"भगवद्गीता -राधाकृष्णन पृ. 67": अवतरणों में अंतर
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१०:५९, २२ सितम्बर २०१५ के समय का अवतरण
अर्जुन की दुविधा और विषाद
9.अन्ये च बहवः शूरा मदर्थे त्यक्तजीविताः।
नानाशस्त्रप्रहरणाः सर्वे युद्धविशारदाः।।
और भी अनेक योद्धा हैं, जिन्होने मेरे लिए अपने प्राणों को संकट में डाल दिया है। वे तरह-तरह के शस्त्रों से सज्जित हैं और सब के सब युद्ध में प्रवीण हैं।
10.अपर्याप्तं तदस्माकं बलं भीष्माभिरक्षितम् ।
पर्याप्तं त्विदमेतेषां बलं भीमाभिरक्षितम् ।।
हमारी यह सेना, जिसकी रक्षा भीष्म कर रहे हैं, अपार है, जबकि पाण्डवों की सेना, जिसकी रक्षा भीम कर रहा है, बहुत सीमित है। अपर्याप्तम्ः अपर्याप्त् जो काफी नहीं है। - श्रीधर।
11.अयनेषु च सर्वेषु यथाभागमवस्थिताः ।
भीष्ममेवाभिरक्षन्तु भवन्तः सर्व एव हि।।
इसलिये आप सब लोग अपने-अपने स्थानों पर रहते हुए सब मोर्चों पर दृढ़ता से जमकर सब ओर से भीष्म की ही रक्षा करें।
12.तस्य संजनयन्हर्ष कुरुवृद्धः पितामहः ।
सिंहनादं विनद्योच्चैः शंख दध्मौ प्रतापवान।।
उसे आनन्दित करने के लिए वयोवृद्ध कुरु, प्रतापी पितामह, ने सिंह की भाँति जोर की गर्जना की और अपना शंख बजाया। उसकी तथा अन्य लोगों की दृष्टि में कर्तव्य का पालन व्यक्तिगत विश्वास की अपेक्षा कहीं अधिक महत्वपूर्ण था। सामाजिक व्यवस्था सामान्यता सत्ता (प्राधिकार) के प्रति आज्ञापालन पर निर्भर रहती है। क्या सुकरात ने क्रिटो से नहीं कहा था कि वह ऐथन्स के उन कानूनों को नहीं तोडे़गा, जिन्होंने उसका पालन-पोषण किया है, उसकी रक्षा की है और सदा उसका ध्यान रखा है? सिंह की भांति जोर से गर्जना कीः भीष्म ने दृढ़ता के साथ आत्म विश्वास प्रकट किया।
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