"अहिर्बुध्न्य संहिता": अवतरणों में अंतर
[अनिरीक्षित अवतरण] | [अनिरीक्षित अवतरण] |
Bharatkhoj (वार्ता | योगदान) ('{{लेख सूचना |पुस्तक नाम=हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1 |पृष्ठ स...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
Bharatkhoj (वार्ता | योगदान) No edit summary |
||
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति १: | पंक्ति १: | ||
{{भारतकोश पर बने लेख}} | |||
{{लेख सूचना | {{लेख सूचना | ||
|पुस्तक नाम=हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1 | |पुस्तक नाम=हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1 | ||
पंक्ति २६: | पंक्ति २७: | ||
==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | |||
<references/> | |||
[[Category:नया पन्ना]] | |||
[[Category:हिन्दी विश्वकोश]] | [[Category:हिन्दी विश्वकोश]] | ||
__INDEX__ | __INDEX__ | ||
०६:२३, ९ जून २०१८ के समय का अवतरण
चित्र:Tranfer-icon.png | यह लेख परिष्कृत रूप में भारतकोश पर बनाया जा चुका है। भारतकोश पर देखने के लिए यहाँ क्लिक करें |
अहिर्बुध्न्य संहिता
| |
पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1 |
पृष्ठ संख्या | 320 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पाण्डेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1964 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | डा० विश्वनाथ गौड़ |
अहिर्बुध्न्य संहिता पाँचरात्र साहित्य का एक अत्यंत महत्वपूर्ण ग्रंथ है। विष्णुभक्ति का जो दार्शनिक अथवा वैचारिक पक्ष है, उसी का एक प्राचीन नाम पाँचरात्र भी है। परमतत्व, मुक्ति, भुक्ति, योग तथा विषय (संसार) का विवेचन होने के कारण इस साहित्य का यह नामकरण किया गया है। नारद पाँचरात्र और इस संहिता में उक्त नामकरण का यही अर्थ बतलाया गया है। पाँचरात्र साहित्य का रचनाकाल सामान्यतया ईसापूर्व चतुर्थ शती से ईसोत्तर चतुर्थ शती के बीच माना जाता है। पाँचरात्र संहिताओं की संख्या लगभग 215 बतलाई जाती है, जिनमें अब तक लगभग 16 संहिताओं का प्रकाशन हुआ है। अहिर्बुध्न्य संहिता का प्रकाशन 1916 ई. के दौरान तीन खंडों में हुआ था। इसमें आठ अध्याय हैं, जिनमें ज्ञान, योग, क्रिया, चर्या तथा वैष्णवों के सामान्य आचारपक्ष के प्रामाणिक विवेचन के साथ-साथ वैष्णव दर्शन के आध्यात्मिक प्रमेयों की भी प्रामाणिक व्याख्या दी गई है। अन्य अनेक संहिताओं से इसकी विशेषता यह है कि इसमें तांत्रिक ग्रंथों की तरह ही तांत्रिक योग का भी सांगोपांग विवेचन किया गया है, यद्यपि भक्ति की महिमा यहाँ कम नहीं है। इसमें भेदाभेदवाद का भी पर्याप्त व्याख्यान है। इसी आधार पर कुछ विद्वान् रामानुज दर्शन की भूमिका के लिए पाँचरात्र दर्शन को महत्वपूर्ण मानते हैं।
टीका टिप्पणी और संदर्भ