"भीमस्वामी": अवतरणों में अंतर
नेविगेशन पर जाएँ
खोज पर जाएँ
[अनिरीक्षित अवतरण] | [अनिरीक्षित अवतरण] |
Bharatkhoj (वार्ता | योगदान) No edit summary |
Bharatkhoj (वार्ता | योगदान) No edit summary |
||
(इसी सदस्य द्वारा किए गए बीच के ३ अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति १: | पंक्ति १: | ||
{{भारतकोश पर बने लेख}} | |||
{{ | {{ | ||
लेख सूचना | लेख सूचना | ||
पंक्ति ४: | पंक्ति ५: | ||
|पृष्ठ संख्या=34 | |पृष्ठ संख्या=34 | ||
|भाषा=हिन्दी देवनागरी | |भाषा=हिन्दी देवनागरी | ||
|लेखक = | |लेखक =रामचंद्र पांडेय | ||
|संपादक=फुलदेवसहाय वर्मा | |संपादक=फुलदेवसहाय वर्मा | ||
|आलोचक= | |आलोचक= | ||
पंक्ति १६: | पंक्ति १७: | ||
|टिप्पणी= | |टिप्पणी= | ||
|शीर्षक 1= | |शीर्षक 1= | ||
|पाठ 1= | |पाठ 1= | ||
|शीर्षक 2= | |शीर्षक 2= | ||
|पाठ 2= | |पाठ 2= | ||
पंक्ति २५: | पंक्ति २६: | ||
'''भीमस्वामी''' छठी शताब्दी ई० के अंतिम चरण में इनकी स्थिति मानी जाती है। इनका 'रावणार्जुनीय काव्य' प्रसिद्ध है। 27 सर्गों वाले इस काव्य में कार्तवीर्य अर्जुन तथा रावण के युद्ध का वर्णन है। भट्टि काव्य की तरह इस काव्य में भी काव्य के बहाने संस्कृत व्याकरण के नियमों के उदाहरण उपस्थित किए गए हैं जिससे काव्यपक्ष कमजोर हो गया है। | '''भीमस्वामी''' छठी शताब्दी ई० के अंतिम चरण में इनकी स्थिति मानी जाती है। | ||
*इनका 'रावणार्जुनीय काव्य' प्रसिद्ध है। 27 सर्गों वाले इस काव्य में कार्तवीर्य अर्जुन तथा रावण के युद्ध का वर्णन है। | |||
*भट्टि काव्य की तरह इस काव्य में भी काव्य के बहाने संस्कृत व्याकरण के नियमों के उदाहरण उपस्थित किए गए हैं जिससे काव्यपक्ष कमजोर हो गया है। | |||
पंक्ति ३२: | पंक्ति ३५: | ||
==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ||
<references/> | <references/> | ||
{{भारत के कवि}} | |||
[[Category:हिन्दी विश्वकोश]] | [[Category:कवि]][[Category:हिन्दी विश्वकोश]][[Category:नया पन्ना]] | ||
__INDEX__ | __INDEX__ |
१२:०७, २३ सितम्बर २०१५ के समय का अवतरण
चित्र:Tranfer-icon.png | यह लेख परिष्कृत रूप में भारतकोश पर बनाया जा चुका है। भारतकोश पर देखने के लिए यहाँ क्लिक करें |
भीमस्वामी
| |
पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 9 |
पृष्ठ संख्या | 34 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
लेखक | रामचंद्र पांडेय |
संपादक | फुलदेवसहाय वर्मा |
प्रकाशक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1967 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
भीमस्वामी छठी शताब्दी ई० के अंतिम चरण में इनकी स्थिति मानी जाती है।
- इनका 'रावणार्जुनीय काव्य' प्रसिद्ध है। 27 सर्गों वाले इस काव्य में कार्तवीर्य अर्जुन तथा रावण के युद्ध का वर्णन है।
- भट्टि काव्य की तरह इस काव्य में भी काव्य के बहाने संस्कृत व्याकरण के नियमों के उदाहरण उपस्थित किए गए हैं जिससे काव्यपक्ष कमजोर हो गया है।
|
|
|
|
|