"मार्टिन लूथर": अवतरणों में अंतर

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किंग, मार्टिन लूथर (1९2९-1९6८)। अमरीका के अश्वेत <ref>नीग्रो</ref> आंदोलन के प्रमुख नेता। इनका जन्म 15 जनवरी 1९2९ को अटलांटा <ref>जार्जिया, दक्षिण अमरीका</ref> में हुआ था। पिता, पितामह बैप्टिस्ट संप्रदाय पादरी थे। बपतिस्मा के समय इनका नाम माइकेल रखा गया। 6 वर्ष की अवस्था में ही इन्हें अपने देश में फैले हुए श्वेत अश्वेत के बीच भेदभाव का एक कटु अनुभव हुआ और उससे वे विचलित हो उठे थे। तब उनके पिता ने उन्हें प्रोटेस्टेंट संप्रदाय के संस्थापक मार्टिन लूथर की जीवन गाथा सुनाईं और कहा-आज से तुम्हारा और मेरा दोनों का नाम मार्टिन लूथर किंग होगा। इस नए नामकरण ने कदाचित उनके मस्तिष्क में मर्टिन लूथर की मूर्ति को सदा के लिये प्रतिष्ठित कर दिया और वे उनसे आजीवन प्रेरणा लेते रहे। 15 वर्ष की अवस्था, में जब वे अपने ही नगर के मोर कालेज के विद्यार्थी थे, उन्हें हेनरी डेविड थोरौ की सविनय अवज्ञा पढ़ने को मिली। उसका भी उन पर बहुत प्रभाव पड़ा और हिंसाका उत्तर हिंसा नहीं है, इस बात में उनका विश्वास बढ़ गया। फलत: एक बार जब एक दुष्ट विद्यार्थी ने इन्हें पीटा और धक्का देकर सीढ़ी से नीचे गिरा दिया तब इन्होंने उसे पीटने से स्पष्ट इनकार कर दिया।
किंग, मार्टिन लूथर (1929-1968)। अमरीका के अश्वेत <ref>नीग्रो</ref> आंदोलन के प्रमुख नेता। इनका जन्म 15 जनवरी 1929 को अटलांटा <ref>जार्जिया, दक्षिण अमरीका</ref> में हुआ था। पिता, पितामह बैप्टिस्ट संप्रदाय पादरी थे। बपतिस्मा के समय इनका नाम माइकेल रखा गया। 6 वर्ष की अवस्था में ही इन्हें अपने देश में फैले हुए श्वेत अश्वेत के बीच भेदभाव का एक कटु अनुभव हुआ और उससे वे विचलित हो उठे थे। तब उनके पिता ने उन्हें प्रोटेस्टेंट संप्रदाय के संस्थापक मार्टिन लूथर की जीवन गाथा सुनाईं और कहा-आज से तुम्हारा और मेरा दोनों का नाम मार्टिन लूथर किंग होगा। इस नए नामकरण ने कदाचित उनके मस्तिष्क में मर्टिन लूथर की मूर्ति को सदा के लिये प्रतिष्ठित कर दिया और वे उनसे आजीवन प्रेरणा लेते रहे। 15 वर्ष की अवस्था, में जब वे अपने ही नगर के मोर कालेज के विद्यार्थी थे, उन्हें हेनरी डेविड थोरौ की सविनय अवज्ञा पढ़ने को मिली। उसका भी उन पर बहुत प्रभाव पड़ा और हिंसाका उत्तर हिंसा नहीं है, इस बात में उनका विश्वास बढ़ गया। फलत: एक बार जब एक दुष्ट विद्यार्थी ने इन्हें पीटा और धक्का देकर सीढ़ी से नीचे गिरा दिया तब इन्होंने उसे पीटने से स्पष्ट इनकार कर दिया।


बॉस्टन विश्वविद्यालय से डाक्टरेट की उपाधि प्राप्त करने के बाद इन्होंने कोरेट्टा स्काट नामक महिला से विवाह किया और एलबामा राज्य के मांटगोमरी नामक नगर में पादरी बन गए। इस राज्य में अश्वेत <ref>नीग्रो</ref> लोगों के प्रति श्वेत लोगों के मन में तीव्र घृणा थी। वहाँ गोरे लोगों के हाथों नीग्रो लोगों के अपमानित होने, मारे पीटे जाने और दंडित किए जाने की घटनाएँ प्राय: हुआ करती थीं। माँटगोमरी में रहते उन्हें एक वर्ष भी नहीं हुआ था कि एक ऐसी ही साधारण-सी घटना ने उनके जीवन की दिशा बदल दी। वहाँ शहर के बसों में अश्वेत पीछे और गोरे आगे बैठा करते थे। एक दिन एक बस में एक नीग्रो स्त्री को पीछे जगह नहीं मिली अत: वह खड़ी रही। जब उसकी टाँगे बेहद दुखने लगीं तो वह गोरों के लिए सुरक्षित एक सीट पर बैठ गई। इस अपराध के लिए उस स्त्री पर दस डालर जुर्माना हुआ। इस घटना से किंग बहुत क्षुब्ध हुए और एलबामा की नीग्रो जनता को संघटित कर बस का बहिष्कार आरंभ कर दिया। उनका यह बहिष्कार आंदोलन इतना सफल रहा कि साल भर में ही बस सेवा संचालन व्यवस्था की बघिया बैठ गई। अधिकारियों को झुकना पड़ा। अमरीका की सर्वोच्च न्यायालय को भी बस यात्रा में भेदभाव किए जाने पर प्रतिबंध लगाना पड़ा। अब उन्होंने रंगभेद के गढ़ बर्मिंगहम नामक स्थान को अपने आंदोलन का केंद्र बनाया। इस आंदोलन के कारण जब वे गिरफ्तार किए गए तो उसके विरोध में अमरीका के लगभग ८०० नगरों में प्रदर्शन और सत्याग्रह हुए और तैंतीस हजार अश्वेत लोग गिरफ्तार किए गए। उनके इस आंदोलन का उस समय अनेक पादरियों ने विरोध किया और उन पर उतावलेपन का आरोप लगाया किंतु उत्तर में उन्होंने जेल से जो लंबा पत्र लिखा उसे लोगों ने अश्वेत आंदोलन की प्रामाणिक शास्त्रीय व्याख्या का नाम दिया है। उसका ऐतिहासिक महत्व माना जाता है।
बॉस्टन विश्वविद्यालय से डाक्टरेट की उपाधि प्राप्त करने के बाद इन्होंने कोरेट्टा स्काट नामक महिला से विवाह किया और एलबामा राज्य के मांटगोमरी नामक नगर में पादरी बन गए। इस राज्य में अश्वेत <ref>नीग्रो</ref> लोगों के प्रति श्वेत लोगों के मन में तीव्र घृणा थी। वहाँ गोरे लोगों के हाथों नीग्रो लोगों के अपमानित होने, मारे पीटे जाने और दंडित किए जाने की घटनाएँ प्राय: हुआ करती थीं। माँटगोमरी में रहते उन्हें एक वर्ष भी नहीं हुआ था कि एक ऐसी ही साधारण-सी घटना ने उनके जीवन की दिशा बदल दी। वहाँ शहर के बसों में अश्वेत पीछे और गोरे आगे बैठा करते थे। एक दिन एक बस में एक नीग्रो स्त्री को पीछे जगह नहीं मिली अत: वह खड़ी रही। जब उसकी टाँगे बेहद दुखने लगीं तो वह गोरों के लिए सुरक्षित एक सीट पर बैठ गई। इस अपराध के लिए उस स्त्री पर दस डालर जुर्माना हुआ। इस घटना से किंग बहुत क्षुब्ध हुए और एलबामा की नीग्रो जनता को संघटित कर बस का बहिष्कार आरंभ कर दिया। उनका यह बहिष्कार आंदोलन इतना सफल रहा कि साल भर में ही बस सेवा संचालन व्यवस्था की बघिया बैठ गई। अधिकारियों को झुकना पड़ा। अमरीका की सर्वोच्च न्यायालय को भी बस यात्रा में भेदभाव किए जाने पर प्रतिबंध लगाना पड़ा। अब उन्होंने रंगभेद के गढ़ बर्मिंगहम नामक स्थान को अपने आंदोलन का केंद्र बनाया। इस आंदोलन के कारण जब वे गिरफ्तार किए गए तो उसके विरोध में अमरीका के लगभग 800 नगरों में प्रदर्शन और सत्याग्रह हुए और तैंतीस हजार अश्वेत लोग गिरफ्तार किए गए। उनके इस आंदोलन का उस समय अनेक पादरियों ने विरोध किया और उन पर उतावलेपन का आरोप लगाया किंतु उत्तर में उन्होंने जेल से जो लंबा पत्र लिखा उसे लोगों ने अश्वेत आंदोलन की प्रामाणिक शास्त्रीय व्याख्या का नाम दिया है। उसका ऐतिहासिक महत्व माना जाता है।


इसके बाद धरनों, शांतिमय प्रर्दशनों, शिध्य कार्यक्रमों, नीग्रो उत्थान अभियानों का क्रम चल पड़ा। 1९63 में ‘वाशिंगटन चलो’ अभियान और 1९65 में मतदाता पंजीकरण आंदोलन <ref>5० मील की पदयात्रा</ref> उल्लेखनीय है। इन आंदोलनों और उनके प्रति दृढ़ विश्वास और ईमानदारी के फलस्वरूप उन्हें पंद्रह बार जेल में बंद किया गया; समय-समय पर गोरों का कोपभाजन बनना पड़ा; तीन बार उन्हें बुरी तरह मारा पीटा गया। शिकागो में उन पर एक बार पत्थर फेंके गए। 1९56 में उनके घर पर बम फेंका गया। कुछ दिनों बाद छुरा भोंककर मारने का प्रयास हुआ।
इसके बाद धरनों, शांतिमय प्रर्दशनों, शिध्य कार्यक्रमों, नीग्रो उत्थान अभियानों का क्रम चल पड़ा। 1963 में ‘वाशिंगटन चलो’ अभियान और 1965 में मतदाता पंजीकरण आंदोलन <ref>50 मील की पदयात्रा</ref> उल्लेखनीय है। इन आंदोलनों और उनके प्रति दृढ़ विश्वास और ईमानदारी के फलस्वरूप उन्हें पंद्रह बार जेल में बंद किया गया; समय-समय पर गोरों का कोपभाजन बनना पड़ा; तीन बार उन्हें बुरी तरह मारा पीटा गया। शिकागो में उन पर एक बार पत्थर फेंके गए। 1956 में उनके घर पर बम फेंका गया। कुछ दिनों बाद छुरा भोंककर मारने का प्रयास हुआ।


किंग जातीय भेदभाव और संकुचित मनोवृत्तियों से ऊपर उठकर मनुष्य मात्र की एकता और समानता के लिए सतत प्रयत्न करनेवाले शांतिवादी महामानव थे। उनका दर्शन महात्मा गांधी के अहिंसात्मक सत्याग्रह का दर्शन था। उनका कहना था-नैतिक उपायों द्वारा सत्यतापूर्ण लक्ष्यों की प्राप्ति का अथक प्रयास ही अहिंसा है। अहिंसा के सिद्धांत के अनुसार, किसी भी व्यक्ति को अधिकार नहीं है कि वह अपने विरोधी को दु:ख दे। अगर आपको कोई मारे तो आप उलटकर उस पर हमला न करें। आपको तो उन ऊँचाइयों पर पहुँचना है कि आप बिना बदले की भावना के गहरे से गहरे आघात सह सकें। धीरे-धीरे आप एक ऐसे बिंदु पर पहुँच जाएँगे जहाँ पर आप अपने शत्रु से भी घृणा नहीं कर सकेंगे। फिर ऐसा भी बिंदु आएगा जब आप अपने शत्रु से प्रेम करने लगेंगे।
किंग जातीय भेदभाव और संकुचित मनोवृत्तियों से ऊपर उठकर मनुष्य मात्र की एकता और समानता के लिए सतत प्रयत्न करनेवाले शांतिवादी महामानव थे। उनका दर्शन महात्मा गांधी के अहिंसात्मक सत्याग्रह का दर्शन था। उनका कहना था-नैतिक उपायों द्वारा सत्यतापूर्ण लक्ष्यों की प्राप्ति का अथक प्रयास ही अहिंसा है। अहिंसा के सिद्धांत के अनुसार, किसी भी व्यक्ति को अधिकार नहीं है कि वह अपने विरोधी को दु:ख दे। अगर आपको कोई मारे तो आप उलटकर उस पर हमला न करें। आपको तो उन ऊँचाइयों पर पहुँचना है कि आप बिना बदले की भावना के गहरे से गहरे आघात सह सकें। धीरे-धीरे आप एक ऐसे बिंदु पर पहुँच जाएँगे जहाँ पर आप अपने शत्रु से भी घृणा नहीं कर सकेंगे। फिर ऐसा भी बिंदु आएगा जब आप अपने शत्रु से प्रेम करने लगेंगे।


इस मानवतावादी दृष्टिकोण के कारण 1९56 ई. में ही उनकी गणना विश्व की दस महान्‌ विभूतियों में की जाने लगी थी। 1९63 ई. में टाइम पत्रिका ने उन्हें महत्तम व्यक्ति का पुरस्कार प्रदान किया और 1९64 ई. में उन्हें शांति का नोबेल पुरस्कार प्राप्त हुआ था।
इस मानवतावादी दृष्टिकोण के कारण 1956 ई. में ही उनकी गणना विश्व की दस महान्‌ विभूतियों में की जाने लगी थी। 1963 ई. में टाइम पत्रिका ने उन्हें महत्तम व्यक्ति का पुरस्कार प्रदान किया और 1964 ई. में उन्हें शांति का नोबेल पुरस्कार प्राप्त हुआ था।


अप्रैल 1९6८ ई. को कूड़ा उठानेवालों की हड़ताल के समर्थन में शांतिमय आंदोलन करते समय मेम्फिस में <ref>जहाँ के 4० प्रतिशत निवासी नीग्रो हैं</ref> एक गोरे की गोली से उनका जीवन समाप्त हो गया। मृत्यु के उपरांत भारत ने उन्हें नेहरू पुरस्कार प्रदान किया ।  
8 अप्रैल 1968 ई. को कूड़ा उठानेवालों की हड़ताल के समर्थन में शांतिमय आंदोलन करते समय मेम्फिस में <ref>जहाँ के 40 प्रतिशत निवासी नीग्रो हैं</ref> एक गोरे की गोली से उनका जीवन समाप्त हो गया। मृत्यु के उपरांत भारत ने उन्हें नेहरू पुरस्कार प्रदान किया ।  
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
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[[Category:हिन्दी_विश्वकोश]]
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लेख सूचना
मार्टिन लूथर
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 3
पृष्ठ संख्या 1
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक सुधाकर पांडेय
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1976 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक परमेश्वरीलाल गुप्त

किंग, मार्टिन लूथर (1929-1968)। अमरीका के अश्वेत [१] आंदोलन के प्रमुख नेता। इनका जन्म 15 जनवरी 1929 को अटलांटा [२] में हुआ था। पिता, पितामह बैप्टिस्ट संप्रदाय पादरी थे। बपतिस्मा के समय इनका नाम माइकेल रखा गया। 6 वर्ष की अवस्था में ही इन्हें अपने देश में फैले हुए श्वेत अश्वेत के बीच भेदभाव का एक कटु अनुभव हुआ और उससे वे विचलित हो उठे थे। तब उनके पिता ने उन्हें प्रोटेस्टेंट संप्रदाय के संस्थापक मार्टिन लूथर की जीवन गाथा सुनाईं और कहा-आज से तुम्हारा और मेरा दोनों का नाम मार्टिन लूथर किंग होगा। इस नए नामकरण ने कदाचित उनके मस्तिष्क में मर्टिन लूथर की मूर्ति को सदा के लिये प्रतिष्ठित कर दिया और वे उनसे आजीवन प्रेरणा लेते रहे। 15 वर्ष की अवस्था, में जब वे अपने ही नगर के मोर कालेज के विद्यार्थी थे, उन्हें हेनरी डेविड थोरौ की सविनय अवज्ञा पढ़ने को मिली। उसका भी उन पर बहुत प्रभाव पड़ा और हिंसाका उत्तर हिंसा नहीं है, इस बात में उनका विश्वास बढ़ गया। फलत: एक बार जब एक दुष्ट विद्यार्थी ने इन्हें पीटा और धक्का देकर सीढ़ी से नीचे गिरा दिया तब इन्होंने उसे पीटने से स्पष्ट इनकार कर दिया।

बॉस्टन विश्वविद्यालय से डाक्टरेट की उपाधि प्राप्त करने के बाद इन्होंने कोरेट्टा स्काट नामक महिला से विवाह किया और एलबामा राज्य के मांटगोमरी नामक नगर में पादरी बन गए। इस राज्य में अश्वेत [३] लोगों के प्रति श्वेत लोगों के मन में तीव्र घृणा थी। वहाँ गोरे लोगों के हाथों नीग्रो लोगों के अपमानित होने, मारे पीटे जाने और दंडित किए जाने की घटनाएँ प्राय: हुआ करती थीं। माँटगोमरी में रहते उन्हें एक वर्ष भी नहीं हुआ था कि एक ऐसी ही साधारण-सी घटना ने उनके जीवन की दिशा बदल दी। वहाँ शहर के बसों में अश्वेत पीछे और गोरे आगे बैठा करते थे। एक दिन एक बस में एक नीग्रो स्त्री को पीछे जगह नहीं मिली अत: वह खड़ी रही। जब उसकी टाँगे बेहद दुखने लगीं तो वह गोरों के लिए सुरक्षित एक सीट पर बैठ गई। इस अपराध के लिए उस स्त्री पर दस डालर जुर्माना हुआ। इस घटना से किंग बहुत क्षुब्ध हुए और एलबामा की नीग्रो जनता को संघटित कर बस का बहिष्कार आरंभ कर दिया। उनका यह बहिष्कार आंदोलन इतना सफल रहा कि साल भर में ही बस सेवा संचालन व्यवस्था की बघिया बैठ गई। अधिकारियों को झुकना पड़ा। अमरीका की सर्वोच्च न्यायालय को भी बस यात्रा में भेदभाव किए जाने पर प्रतिबंध लगाना पड़ा। अब उन्होंने रंगभेद के गढ़ बर्मिंगहम नामक स्थान को अपने आंदोलन का केंद्र बनाया। इस आंदोलन के कारण जब वे गिरफ्तार किए गए तो उसके विरोध में अमरीका के लगभग 800 नगरों में प्रदर्शन और सत्याग्रह हुए और तैंतीस हजार अश्वेत लोग गिरफ्तार किए गए। उनके इस आंदोलन का उस समय अनेक पादरियों ने विरोध किया और उन पर उतावलेपन का आरोप लगाया किंतु उत्तर में उन्होंने जेल से जो लंबा पत्र लिखा उसे लोगों ने अश्वेत आंदोलन की प्रामाणिक शास्त्रीय व्याख्या का नाम दिया है। उसका ऐतिहासिक महत्व माना जाता है।

इसके बाद धरनों, शांतिमय प्रर्दशनों, शिध्य कार्यक्रमों, नीग्रो उत्थान अभियानों का क्रम चल पड़ा। 1963 में ‘वाशिंगटन चलो’ अभियान और 1965 में मतदाता पंजीकरण आंदोलन [४] उल्लेखनीय है। इन आंदोलनों और उनके प्रति दृढ़ विश्वास और ईमानदारी के फलस्वरूप उन्हें पंद्रह बार जेल में बंद किया गया; समय-समय पर गोरों का कोपभाजन बनना पड़ा; तीन बार उन्हें बुरी तरह मारा पीटा गया। शिकागो में उन पर एक बार पत्थर फेंके गए। 1956 में उनके घर पर बम फेंका गया। कुछ दिनों बाद छुरा भोंककर मारने का प्रयास हुआ।

किंग जातीय भेदभाव और संकुचित मनोवृत्तियों से ऊपर उठकर मनुष्य मात्र की एकता और समानता के लिए सतत प्रयत्न करनेवाले शांतिवादी महामानव थे। उनका दर्शन महात्मा गांधी के अहिंसात्मक सत्याग्रह का दर्शन था। उनका कहना था-नैतिक उपायों द्वारा सत्यतापूर्ण लक्ष्यों की प्राप्ति का अथक प्रयास ही अहिंसा है। अहिंसा के सिद्धांत के अनुसार, किसी भी व्यक्ति को अधिकार नहीं है कि वह अपने विरोधी को दु:ख दे। अगर आपको कोई मारे तो आप उलटकर उस पर हमला न करें। आपको तो उन ऊँचाइयों पर पहुँचना है कि आप बिना बदले की भावना के गहरे से गहरे आघात सह सकें। धीरे-धीरे आप एक ऐसे बिंदु पर पहुँच जाएँगे जहाँ पर आप अपने शत्रु से भी घृणा नहीं कर सकेंगे। फिर ऐसा भी बिंदु आएगा जब आप अपने शत्रु से प्रेम करने लगेंगे।

इस मानवतावादी दृष्टिकोण के कारण 1956 ई. में ही उनकी गणना विश्व की दस महान्‌ विभूतियों में की जाने लगी थी। 1963 ई. में टाइम पत्रिका ने उन्हें महत्तम व्यक्ति का पुरस्कार प्रदान किया और 1964 ई. में उन्हें शांति का नोबेल पुरस्कार प्राप्त हुआ था।

8 अप्रैल 1968 ई. को कूड़ा उठानेवालों की हड़ताल के समर्थन में शांतिमय आंदोलन करते समय मेम्फिस में [५] एक गोरे की गोली से उनका जीवन समाप्त हो गया। मृत्यु के उपरांत भारत ने उन्हें नेहरू पुरस्कार प्रदान किया ।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. नीग्रो
  2. जार्जिया, दक्षिण अमरीका
  3. नीग्रो
  4. 50 मील की पदयात्रा
  5. जहाँ के 40 प्रतिशत निवासी नीग्रो हैं