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'''जलविमान (Hydroplane)''' एक प्रकार की नाव है, जो अन्य नावों से भिन्न होती है। सामान्य नाव में विस्थापित जल का भार नाव के भार के समतुल्य होता है। सामान्य नाव को आगे बढ़ाने के लिये धक्का देना पड़ता है, जिससे जल में प्रतिरोध उत्पन्न होने से नाव आगे बढ़ती है। पर जलविमान में ऐसा नहीं होता। जलविमान ऐसा बना होता है कि उसका एक या एक से अधिक नत समतल, जो पेंदे में बने होते हैं, जल के प्रतिदबाव से नाव को ऊपर उठाकर तीव्र चाल से चलते हैं। इससे जल के संसर्गवाला तल कम हो जाता है, पर शेष
'''जलविमान (Hydroplane)''' एक प्रकार की नाव है, जो अन्य नावों से भिन्न होती है। सामान्य नाव में विस्थापित जल का भार नाव के भार के समतुल्य होता है। सामान्य नाव को आगे बढ़ाने के लिये धक्का देना पड़ता है, जिससे जल में प्रतिरोध उत्पन्न होने से नाव आगे बढ़ती है। पर जलविमान में ऐसा नहीं होता। जलविमान ऐसा बना होता है कि उसका एक या एक से अधिक नत समतल, जो पेंदे में बने होते हैं, जल के प्रतिदबाव से नाव को ऊपर उठाकर तीव्र चाल से चलते हैं। इससे जल के संसर्गवाला तल कम हो जाता है, पर शेष
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बाएँ,स्थिर स्थिति में : दाएँ, गतिशील]]
भाग पर दबाव बढ़ जाता है। नावें जब खड़ी रहती हैं तब वे द्रवस्थैतिक बल (hydrostatic force) पर आधारित होती है। जब वे जल का स्पर्श करके चलती हैं तब द्रवस्थैतिक बल प्राय: शून्य होता है और उसका आधार प्रधानतया द्रवगतिक प्रभाव होता है। जलविभाग की चाल इंजन शक्ति से चलनेवाली नावों से अधिक होती है, अथवा उसी चाल के लिय कम शक्तिवाले इंजन की आवश्कता पड़ती है। 1953 ई. से जलविमान की चाल में बराबर वृद्धि हो रही है।
भाग पर दबाव बढ़ जाता है। नावें जब खड़ी रहती हैं तब वे द्रवस्थैतिक बल (hydrostatic force) पर आधारित होती है। जब वे जल का स्पर्श करके चलती हैं तब द्रवस्थैतिक बल प्राय: शून्य होता है और उसका आधार प्रधानतया द्रवगतिक प्रभाव होता है। जलविभाग की चाल इंजन शक्ति से चलनेवाली नावों से अधिक होती है, अथवा उसी चाल के लिय कम शक्तिवाले इंजन की आवश्कता पड़ती है। 1953 ई. से जलविमान की चाल में बराबर वृद्धि हो रही है।


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लेख सूचना
जलविमान
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 4
पृष्ठ संख्या 424
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक राम प्रसाद त्रिपाठी
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1964 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक फूलदेवसहाय वर्मा

जलविमान (Hydroplane) एक प्रकार की नाव है, जो अन्य नावों से भिन्न होती है। सामान्य नाव में विस्थापित जल का भार नाव के भार के समतुल्य होता है। सामान्य नाव को आगे बढ़ाने के लिये धक्का देना पड़ता है, जिससे जल में प्रतिरोध उत्पन्न होने से नाव आगे बढ़ती है। पर जलविमान में ऐसा नहीं होता। जलविमान ऐसा बना होता है कि उसका एक या एक से अधिक नत समतल, जो पेंदे में बने होते हैं, जल के प्रतिदबाव से नाव को ऊपर उठाकर तीव्र चाल से चलते हैं। इससे जल के संसर्गवाला तल कम हो जाता है, पर शेष

चित्र:Ship.jpg

भाग पर दबाव बढ़ जाता है। नावें जब खड़ी रहती हैं तब वे द्रवस्थैतिक बल (hydrostatic force) पर आधारित होती है। जब वे जल का स्पर्श करके चलती हैं तब द्रवस्थैतिक बल प्राय: शून्य होता है और उसका आधार प्रधानतया द्रवगतिक प्रभाव होता है। जलविभाग की चाल इंजन शक्ति से चलनेवाली नावों से अधिक होती है, अथवा उसी चाल के लिय कम शक्तिवाले इंजन की आवश्कता पड़ती है। 1953 ई. से जलविमान की चाल में बराबर वृद्धि हो रही है।

जलविमान का विचार पहले पहल ससेक्स के एक अंग्रेज पादरी रेवरेंड चार्ल्स मीडं रेमन (Rev. Charles Meade Raman) के मन में 1870 ई. में उठा था, पर हल्के इंजन के अभाव में वे उसे व्यावहारिक रूप न दे सके। बाद में जब पेट्रोल इंजन का उपयोग शुरू हुआ तब जलविमान का विचार फिर उठा और 1906 ई. में पहला रिकोचेट जलविमान (Ricochet hydroplane) बना। इस जलविमान का पेंदा चिपटा था और नति के उपयुक्त कोण से इसका उतराना संभव हो सका। अन्य प्रकार के जलविमानों के पेंदे अनुप्रस्थ काट (cross section) में चिपटे थे पर उनका आकार आरे के सदृश लंबा था और उनमें अनेक नत समतल थे। नावों के संबंध में सर जॉन थॉर्निक्रॉफ्ट (Sir John Thornycroft) अनेक प्रयोग कर रहे थे। उन्होंने जलविमान तैयार करने की संभावनाओं पर विचार किया और अनुकूल प्रतीत होने पर जलविमान तैयार करने की संभावनाओं पर विचार किया और अनूकूल प्रतीत होने पर जलविमान तैयार करने में लग गए। उनका जलविमान एकपदीय नाव थी, जो दो नम समतलों से बनी थी। इन दोनों समतलों पर उसका भार बँटा हुआ था। अमरीका में फैबर (W.H. Fauber) और जार्ज क्राउच (George Crouch) ने ऐसे ही जलविमान बनाए। फिर एकपदीय जलविमान का व्यवहार व्यपक रूप से होने लगा, यद्यपि फिर एकपदीय जलविमान का व्यवहार व्यापक रूप से होने लगा, यद्यपि द्विपाद या बहुपाद किस्म के भी विमान बने। सन्‌ 1950 के लगभग ऐसे जलविमान बने जिनमें कोई पद नहीं था। ऐसी नावों के पेंदे V-आकार के होते थे और पिछला भाग (stern) चोड़ा होता जाता था।

1930 ई. के लगभग अमरीका में एक नए प्रकार का जलविमान बना, जिसका विकास ऐडोल्फ आपेल (Adolf Apel) ने किया था। यह तीन संकेतक (three pointer) जलविमान था। यह त्रिभुजाकार तीन समतलों से बना हुआ था। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद एक नए प्रकार का जलविमान बना, जिसमें नोदक आरोही (propeller-rider) लगा हुआ था। इससे जलविमान की चाल और भी अधिक बढ़ गई है।


टीका टिप्पणी और संदर्भ