"श्रीमद्भागवत माहात्म्य अध्याय 3 श्लोक 14-28": अवतरणों में अंतर
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श्रीमद्भागवत के स्वाध्याय और श्रवण से ब्राम्हणों को विद्या का प्रकाश (बोध) प्राप्त होता है, क्षत्रिय लोग शत्रुओं पर विजय पते हैं, वैश्यों को धन मिलता है और शूद्र स्वस्थ—नीरोग बने रहते हैं । | श्रीमद्भागवत के स्वाध्याय और श्रवण से ब्राम्हणों को विद्या का प्रकाश (बोध) प्राप्त होता है, क्षत्रिय लोग शत्रुओं पर विजय पते हैं, वैश्यों को धन मिलता है और शूद्र स्वस्थ—नीरोग बने रहते हैं । | ||
स्त्रियों तथा अन्त्यज आदि अन्य लोगों की भी इच्छा श्रीमद्भागवत से पूर्ण होती है; अतः कौन ऐसा भाग्यवान् पुरुष है, जो श्रीमद्भागवत का नित्य ही सेवन न करेगा । | स्त्रियों तथा अन्त्यज आदि अन्य लोगों की भी इच्छा श्रीमद्भागवत से पूर्ण होती है; अतः कौन ऐसा भाग्यवान् पुरुष है, जो श्रीमद्भागवत का नित्य ही सेवन न करेगा । | ||
अनेकों जन्मों तक साधना करते-करते जब मनुष्य पूर्ण सिद्ध हो जाता है, तब उसे श्रीमद्भागवत की प्राप्ति होती है। भागवत से | अनेकों जन्मों तक साधना करते-करते जब मनुष्य पूर्ण सिद्ध हो जाता है, तब उसे श्रीमद्भागवत की प्राप्ति होती है। भागवत से भगवान का प्रकाश मिलता है, जिससे भगवद्भक्ति उत्पन्न होती है । | ||
पूर्वकाल में सांख्यायन की कृपा से श्रीमद्भागवत बृहस्पतिजी को मिला और बृहस्पतिजी ने मुझे दिया; इसी से मैं श्रीकृष्ण का प्रियतम सखा हो सका हूँ । | पूर्वकाल में सांख्यायन की कृपा से श्रीमद्भागवत बृहस्पतिजी को मिला और बृहस्पतिजी ने मुझे दिया; इसी से मैं श्रीकृष्ण का प्रियतम सखा हो सका हूँ । | ||
परीक्षित्! बृहस्पतिजी ने मुझे एक आख्यायिका भी सुनायी थी, उसे तुम सुनो। इस आख्यायिका से श्रीमद्भागवत श्रवण के सम्प्रदाय का क्रम भी जाना जा सकता है । | परीक्षित्! बृहस्पतिजी ने मुझे एक आख्यायिका भी सुनायी थी, उसे तुम सुनो। इस आख्यायिका से श्रीमद्भागवत श्रवण के सम्प्रदाय का क्रम भी जाना जा सकता है । | ||
बृहस्पतिजी ने कहा था—अपनी माया से पुरुष रूप धारण करने वाले | बृहस्पतिजी ने कहा था—अपनी माया से पुरुष रूप धारण करने वाले भगवान श्रीकृष्ण ने जब सृष्टि के लिये संकल्प किया, तब इनके दिव्य विग्रह से तीन पुरुष प्रकट हुए। इनमें रजोगुण की प्रधानता से ब्रम्हा, सत्वगुण की प्रधानता से विष्णु और तमोगुण की प्रधानता से रूद्र प्रकट हुए। भगवान ने इन तीनों को क्रमशः जगत् की उत्पत्ति, पालन और संहार करने का अधिकार प्रदान किया । तब भगवान के नाभि-कमल से उत्पन्न हुए ब्रम्हाजी ने उनसे अपना मनोभाव यों प्रकट किया। | ||
ब्रम्हाजी ने कहा—परमात्मन्! आप नार अर्थात् जल में शयन करने के कारण ‘नारायण’ नाम से प्रसिद्ध हैं; आपको नमस्कार है ॥ २३ ॥ प्रभो! आपने मुझे सृष्टि कर्म में लगाया है, मगर मुझे भय है कि सृष्टि काल में अत्यन्त पापात्मा रजोगुण आपकी स्मृति में कहीं बाधा न डालने लग जाय। अतः कृपा करके ऐसी कोई बात बतायें, जिससे आपकी याद बराबर बनी रहे । | ब्रम्हाजी ने कहा—परमात्मन्! आप नार अर्थात् जल में शयन करने के कारण ‘नारायण’ नाम से प्रसिद्ध हैं; आपको नमस्कार है ॥ २३ ॥ प्रभो! आपने मुझे सृष्टि कर्म में लगाया है, मगर मुझे भय है कि सृष्टि काल में अत्यन्त पापात्मा रजोगुण आपकी स्मृति में कहीं बाधा न डालने लग जाय। अतः कृपा करके ऐसी कोई बात बतायें, जिससे आपकी याद बराबर बनी रहे । | ||
बृहस्पतिजी कहते हैं—जब ब्रम्हाजी ने ऐसी प्रार्थना की, तब पूर्व काल में | बृहस्पतिजी कहते हैं—जब ब्रम्हाजी ने ऐसी प्रार्थना की, तब पूर्व काल में भगवान ने उन्हें श्रीमद्भागवत का उपदेश देकर कहा—‘ब्रम्हन्! तुम अपने मनोरथ की सिद्धि के लिये सदा ही इसका सेवन करते रहो’ । | ||
ब्रम्हाजी श्रीमद्भागवत का उपदेश पाकर बड़े प्रसन्न हुए और उन्होंने श्रीकृष्ण की नित्य प्राप्ति के लिये तथा सात आवरणों का भंग करने के लिये श्रीमद्भागवत का सप्ताह पारायण किया । | ब्रम्हाजी श्रीमद्भागवत का उपदेश पाकर बड़े प्रसन्न हुए और उन्होंने श्रीकृष्ण की नित्य प्राप्ति के लिये तथा सात आवरणों का भंग करने के लिये श्रीमद्भागवत का सप्ताह पारायण किया । | ||
सप्ताह यज्ञ की विधि से सात दिनों तक श्रीमद्भागवत का सेवन करने से ब्रम्हाजी के सभी मनोरथ पूर्ण हो गये। इससे वे सदा भगवत्स्मरण पूर्वक सृष्टि का विस्तार करते और बारंबार सप्ताह यज्ञ का अनुष्ठान करते रहते हैं । | सप्ताह यज्ञ की विधि से सात दिनों तक श्रीमद्भागवत का सेवन करने से ब्रम्हाजी के सभी मनोरथ पूर्ण हो गये। इससे वे सदा भगवत्स्मरण पूर्वक सृष्टि का विस्तार करते और बारंबार सप्ताह यज्ञ का अनुष्ठान करते रहते हैं । |
१२:४९, २९ जुलाई २०१५ के समय का अवतरण
तृतीय (3) अध्याय
इस पवित्र भारतवर्ष में मनुष्य का जन्म पाकर भी जिन लोगों ने पाप के अधीन होकर श्रीमद्भागवत नहीं सुना, उन्होंने मानो अपने ही हाथों अपनी हत्या कर ली । जिन बड़भागियों ने प्रतिदिन श्रीमद्भागवत शास्त्र का सेवन किया है, उन्होंने अपने पिता, माता और पत्नी—तीनों के ही कुल का भलीभाँति उद्धार कर दिया । श्रीमद्भागवत के स्वाध्याय और श्रवण से ब्राम्हणों को विद्या का प्रकाश (बोध) प्राप्त होता है, क्षत्रिय लोग शत्रुओं पर विजय पते हैं, वैश्यों को धन मिलता है और शूद्र स्वस्थ—नीरोग बने रहते हैं । स्त्रियों तथा अन्त्यज आदि अन्य लोगों की भी इच्छा श्रीमद्भागवत से पूर्ण होती है; अतः कौन ऐसा भाग्यवान् पुरुष है, जो श्रीमद्भागवत का नित्य ही सेवन न करेगा । अनेकों जन्मों तक साधना करते-करते जब मनुष्य पूर्ण सिद्ध हो जाता है, तब उसे श्रीमद्भागवत की प्राप्ति होती है। भागवत से भगवान का प्रकाश मिलता है, जिससे भगवद्भक्ति उत्पन्न होती है । पूर्वकाल में सांख्यायन की कृपा से श्रीमद्भागवत बृहस्पतिजी को मिला और बृहस्पतिजी ने मुझे दिया; इसी से मैं श्रीकृष्ण का प्रियतम सखा हो सका हूँ । परीक्षित्! बृहस्पतिजी ने मुझे एक आख्यायिका भी सुनायी थी, उसे तुम सुनो। इस आख्यायिका से श्रीमद्भागवत श्रवण के सम्प्रदाय का क्रम भी जाना जा सकता है । बृहस्पतिजी ने कहा था—अपनी माया से पुरुष रूप धारण करने वाले भगवान श्रीकृष्ण ने जब सृष्टि के लिये संकल्प किया, तब इनके दिव्य विग्रह से तीन पुरुष प्रकट हुए। इनमें रजोगुण की प्रधानता से ब्रम्हा, सत्वगुण की प्रधानता से विष्णु और तमोगुण की प्रधानता से रूद्र प्रकट हुए। भगवान ने इन तीनों को क्रमशः जगत् की उत्पत्ति, पालन और संहार करने का अधिकार प्रदान किया । तब भगवान के नाभि-कमल से उत्पन्न हुए ब्रम्हाजी ने उनसे अपना मनोभाव यों प्रकट किया। ब्रम्हाजी ने कहा—परमात्मन्! आप नार अर्थात् जल में शयन करने के कारण ‘नारायण’ नाम से प्रसिद्ध हैं; आपको नमस्कार है ॥ २३ ॥ प्रभो! आपने मुझे सृष्टि कर्म में लगाया है, मगर मुझे भय है कि सृष्टि काल में अत्यन्त पापात्मा रजोगुण आपकी स्मृति में कहीं बाधा न डालने लग जाय। अतः कृपा करके ऐसी कोई बात बतायें, जिससे आपकी याद बराबर बनी रहे । बृहस्पतिजी कहते हैं—जब ब्रम्हाजी ने ऐसी प्रार्थना की, तब पूर्व काल में भगवान ने उन्हें श्रीमद्भागवत का उपदेश देकर कहा—‘ब्रम्हन्! तुम अपने मनोरथ की सिद्धि के लिये सदा ही इसका सेवन करते रहो’ । ब्रम्हाजी श्रीमद्भागवत का उपदेश पाकर बड़े प्रसन्न हुए और उन्होंने श्रीकृष्ण की नित्य प्राप्ति के लिये तथा सात आवरणों का भंग करने के लिये श्रीमद्भागवत का सप्ताह पारायण किया । सप्ताह यज्ञ की विधि से सात दिनों तक श्रीमद्भागवत का सेवन करने से ब्रम्हाजी के सभी मनोरथ पूर्ण हो गये। इससे वे सदा भगवत्स्मरण पूर्वक सृष्टि का विस्तार करते और बारंबार सप्ताह यज्ञ का अनुष्ठान करते रहते हैं । ब्रम्हाजी की ही भाँति विष्णु ने भी अपने अभीष्ट अर्थ की सिद्धि के लिये उन परमपुरुष परमात्मा से प्रार्थना की; क्योंकि उन पुरुषोत्तम ने विष्णु को भी प्रजा-पालन रूप कर्म में नियुक्त किया था ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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