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उत्सर्पिणी
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 2 |
पृष्ठ संख्या | 90 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पाण्डेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1964 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | कैलासचंद्र शर्मा |
उत्सर्पिणी जैनमतानुसार काल की एक विशिष्ट गति अथवा अवस्था जिसमें रूप, रस, गंध तथा स्पर्श इन चारों की क्रम से वृद्धि होती है।
टीका टिप्पणी और संदर्भ