"महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 145 भाग-13": अवतरणों में अंतर

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==पन्चचत्वारिंशदधिकशततम (145) अध्‍याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)==
==पञ्चचत्वारिंशदधिकशततम (145) अध्‍याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)==
<h4 style="text-align:center;">विविध प्रकार के कर्म् फलोंका वर्णन </h4>
<h4 style="text-align:center;">विविध प्रकार के कर्म् फलोंका वर्णन </h4>
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: अनुशासन पर्व: पन्चचत्वारिंशदधिकशततम अध्याय: भाग-13 का हिन्दी अनुवाद</div>
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: अनुशासन पर्व: पञ्चचत्वारिंशदधिकशततम अध्याय: भाग-13 का हिन्दी अनुवाद</div>


दूसरे जो लोग याचकों के माँगने पर दान देते ही हैं और जब-जब याचक ने माँगा, तब-तब उसे दान देकर उसके पुनः याचना करने पर फिर दान दे देते हैं, देवि! वे मनुष्य पुनर्जन्म पाने पर यत्न और परिश्रम से बारंबार उन दान-कर्मों के फल पाते रहते हैं। कुछ लोग ऐसे हैं, जो याचना करने पर भी याचक को कुछ नहीं देते। उनका चित्त लोभ से दूषित होता है और वे सदा दूसरों के दोष ही देखा करते हैं।
दूसरे जो लोग याचकों के माँगने पर दान देते ही हैं और जब-जब याचक ने माँगा, तब-तब उसे दान देकर उसके पुनः याचना करने पर फिर दान दे देते हैं, देवि! वे मनुष्य पुनर्जन्म पाने पर यत्न और परिश्रम से बारंबार उन दान-कर्मों के फल पाते रहते हैं। कुछ लोग ऐसे हैं, जो याचना करने पर भी याचक को कुछ नहीं देते। उनका चित्त लोभ से दूषित होता है और वे सदा दूसरों के दोष ही देखा करते हैं।

०५:५१, २७ जुलाई २०१५ के समय का अवतरण

पञ्चचत्वारिंशदधिकशततम (145) अध्‍याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)

विविध प्रकार के कर्म् फलोंका वर्णन

महाभारत: अनुशासन पर्व: पञ्चचत्वारिंशदधिकशततम अध्याय: भाग-13 का हिन्दी अनुवाद

दूसरे जो लोग याचकों के माँगने पर दान देते ही हैं और जब-जब याचक ने माँगा, तब-तब उसे दान देकर उसके पुनः याचना करने पर फिर दान दे देते हैं, देवि! वे मनुष्य पुनर्जन्म पाने पर यत्न और परिश्रम से बारंबार उन दान-कर्मों के फल पाते रहते हैं। कुछ लोग ऐसे हैं, जो याचना करने पर भी याचक को कुछ नहीं देते। उनका चित्त लोभ से दूषित होता है और वे सदा दूसरों के दोष ही देखा करते हैं। शुभे! ऐसे लोग फिर जन्म लेने पर बहुत यत्न करते रहते हैं तो भी कुछ नहीं पाते। बहुत ढूँढने पर भी उन्हें कोई भोग सुलभ नहीं होता। जैसे बीज बोये बिना खेती नहीं उपजती, यही बात दान के फल के विषय में समझनी चाहिये- दिये बिना किसी को कुछ नहीं मिलता। मनुष्य जो-जो देता है, केवल उसी को पाता है। देवि! यह विषय तुम्हें बताया गया। अब और क्या सुनना चाहती हो? उमा ने पूछा- भगवन्! भगदेवता का नेत्र कष्ट करने वाले महादेव! कुछ लोग बूढ़े हो जाने पर, जब कि उनके लिये भोग भोगने योग्य समय नहीं रह जाता, बहुत से भोग और धन पा जाते हैं। वे वृद्ध होने पर भी जहाँ-तहाँ से भोग और ऐश्वर्य प्राप्त कर लेते हैं, ऐसा किस कर्म-विपाक से सम्भव होता है? यह मुझे बताइये। श्रीमहेश्वर ने कहा- देवि! मैं प्रसन्नतापूर्वक तुमसे इसका उत्तर देता हूँ, तुम एकाग्रचित्त होकर इसका तात्विक विषय सुनो। जो लोग धन से सम्पन्न होने पर भी दीर्घकाल तक धर्म कार्य को भूले रहते हैं और जब रोगों से पीडि़त होते हैं, तब प्राणान्त-काल निकट आने पर धर्म करना या दान देना आरम्भ करते हैं, शुभे! वे पुनर्जन्म लेने पर दुःख में मग्न हो यौवन का समय बीत जाने पर जब बूढ़े होते हैं, तब पहले के दिये हुए दानों के फल पाते हैं। शुभलक्षणे! देवि! यह कर्म-फल काल-योग से प्राप्त होता है। उमा ने पूछा- महादेव! कुछ लोग युवावस्था में ही भोग से सम्पन्न होने पर भी रोगों से पीडि़त होने के कारण उन्हें भोगने में असमर्थ हो जाते हैं, इसका क्या कारण है?श्रीमहेश्वर ने कहा- शुभलक्षणे! जो रोगों से कष्ट में पड़ जाने पर जब जीवन से निराश हो जाते हैं, तब दान करना आरम्भ करते हैं। शुभे! वे ही पुनर्जन्म लेने पर उन फलों को पाकर रोगों से आक्रान्त हो उन्हें भोगने में असमर्थ हो जाते हैं। उमा ने पूछा- भगवन्! देवदेवेश्वर! मनुष्यों में कुछ ही लोग रूपवान्!, शुभ लक्षणसम्पन्न और प्रियदर्शन (परम मनोहर) देखे जाते हैं, किस कर्मविपाक से ऐसा होता है? यह मुझे बताइये।। श्रीमहेश्वर ने कहा- देवि! मैं प्रसन्नतापूर्वक इसका रहस्य बताता हूँ। तुम एकाग्रचित्त होकर सुनो। जो मनुष्य पूर्वजन्म में लज्जायुक्त, प्रिय वचन बोलने वाले,शक्तिशाली और सदा स्वभावतः मधुर स्वभाववाले होकर सर्वदा समस्त प्राणियों पर दया करते हैं, कभी मांस नहीं खाते हैं, धर्म के उद्देश्य से वस्त्र और आभूषणों का दान करते हैं, भूमि की शुद्धि करते हैं, कारणवश अग्नि की पूजा करते हैं, ऐसे सदाचार सम्पन्न मनुष्य पुनर्जन्म लेने पर रूप-सौन्दर्य की दृष्टि से स्पृहणीय होते ही हैं, इसमें संशय नहीं है।। उमा ने पूछा- भगवन्! मनुष्यों में ही कुछ लोग बड़े कुरूप दिखायी देते हैं, इसमें कौन सा कर्मविपाक कारण है? यह मुझे बताइये। श्री महेश्वर ने कहा- कल्याणि! सुनो, मैं तुमको इसका कारण बतता हूँ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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