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असुरबनिपाल
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1 |
पृष्ठ संख्या | 309 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पाण्डेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1964 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | डा० भगवत शरण उपाद्याय |
असुरबनिपाल (669-623 ई.पू.) असुर (असूरियाई) जाति का प्रसिद्ध पुराविद् सम्राट्। असुरों ने अरमनी पहाड़ों के दक्षिण और दजला फरात नदियों के उपरले द्वाब से उठकर समूचे द्वाब, नदियों के मुहानों तक बाबुल और प्राचीन सुमेर के नगरों पर अधिकार कर लिया था। असुरबनिपाल के पूर्वज तिगलाथ पिलेसर और असुरनज़ीरपाल की विजयों ने असुर साम्राज्य की सीमाएँ ईरान, कृष्ण ओर भूमध्य सागर तथा नील नदी तक फैला दी थीं। असुरबनिपाल उसी साम्राज्य का अधिकारी हुआ और एसारहद्दन की मृत्यु के बाद निनेवे की गद्दी पर बैठा उसे पिता ने अपना साम्राज्य दोनों बेटों में बाँट दिया था। छोटे बेटे शमश्-शुम-उकिन को उसने बाबुल दिया था और बड़े बेटे असुरबनिपाल को शेष साम्राज्य, यद्यपि बाबुल को उसने निनेवे का सामंतराज्य घोषित किया।
असुरबनिपाल ने प्राय: आधी सदी राज किया। उसका शासनकाल घटनाओं से भरा था। गद्दी पर बैठते ही पहले वह मिस्र के विद्रोही फराउन को दंड देने के लिए बढ़ा और उसे कारबानित में परास्त कर उसने उसकी राजधानी मेंफिस पर अधिकार कर लिया। फिर उस देश के राजाओं को परास्त करता वह निनेवे लौटा, पर अधिकार कर लिया। फिर उस देश के राजाओं को परास्त करता वह निनेवे लौटा, पर उसके लौटते ही मिस्र के राजाओं ने फिर सिर उठाया और उसे थीविज़ की ओर फिर लौटना पड़ा। लौटते समय राह में उसने फिनीकिय जीता और सागर पार दूर के लीदिया से आए दूतमंडल की भेंट उसने स्वीकार की। असुरशक्ति अत्कर्ष की चोटी चूमने लगी।
असुरबनिपाल की विजयों का तांता फिर नहीं टूटा। दक्षिणी ईरान में अवस्थित एलाम ने कभी बाबुल पर आक्रमण किय था। असुरबनिपाल ने उसका बदला लिया और उसकी चोट से एलामी राजा की सेनाएँ शूषा की ओर भागीं। असुरबनिपाल ने उनका पीछा किया। तूलिज के युद्ध में एलामी राजा-ते-उम्मान को परास्त कर असुरबनिपाल ने एलाम का राज्य अपने विश्वासपात्र को दिया। यह घटना अभिलेख द्वारा अमर कर दी गई। पश्चात् असुरबनिपाल को भाई के षड्यंत्र के बाबुल, एलाम, फिलीस्तीन और फिनीकिया की सम्मिलित सेनाओं का सामना करना पड़ा। उसने बड़ी योग्यता से एक एक प्रतिद्वंद्वी का नाश किया और एलाम को इतिहास से मिटा दिया। फिर वह अरब, ईदोन और दमिश्क होता, राह में शत्रुओं को नष्ट करता, पत्नी के साथ निनेवे लौटा और 635 ई.पू. में उसने वहाँ अपनी दिग्विजयों का उत्सव मनाया। ईश्वर के मंदिर तक उसने जो अपना रथ हाँका उसे उसके बंदी राजाओं ने खींचा। इस शक्ति की कशमकश के बीच मिस्र निश्चय स्वतंत्र हो गया।
असुरबनिपाल का नाम उसकी विजयों से भी अधिक असूरी संस्कृति के साथ संलग्न है। वह संसार का पहला पुराविद् था पहला संग्रहकर्ता। उसके शासनकाल में असुर लेखकों ने सुमेर और बाबुल से सीखी कीलनुमा लिखावट में हजारों ग्रंथ ईटों पर लिख डाले। अभी हाल खोद निकाले निनेवे के ग्रंथागार में लाखों ईटों पर लिखे हजारों ग्रंथ असुरबनिपाल ने संग्रह किए थे जिनमें से अनेक आज यूरोप और अमरीका के संग्रहालयों में सुरक्षित हैं। जलप्रलय के वृतांत का संचालक, मानव जाति का पहला वीरकाव्य 'गिलगमेश' निनेवे में संग्रहीत असुरबनिपाल के इसी ग्रंथागार की ईटों पर खुदा मिला है।
टीका टिप्पणी और संदर्भ