"श्रीमद्भागवत माहात्म्य अध्याय 3 श्लोक 29-45": अवतरणों में अंतर
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विष्णु ने कहा—देव! मैं आपकी आज्ञा के अनुसार कर्म और ज्ञान के उद्देश्य से प्रवृत्ति और निवृत्ति के द्वारा यथोचित रूप से प्रजाओं का पालन करूँगा । काल क्रम से जब-जब धर्म की हानि होगी, तब-तब अनेकों अवतार धारण कर पुनः धर्म की स्थापना करूँगा । जो भोगों की इच्छा रखने वाले हैं, उन्हें अवश्य ही उनके किये हुए यज्ञादि कर्मों का फल अर्पण करूँगा; तथा जो संसार बन्धन से मुक्त होना चाहते हैं, विरक्त हैं, उन्हें उनके इच्छानुसार पाँच प्रकार की मुक्ति भी देता रहूँगा । परन्तु जो लोग मोक्ष भी नहीं चाहते, उनका पालन मैं कैसे करूँगा—यह बात समझ में नहीं आती। इसके अतिरिक्त मैं अपनी तथा लक्ष्मीजी की भी रक्षा कैसे कर सकूँगा, इसका उपाय भी बतलाइये । | विष्णु ने कहा—देव! मैं आपकी आज्ञा के अनुसार कर्म और ज्ञान के उद्देश्य से प्रवृत्ति और निवृत्ति के द्वारा यथोचित रूप से प्रजाओं का पालन करूँगा । काल क्रम से जब-जब धर्म की हानि होगी, तब-तब अनेकों अवतार धारण कर पुनः धर्म की स्थापना करूँगा । जो भोगों की इच्छा रखने वाले हैं, उन्हें अवश्य ही उनके किये हुए यज्ञादि कर्मों का फल अर्पण करूँगा; तथा जो संसार बन्धन से मुक्त होना चाहते हैं, विरक्त हैं, उन्हें उनके इच्छानुसार पाँच प्रकार की मुक्ति भी देता रहूँगा । परन्तु जो लोग मोक्ष भी नहीं चाहते, उनका पालन मैं कैसे करूँगा—यह बात समझ में नहीं आती। इसके अतिरिक्त मैं अपनी तथा लक्ष्मीजी की भी रक्षा कैसे कर सकूँगा, इसका उपाय भी बतलाइये । | ||
विष्णु की यह प्रार्थना सुनकर आदि पुरुष श्रीकृष्ण ने उन्हें भी श्रीमद्भागवत का उपदेश किया और कहा—‘तुम अपने मनोरथ की सिद्धि के लिये इस श्रीमद्भागवत-शास्त्र का सदा पाठ किया करो’ । उस उपदेश से विष्णु | विष्णु की यह प्रार्थना सुनकर आदि पुरुष श्रीकृष्ण ने उन्हें भी श्रीमद्भागवत का उपदेश किया और कहा—‘तुम अपने मनोरथ की सिद्धि के लिये इस श्रीमद्भागवत-शास्त्र का सदा पाठ किया करो’ । उस उपदेश से विष्णु भगवान का चित्त प्रसन्न हो गया और वे लक्ष्मीजी के साथ प्रत्येक मास में श्रीमद्भागवत का चिन्तन करने लगे। इससे वे परमार्थ का पालन और यथार्थ रूप से संसार की रक्षा करने में समर्थ हुए । | ||
जब | जब भगवान विष्णु स्वयं वक्ता होते हैं और लक्ष्मीजी प्रेम से श्रवण करती हैं, उस समय प्रत्येक बार भागवत कथा का श्रवण एक मास में ही समाप्त होता है । | ||
किन्तु जब लक्ष्मीजी स्वयं वक्ता होती हैं और विष्णु श्रोता बनकर सुनते हैं, तब भागवत कथा का रसास्वादन दो मास तक होता रहता है; उस समय कथा बड़ी सुन्दर बहुत रुचिकर होती है । | किन्तु जब लक्ष्मीजी स्वयं वक्ता होती हैं और विष्णु श्रोता बनकर सुनते हैं, तब भागवत कथा का रसास्वादन दो मास तक होता रहता है; उस समय कथा बड़ी सुन्दर बहुत रुचिकर होती है । | ||
इसका कारण यह है कि विष्णु तो अधिकारारूढ़ हैं, उन्हें जगत् के पालन की चिन्ता करनी पड़ती है; पर लक्ष्मीजी इन झंझटों से अलग हैं, अतः उनका ह्रदय निश्चिन्त है। इसी से लक्ष्मीजी के मुख से भागवत कथा का रसास्वादन अधिक प्रकाशित होता है। इसके पश्चात् रूद्र ने भी, जिन्हें | इसका कारण यह है कि विष्णु तो अधिकारारूढ़ हैं, उन्हें जगत् के पालन की चिन्ता करनी पड़ती है; पर लक्ष्मीजी इन झंझटों से अलग हैं, अतः उनका ह्रदय निश्चिन्त है। इसी से लक्ष्मीजी के मुख से भागवत कथा का रसास्वादन अधिक प्रकाशित होता है। इसके पश्चात् रूद्र ने भी, जिन्हें भगवान ने पहले संहार कार्य में लगाया था, अपनी सामर्थ्य की वृद्धि के लिये उन परम पुरुष भगवान श्रीकृष्ण से प्रार्थना की । | ||
रूद्र ने कहा—मेरे प्रभु देवदेव! मुझमें नित्य, नैमित्तिक और प्राकृत संहार की शक्तियाँ तो हैं, पर आत्यन्तिक संहार की शक्ति बिलकुल नहीं है। यह मेरे लिये बड़े दुःख की बात है। इसी कमी की पूर्ति के लिये मैं आपसे प्रार्थना करता हूँ । | रूद्र ने कहा—मेरे प्रभु देवदेव! मुझमें नित्य, नैमित्तिक और प्राकृत संहार की शक्तियाँ तो हैं, पर आत्यन्तिक संहार की शक्ति बिलकुल नहीं है। यह मेरे लिये बड़े दुःख की बात है। इसी कमी की पूर्ति के लिये मैं आपसे प्रार्थना करता हूँ । | ||
बृहस्पतिजी कहते हैं—रूद्र की प्रार्थना सुनकर नारायण ने उन्हें भी श्रीमद्भागवत का ही उपदेश किया। सदाशिव रूद्र ने एक वर्ष में एक पारायण के क्रम से भागवत कथा का सेवन किया। इसके सेवन से उन्होंने तमोगुण पर विजय पायी और आत्यन्तिक संहार (मोक्ष) की शक्ति भी प्राप्त कर ली । | बृहस्पतिजी कहते हैं—रूद्र की प्रार्थना सुनकर नारायण ने उन्हें भी श्रीमद्भागवत का ही उपदेश किया। सदाशिव रूद्र ने एक वर्ष में एक पारायण के क्रम से भागवत कथा का सेवन किया। इसके सेवन से उन्होंने तमोगुण पर विजय पायी और आत्यन्तिक संहार (मोक्ष) की शक्ति भी प्राप्त कर ली । | ||
उद्धवजी कहते हैं—श्रीमद्भागवत के माहात्म्य के सम्बन्ध में यह आख्यायिका मैंने अपने गुरु श्रीबृहस्पतिजी से सुनी और उनसे भागवत का उपदेश प्राप्त कर उनके चरणों में प्रणाम करके मैं बहुत आनन्दित हुआ । तत्पश्चात् | उद्धवजी कहते हैं—श्रीमद्भागवत के माहात्म्य के सम्बन्ध में यह आख्यायिका मैंने अपने गुरु श्रीबृहस्पतिजी से सुनी और उनसे भागवत का उपदेश प्राप्त कर उनके चरणों में प्रणाम करके मैं बहुत आनन्दित हुआ । तत्पश्चात् भगवान विष्णु कि रीति स्वीकार करके मैंने बी एक मास तक श्रीमद्भागवत कथा का भलीभाँति रसास्वादन किया । उतने से ही मैं भगवान श्रीकृष्ण का प्रियतम सखा हो गया। इसके पश्चात् भगवान ने मुझे व्रज में अपनी प्रियतमा गोपियों की सेवा में नियुक्त किया । | ||
१२:४९, २९ जुलाई २०१५ के समय का अवतरण
तृतीय (3) अध्याय
विष्णु ने कहा—देव! मैं आपकी आज्ञा के अनुसार कर्म और ज्ञान के उद्देश्य से प्रवृत्ति और निवृत्ति के द्वारा यथोचित रूप से प्रजाओं का पालन करूँगा । काल क्रम से जब-जब धर्म की हानि होगी, तब-तब अनेकों अवतार धारण कर पुनः धर्म की स्थापना करूँगा । जो भोगों की इच्छा रखने वाले हैं, उन्हें अवश्य ही उनके किये हुए यज्ञादि कर्मों का फल अर्पण करूँगा; तथा जो संसार बन्धन से मुक्त होना चाहते हैं, विरक्त हैं, उन्हें उनके इच्छानुसार पाँच प्रकार की मुक्ति भी देता रहूँगा । परन्तु जो लोग मोक्ष भी नहीं चाहते, उनका पालन मैं कैसे करूँगा—यह बात समझ में नहीं आती। इसके अतिरिक्त मैं अपनी तथा लक्ष्मीजी की भी रक्षा कैसे कर सकूँगा, इसका उपाय भी बतलाइये । विष्णु की यह प्रार्थना सुनकर आदि पुरुष श्रीकृष्ण ने उन्हें भी श्रीमद्भागवत का उपदेश किया और कहा—‘तुम अपने मनोरथ की सिद्धि के लिये इस श्रीमद्भागवत-शास्त्र का सदा पाठ किया करो’ । उस उपदेश से विष्णु भगवान का चित्त प्रसन्न हो गया और वे लक्ष्मीजी के साथ प्रत्येक मास में श्रीमद्भागवत का चिन्तन करने लगे। इससे वे परमार्थ का पालन और यथार्थ रूप से संसार की रक्षा करने में समर्थ हुए । जब भगवान विष्णु स्वयं वक्ता होते हैं और लक्ष्मीजी प्रेम से श्रवण करती हैं, उस समय प्रत्येक बार भागवत कथा का श्रवण एक मास में ही समाप्त होता है । किन्तु जब लक्ष्मीजी स्वयं वक्ता होती हैं और विष्णु श्रोता बनकर सुनते हैं, तब भागवत कथा का रसास्वादन दो मास तक होता रहता है; उस समय कथा बड़ी सुन्दर बहुत रुचिकर होती है । इसका कारण यह है कि विष्णु तो अधिकारारूढ़ हैं, उन्हें जगत् के पालन की चिन्ता करनी पड़ती है; पर लक्ष्मीजी इन झंझटों से अलग हैं, अतः उनका ह्रदय निश्चिन्त है। इसी से लक्ष्मीजी के मुख से भागवत कथा का रसास्वादन अधिक प्रकाशित होता है। इसके पश्चात् रूद्र ने भी, जिन्हें भगवान ने पहले संहार कार्य में लगाया था, अपनी सामर्थ्य की वृद्धि के लिये उन परम पुरुष भगवान श्रीकृष्ण से प्रार्थना की । रूद्र ने कहा—मेरे प्रभु देवदेव! मुझमें नित्य, नैमित्तिक और प्राकृत संहार की शक्तियाँ तो हैं, पर आत्यन्तिक संहार की शक्ति बिलकुल नहीं है। यह मेरे लिये बड़े दुःख की बात है। इसी कमी की पूर्ति के लिये मैं आपसे प्रार्थना करता हूँ । बृहस्पतिजी कहते हैं—रूद्र की प्रार्थना सुनकर नारायण ने उन्हें भी श्रीमद्भागवत का ही उपदेश किया। सदाशिव रूद्र ने एक वर्ष में एक पारायण के क्रम से भागवत कथा का सेवन किया। इसके सेवन से उन्होंने तमोगुण पर विजय पायी और आत्यन्तिक संहार (मोक्ष) की शक्ति भी प्राप्त कर ली । उद्धवजी कहते हैं—श्रीमद्भागवत के माहात्म्य के सम्बन्ध में यह आख्यायिका मैंने अपने गुरु श्रीबृहस्पतिजी से सुनी और उनसे भागवत का उपदेश प्राप्त कर उनके चरणों में प्रणाम करके मैं बहुत आनन्दित हुआ । तत्पश्चात् भगवान विष्णु कि रीति स्वीकार करके मैंने बी एक मास तक श्रीमद्भागवत कथा का भलीभाँति रसास्वादन किया । उतने से ही मैं भगवान श्रीकृष्ण का प्रियतम सखा हो गया। इसके पश्चात् भगवान ने मुझे व्रज में अपनी प्रियतमा गोपियों की सेवा में नियुक्त किया ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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