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लेख सूचना
अनार्य
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1
पृष्ठ संख्या 115,116
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक सुधाकर पाण्डेय
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1973 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक राजबलि पांडेय ।

अनार्य इसका प्रयोग प्रजातीय और नैतिक दोनों अर्थो में होता है। ऐसा व्यक्ति जो आर्य प्रजाति का न हो, अनार्य कहलाता है। आर्येतर अर्थात्‌ किरात (मंगोल), हबशी (निग्रो), सामी, हामी, आग्नेय (ऑस्ट्रिक) आदि किसी मानव प्रजाति का व्यक्ति । ऐसे प्रदेश को भी अनार्य कहते हैं जहाँ आर्य न बसते हों। इसलिए म्लेच्छ को भी कभी कभी अनार्य कहा जाता है। अनार्य प्रजाति की भाँति अनार्य भाषा, अनार्य धर्म अथवा अनार्य संस्कृति का प्रयोग भी मिलता है। नैतिक अर्थ में अनार्य का प्रयोग असंमान्य, ग्राम्य, नीच, आर्य के लिए अयोग्य, अनार्य के लिए ही अनुरूप आदि के अर्थ में होता है। (अनार्य के विलोम के लिए द्र. 'आर्य')।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ