"महाभारत वन पर्व अध्याय 24 श्लोक 21-26": अवतरणों में अंतर
[अनिरीक्षित अवतरण] | [अनिरीक्षित अवतरण] |
Bharatkhoj (वार्ता | योगदान) ('==चतुर्विंश (24) अध्याय: वन पर्व (अरण्यपर्व)== <div style="text-align:c...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
Bharatkhoj (वार्ता | योगदान) छो (Text replace - "{{महाभारत}}" to "{{सम्पूर्ण महाभारत}}") |
||
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति ६: | पंक्ति ६: | ||
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">इस प्रकार श्रीमहाभारत वनपर्व के अन्तर्गत अर्जुनाभिगमनपर्व में द्वैतवनप्रवेशविषयक चैबीसवाँ अध्याय पूरा हुआ।</div> | <div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">इस प्रकार श्रीमहाभारत वनपर्व के अन्तर्गत अर्जुनाभिगमनपर्व में द्वैतवनप्रवेशविषयक चैबीसवाँ अध्याय पूरा हुआ।</div> | ||
{{लेख क्रम |पिछला=महाभारत वन पर्व अध्याय 24 श्लोक 1-20|अगला=महाभारत | {{लेख क्रम |पिछला=महाभारत वन पर्व अध्याय 24 श्लोक 1-20|अगला=महाभारत वन पर्व अध्याय 25 श्लोक 1-14}} | ||
==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ||
<references/> | <references/> | ||
==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
{{महाभारत}} | {{सम्पूर्ण महाभारत}} | ||
[[Category:कृष्ण कोश]] [[Category:महाभारत]][[Category:महाभारत वनपर्व]] | [[Category:कृष्ण कोश]] [[Category:महाभारत]][[Category:महाभारत वनपर्व]] | ||
__INDEX__ | __INDEX__ |
१३:३३, १९ जुलाई २०१५ के समय का अवतरण
चतुर्विंश (24) अध्याय: वन पर्व (अरण्यपर्व)
तदनन्तर धर्मात्माओं में श्रेष्ठ एवं अमित तेजस्वी राजा युधिष्ठिर ने अपने सेवकों और भाइयों सहित रथ से उतरकर स्वर्ग में इन्द्र के समान उस वन में प्रवेश किया। उस समय उन सत्यप्रतिज्ञ मनस्वी राजसिंह युधिष्ठिर को देखने की इच्छा से सहसा बहुत-से चारण, सिद्ध एवं वनवासी महर्षि आये और उन्हें घेरकर खड़े हो गये। वहाँ आये हुए समस्त सिद्धकों को प्रणाम करके धर्मात्माओं में श्रेष्ठ युधिष्ठिर उनके द्वारा भी राजा तथा देवता के समान पूजित हुए एवं दोनों हाथ जोड़कर उन्होंने समस्त श्रेष्ठ ब्राह्मणों के साथ वन के भीतर पदापर्ण किया। उस वन में रहने वाले धर्मपरायण तपस्वियों ने उन पुण्यशील महात्मा राजा के पास जाकर उनका पिता की भाँति सम्मान किया। तत्पश्चात राजा युधिष्ठिर फूलों से लदे हुए एक महान वृक्ष के नीचे उसकी जड़ के समीप बैठे। तदनन्तर पराधीन-दशा में पड़े हुए भीम, द्रौपदी, अर्जुन, नकुल, सहदेव तथा सेवकगण सवारी छोड़कर उतर गये। वे सभी भरतश्रेष्ठ वीर महाराज युधिष्ठिर के समीप जा बैठे। जैसे महान पर्वत यूथपति के गजराजों से सुशोभित होता है, उसी प्रकार लता समूह से झुका हुआ वह महान वृक्ष वहाँ के निवास के लिये आये हुए पाँच धर्नुधर महात्मा पाण्डवों द्वारा शोभा पाने लगा।
« पीछे | आगे » |