"श्रीमद्भागवत महापुराण दशम स्कन्ध अध्याय 11 श्लोक 15-27": अवतरणों में अंतर

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== दशम स्कन्ध:  एकादशो ऽध्यायः(11) (पूर्वार्ध)==


<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">श्रीमद्भागवत महापुराण: दशम स्कन्ध:  अथैकादशो ऽध्यायः श्लोक 15-27 का हिन्दी अनुवाद </div>
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">श्रीमद्भागवत महापुराण: दशम स्कन्ध:  एकादशो ऽध्यायः श्लोक 15-27 का हिन्दी अनुवाद </div>
वे जोर-जोर से पुकारने लगीं—‘मेरे प्यारे कन्हैया! ओ कृष्ण! कमलनयन! श्यामसुन्दर! बेटा! आओ, अपनी माँ का दूध पी लो। खेलते-खेलते थक गये हो बेटा! अब बस करो। देखो तो सही, तुम भूख से दुबले हो रहे हो । मेरे प्यारे बेटा राम! तुम तो समूचे कुल को आनन्द देने वाले हो। अपने छोटे भाई को लेकर जल्दी आ जाओ तो! देखो भाई! आज तुमने बहुत सबेरे कलेऊ किया था। अब तो तुम्हें कुछ खाना चाहिये । बेटा बलराम! व्रजराज भोजन करने के लिए बैठ गये है; परन्तु अभी तक तुम्हारी बाट देख रहे हैं। आओ, अब हमें आनन्दित करो। बालकों! अब तुम लोग भी अपने-अपने घर जाओ । बेटा! देखो तो सही, तुम्हारा एक-एक अंग धूल से लथपथ हो रहा है। आओ, जल्दी से स्नान कर लो। आज तुम्हारा जन्म नक्षत्र है। पवित्र होकर ब्राम्हणों को गोदान करो । देखो-देखो! तुम्हारे साथियों को उनकी माताओं ने नहला-धुलाकर,मींज-पोछकर कैसे सुन्दर-सुन्दर गहने पहना दिये हैं। अब तुम भी नहा-धोकर, खा-पीकर, पहन-ओढ़कर तब खेलना’। परीक्षित्! माता यशोदा का सम्पूर्ण मन-प्राण प्रेम-बन्धन से बँधा हुआ था। वे चराचर जगत् के शिरोमणि भगवान् को अपना पुत्र समझतीं और इस प्रकार कहकर एक हाथ से बलराम तथा दूसरे हाथ से श्रीकृष्ण को पकड़कर अपने घर ले आयीं। इसके बाद उन्होंने पुत्र के मंगल के लिए जो कुछ करना था, वह बड़े प्रेम से किया ।  
वे जोर-जोर से पुकारने लगीं—‘मेरे प्यारे कन्हैया! ओ कृष्ण! कमलनयन! श्यामसुन्दर! बेटा! आओ, अपनी माँ का दूध पी लो। खेलते-खेलते थक गये हो बेटा! अब बस करो। देखो तो सही, तुम भूख से दुबले हो रहे हो । मेरे प्यारे बेटा राम! तुम तो समूचे कुल को आनन्द देने वाले हो। अपने छोटे भाई को लेकर जल्दी आ जाओ तो! देखो भाई! आज तुमने बहुत सबेरे कलेऊ किया था। अब तो तुम्हें कुछ खाना चाहिये । बेटा बलराम! व्रजराज भोजन करने के लिए बैठ गये है; परन्तु अभी तक तुम्हारी बाट देख रहे हैं। आओ, अब हमें आनन्दित करो। बालकों! अब तुम लोग भी अपने-अपने घर जाओ । बेटा! देखो तो सही, तुम्हारा एक-एक अंग धूल से लथपथ हो रहा है। आओ, जल्दी से स्नान कर लो। आज तुम्हारा जन्म नक्षत्र है। पवित्र होकर ब्राम्हणों को गोदान करो । देखो-देखो! तुम्हारे साथियों को उनकी माताओं ने नहला-धुलाकर,मींज-पोछकर कैसे सुन्दर-सुन्दर गहने पहना दिये हैं। अब तुम भी नहा-धोकर, खा-पीकर, पहन-ओढ़कर तब खेलना’। परीक्षित्! माता यशोदा का सम्पूर्ण मन-प्राण प्रेम-बन्धन से बँधा हुआ था। वे चराचर जगत् के शिरोमणि भगवान  को अपना पुत्र समझतीं और इस प्रकार कहकर एक हाथ से बलराम तथा दूसरे हाथ से श्रीकृष्ण को पकड़कर अपने घर ले आयीं। इसके बाद उन्होंने पुत्र के मंगल के लिए जो कुछ करना था, वह बड़े प्रेम से किया ।  


जब नन्दबाबा आदि बड़े-बूढ़े गोपों ने देखा कि महावन में तो बड़े-बड़े उत्पात होने लगे हैं, तब वे लोग इकट्ठे होकर ‘अब व्रजवासियों को क्या करना चाहिए’—इस विषय पर विचार करने लगे । उनमें से एक गोप का नाम था उपनन्द। वे अवस्था में तो बड़े थे ही, ज्ञान में भी बड़े थे। उन्हें इस बात का पता था कि किस समय किस स्थान पर किस वस्तु से कैसा व्यवहार करना चाहिए। साथ ही वे यह भी चाहते थे कि राम और श्याम सुखी रहें, उन पर कोई विपत्ति न आवे। उन्होंने कहा— ‘भाइयों! अब यहाँ ऐसे बड़े-बड़े उत्पात होने लगे हैं, जो बच्चों के लिए तो बहुत ही अनिष्टकारी हैं। इसलिए यदि हम लोग गोकुल और गोकुलवसियों का भला चाहते हैं, तो हमें यहाँ से अपना डेरा-डंडा उठाकर कूच कर देना चाहिये । देखो, यह सामने बैठा हुआ नन्दराय का लाड़ला सबसे पहले तो बच्चों के लिए कालस्वरूपिणी हत्यारी पूतना के चंगुल से किसी प्रकार छूटा। इसके बाद भगवान् की दूसरी कृपा यह हुई कि इसके ऊपर इतना बड़ा छकड़ा गिरते-गिरते बचा । बवंडररूपधारी दैत्य ने तो इसे आकाश में ले जाकर बड़ी भारी विपत्ति (मृत्यु के मुख) में ही डाल दिया था, परन्तु वहाँ से जब वह चट्टान पर गिरा, तब भी हमारे कुल के देवेश्वरों ने ही इस बालक की रक्षा की । यमलार्जुन वृक्षों के गिरने के समय उसके बीच में आकर भी यह या और कोई बालक न मरा। इससे भी यही समझना चाहिये कि भगवान् ने हमारी रक्षा की । इसलिए जब तक कोई बहुत बड़ा अनिष्टकारी अरिष्ट हमें और हमारे व्रज को नष्ट न कर डे, तब तक ही हमलोग अपने बच्चों को लेकर अनुचरों के साथ यहाँ से अन्यत्र चले चलें ।
जब नन्दबाबा आदि बड़े-बूढ़े गोपों ने देखा कि महावन में तो बड़े-बड़े उत्पात होने लगे हैं, तब वे लोग इकट्ठे होकर ‘अब व्रजवासियों को क्या करना चाहिए’—इस विषय पर विचार करने लगे । उनमें से एक गोप का नाम था उपनन्द। वे अवस्था में तो बड़े थे ही, ज्ञान में भी बड़े थे। उन्हें इस बात का पता था कि किस समय किस स्थान पर किस वस्तु से कैसा व्यवहार करना चाहिए। साथ ही वे यह भी चाहते थे कि राम और श्याम सुखी रहें, उन पर कोई विपत्ति न आवे। उन्होंने कहा— ‘भाइयों! अब यहाँ ऐसे बड़े-बड़े उत्पात होने लगे हैं, जो बच्चों के लिए तो बहुत ही अनिष्टकारी हैं। इसलिए यदि हम लोग गोकुल और गोकुलवसियों का भला चाहते हैं, तो हमें यहाँ से अपना डेरा-डंडा उठाकर कूच कर देना चाहिये । देखो, यह सामने बैठा हुआ नन्दराय का लाड़ला सबसे पहले तो बच्चों के लिए कालस्वरूपिणी हत्यारी पूतना के चंगुल से किसी प्रकार छूटा। इसके बाद भगवान  की दूसरी कृपा यह हुई कि इसके ऊपर इतना बड़ा छकड़ा गिरते-गिरते बचा । बवंडररूपधारी दैत्य ने तो इसे आकाश में ले जाकर बड़ी भारी विपत्ति (मृत्यु के मुख) में ही डाल दिया था, परन्तु वहाँ से जब वह चट्टान पर गिरा, तब भी हमारे कुल के देवेश्वरों ने ही इस बालक की रक्षा की । यमलार्जुन वृक्षों के गिरने के समय उसके बीच में आकर भी यह या और कोई बालक न मरा। इससे भी यही समझना चाहिये कि भगवान  ने हमारी रक्षा की । इसलिए जब तक कोई बहुत बड़ा अनिष्टकारी अरिष्ट हमें और हमारे व्रज को नष्ट न कर डे, तब तक ही हमलोग अपने बच्चों को लेकर अनुचरों के साथ यहाँ से अन्यत्र चले चलें ।


{{लेख क्रम |पिछला=श्रीमद्भागवत महापुराण दशम स्कन्ध अध्याय 11 श्लोक 1-14|अगला=श्रीमद्भागवत महापुराण दशम स्कन्ध अध्याय 11 श्लोक 28-40}}
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१२:३२, २९ जुलाई २०१५ के समय का अवतरण

दशम स्कन्ध: एकादशो ऽध्यायः(11) (पूर्वार्ध)

श्रीमद्भागवत महापुराण: दशम स्कन्ध: एकादशो ऽध्यायः श्लोक 15-27 का हिन्दी अनुवाद

वे जोर-जोर से पुकारने लगीं—‘मेरे प्यारे कन्हैया! ओ कृष्ण! कमलनयन! श्यामसुन्दर! बेटा! आओ, अपनी माँ का दूध पी लो। खेलते-खेलते थक गये हो बेटा! अब बस करो। देखो तो सही, तुम भूख से दुबले हो रहे हो । मेरे प्यारे बेटा राम! तुम तो समूचे कुल को आनन्द देने वाले हो। अपने छोटे भाई को लेकर जल्दी आ जाओ तो! देखो भाई! आज तुमने बहुत सबेरे कलेऊ किया था। अब तो तुम्हें कुछ खाना चाहिये । बेटा बलराम! व्रजराज भोजन करने के लिए बैठ गये है; परन्तु अभी तक तुम्हारी बाट देख रहे हैं। आओ, अब हमें आनन्दित करो। बालकों! अब तुम लोग भी अपने-अपने घर जाओ । बेटा! देखो तो सही, तुम्हारा एक-एक अंग धूल से लथपथ हो रहा है। आओ, जल्दी से स्नान कर लो। आज तुम्हारा जन्म नक्षत्र है। पवित्र होकर ब्राम्हणों को गोदान करो । देखो-देखो! तुम्हारे साथियों को उनकी माताओं ने नहला-धुलाकर,मींज-पोछकर कैसे सुन्दर-सुन्दर गहने पहना दिये हैं। अब तुम भी नहा-धोकर, खा-पीकर, पहन-ओढ़कर तब खेलना’। परीक्षित्! माता यशोदा का सम्पूर्ण मन-प्राण प्रेम-बन्धन से बँधा हुआ था। वे चराचर जगत् के शिरोमणि भगवान को अपना पुत्र समझतीं और इस प्रकार कहकर एक हाथ से बलराम तथा दूसरे हाथ से श्रीकृष्ण को पकड़कर अपने घर ले आयीं। इसके बाद उन्होंने पुत्र के मंगल के लिए जो कुछ करना था, वह बड़े प्रेम से किया ।

जब नन्दबाबा आदि बड़े-बूढ़े गोपों ने देखा कि महावन में तो बड़े-बड़े उत्पात होने लगे हैं, तब वे लोग इकट्ठे होकर ‘अब व्रजवासियों को क्या करना चाहिए’—इस विषय पर विचार करने लगे । उनमें से एक गोप का नाम था उपनन्द। वे अवस्था में तो बड़े थे ही, ज्ञान में भी बड़े थे। उन्हें इस बात का पता था कि किस समय किस स्थान पर किस वस्तु से कैसा व्यवहार करना चाहिए। साथ ही वे यह भी चाहते थे कि राम और श्याम सुखी रहें, उन पर कोई विपत्ति न आवे। उन्होंने कहा— ‘भाइयों! अब यहाँ ऐसे बड़े-बड़े उत्पात होने लगे हैं, जो बच्चों के लिए तो बहुत ही अनिष्टकारी हैं। इसलिए यदि हम लोग गोकुल और गोकुलवसियों का भला चाहते हैं, तो हमें यहाँ से अपना डेरा-डंडा उठाकर कूच कर देना चाहिये । देखो, यह सामने बैठा हुआ नन्दराय का लाड़ला सबसे पहले तो बच्चों के लिए कालस्वरूपिणी हत्यारी पूतना के चंगुल से किसी प्रकार छूटा। इसके बाद भगवान की दूसरी कृपा यह हुई कि इसके ऊपर इतना बड़ा छकड़ा गिरते-गिरते बचा । बवंडररूपधारी दैत्य ने तो इसे आकाश में ले जाकर बड़ी भारी विपत्ति (मृत्यु के मुख) में ही डाल दिया था, परन्तु वहाँ से जब वह चट्टान पर गिरा, तब भी हमारे कुल के देवेश्वरों ने ही इस बालक की रक्षा की । यमलार्जुन वृक्षों के गिरने के समय उसके बीच में आकर भी यह या और कोई बालक न मरा। इससे भी यही समझना चाहिये कि भगवान ने हमारी रक्षा की । इसलिए जब तक कोई बहुत बड़ा अनिष्टकारी अरिष्ट हमें और हमारे व्रज को नष्ट न कर डे, तब तक ही हमलोग अपने बच्चों को लेकर अनुचरों के साथ यहाँ से अन्यत्र चले चलें ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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