर्षों व भोगे हुए वनवास के कष्टों को स्मरण करते हुए गाण्डीव धनुष से छूटने वाले बाणों द्वारा सम्पूर्ण दिशाओं को आच्छादित कर दिया। आकाश में कितनी ही उल्काएं प्रज्वलित हो उठी और योद्धाओं के मृत शरीरों पर मांस भक्षी पक्षी गिरने लगे; क्योंकि उस समय क्रोध में भरे हुए किरीटधारी अर्जुन पीली प्रत्यन्चा वाले गाण्डीव धनुष के द्वारा शत्रुओं का संहार कर रहे थे। तत्पश्चात् शत्रुसेना को जीतने वाले महायश्स्वी किरीटधारी अर्जुन ने विशाल धनुष के द्वारा बाणों का प्रहार करके उत्तम घोड़ों और श्रेष्ठ हाथियों की पीठ पर बैठे हुए प्रमुख कौरव वीरों को मार गिराया। उस रणक्षेत्र में भयंकर दिखायी देने वाले कितने ही नरेश भारी गदाओं, लोहे के परिधों, तलवारों, शक्तियों और बड़े-बड़े अस्त्र शस्त्रों को हाथ में लेकर कुन्तीनन्दन अर्जुन पर सहसा टूट पड़े। तब यमराज के राज्य की वृद्धि करने वाले अर्जुन ने प्रलयकाल के मेघों के समान गम्भीर ध्वनि करने वाले तथा इन्द्रधनुष के समान प्रतीत होने वाले विशाल गाण्डीव धनुष को हंसते हुए दोनों हाथों से खींचा और आपके सैनिकों को दग्ध करते हुए वे बड़े वेग से आगे बढ़े। महाधनुर्धर वीर अर्जुन ने रथ, हाथी और पैदल समूहों सहित उन कौरव सैनिकों को प्रचण्ड गति से आगे बढ़ते देख उनके सम्पूर्ण आयुधों और जीवन को भी नष्ट करके उन्हें यमराज के राज्य की वृद्धि करने वाला बना दिया।
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