"महाभारत आदि पर्व अध्याय 122 श्लोक 71-78": अवतरणों में अंतर

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==द्वाविंशत्यलधिकशततम (122) अध्‍याय: आदि पर्व (सम्भाव पर्व)==
==द्वाविंशत्यलधिकशततम (122) अध्‍याय: आदि पर्व (सम्भाव पर्व)==
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: आदि पर्व: द्वाविंशत्यलधिकशततम अध्‍याय: श्लोक 71-78 का हिन्दी अनुवाद</div>
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: आदि पर्व: द्वाविंशत्यलधिकशततम अध्‍याय: श्लोक 71-78 का हिन्दी अनुवाद</div>
कर्कोटक सर्प तथा बासुकि नाग, कश्‍यप और कुण्‍ड, महा नाग और तक्षक – ये तथा और भी बहुत-से महाबली, महाक्रोधी और तपस्‍वी वहां आकर खड़े थे । ताक्षर्य और अरिष्ट नेमि, गरुड़ एवं असितध्‍वज, अरुण तथा आरुणि- विनता के ये पुत्र भी उस उत्‍सव में उपस्थित थे । वे सब देवगण और पर्वत के शिखर पर खड़े थे। उन्‍हें तप:सिद्ध महर्षि ही देख पाते थे, दूसरे लोग नहीं । वह महान् आश्चर्य देखकर वे श्रेष्ठ मुनिगण बड़े विस्‍मय में पड़े। तब से पाण्‍डवों के प्रति उनमें अधिक प्रेम और आदर का भाव पैदा हो गया । तदतन्‍तर महायशस्‍वी राजा पाण्‍डु पुत्र- लोमस से आकृष्ट हो अपनी धर्म पत्नी कुन्‍ती से फि‍र कुछ कहना चाहते थे, किंतु कुन्‍ती उन्‍हें रोकती हुई बोली- । आर्यपुत्र ! आपत्ति काल में भी तीन से अधिक चौथी संतान उत्‍पन्न करने की आज्ञा शास्त्रों ने नहीं दी है। इस विधि के द्वारा तीन से अधिक चौथी संतान चाहने वाली स्त्री स्‍वैरिणी होती है और पांचवे पुत्र के उत्‍पन्न होने पर वह कुलटा समझी जाती है ।। विद्वन् ! आप धर्म को जानते हुए भी प्रमाद से कहने वाले के समान धर्म का लोप करके अब फि‍र मुझे संतानोत्‍पत्ति के लिये क्‍यों प्रेरित कर रहे हैं । पाण्‍डु ने कहा- प्रिये ! वास्‍तव में धर्मशास्त्र का ऐसा ही मत है। तुम जो कुछ कहती हो, वह ठीक है।


कर्कोटक सर्प तथा बासुकि नाग, कश्यतप और कुण्डश, महा नाग और तक्षक – ये तथा और भी बहुत-से महाबली, महाक्रोधी और तपस्वीस वहां आकर खड़े थे । ताक्षर्य और अरिष्ट नेमि, गरुड़ एवं असितध्व ज, अरुण तथा आरुणि- विनता के ये पुत्र भी उस उत्स।व में उपस्थित थे । वे सब देवगण और पर्वत के शिखर पर खड़े थे। उन्हेंो तप:सिद्ध महर्षि ही देख पाते थे, दूसरे लोग नहीं । वह महान् आश्चर्य देखकर वे श्रेष्ठ मुनिगण बड़े विस्मंय में पड़े। तब से पाण्डहवों के प्रति उनमें अधिक प्रेम और आदर का भाव पैदा हो गया । तदतन्तेर महायशस्वी  राजा पाण्डुप पुत्र- लोमस से आकृष्ट हो अपनी धर्म पत्नी कुन्ती  से फि‍र कुछ कहना चाहते थे, किंतु कुन्ती  उन्हें रोकती हुई बोली- । आर्यपुत्र ! आपत्ति काल में भी तीन से अधिक चौथी संतान उत्पान्न करने की आज्ञा शास्त्रों ने नहीं दी है। इस विधि के द्वारा तीन से अधिक चौथी संतान चाहने वाली स्त्री स्वैतरिणी होती है और पांचवे पुत्र के उत्प न्न होने पर वह कुलटा समझी जाती है ।। विद्वन् ! आप धर्म को जानते हुए भी प्रमाद से कहने वाले के समान धर्म का लोप करके अब फि‍र मुझे संतानोत्पतत्ति के लिये क्योंै प्रेरित कर रहे हैं । पाण्डुन ने कहा- प्रिये ! वास्ताव में धर्मशास्त्र का ऐसा ही मत है। तुम जो कुछ कहती हो, वह ठीक है




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==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
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११:४३, १३ अगस्त २०१५ के समय का अवतरण

द्वाविंशत्यलधिकशततम (122) अध्‍याय: आदि पर्व (सम्भाव पर्व)

महाभारत: आदि पर्व: द्वाविंशत्यलधिकशततम अध्‍याय: श्लोक 71-78 का हिन्दी अनुवाद

कर्कोटक सर्प तथा बासुकि नाग, कश्‍यप और कुण्‍ड, महा नाग और तक्षक – ये तथा और भी बहुत-से महाबली, महाक्रोधी और तपस्‍वी वहां आकर खड़े थे । ताक्षर्य और अरिष्ट नेमि, गरुड़ एवं असितध्‍वज, अरुण तथा आरुणि- विनता के ये पुत्र भी उस उत्‍सव में उपस्थित थे । वे सब देवगण और पर्वत के शिखर पर खड़े थे। उन्‍हें तप:सिद्ध महर्षि ही देख पाते थे, दूसरे लोग नहीं । वह महान् आश्चर्य देखकर वे श्रेष्ठ मुनिगण बड़े विस्‍मय में पड़े। तब से पाण्‍डवों के प्रति उनमें अधिक प्रेम और आदर का भाव पैदा हो गया । तदतन्‍तर महायशस्‍वी राजा पाण्‍डु पुत्र- लोमस से आकृष्ट हो अपनी धर्म पत्नी कुन्‍ती से फि‍र कुछ कहना चाहते थे, किंतु कुन्‍ती उन्‍हें रोकती हुई बोली- । आर्यपुत्र ! आपत्ति काल में भी तीन से अधिक चौथी संतान उत्‍पन्न करने की आज्ञा शास्त्रों ने नहीं दी है। इस विधि के द्वारा तीन से अधिक चौथी संतान चाहने वाली स्त्री स्‍वैरिणी होती है और पांचवे पुत्र के उत्‍पन्न होने पर वह कुलटा समझी जाती है ।। विद्वन् ! आप धर्म को जानते हुए भी प्रमाद से कहने वाले के समान धर्म का लोप करके अब फि‍र मुझे संतानोत्‍पत्ति के लिये क्‍यों प्रेरित कर रहे हैं । पाण्‍डु ने कहा- प्रिये ! वास्‍तव में धर्मशास्त्र का ऐसा ही मत है। तुम जो कुछ कहती हो, वह ठीक है।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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