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११:०६, १० जुलाई २०१८ के समय का अवतरण
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ऊदबिलाव
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 2 |
पृष्ठ संख्या | 183 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पाण्डेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1964 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | सुरेश सिंह (कुँवर) |
ऊद मांसभक्षी वर्ग का ढाई तीन फुट लंबा स्तनधारी जीव है जो अपना अधिक समय पानी में ही बिताता है। यह जल और स्थल दोनों पर बड़ी खूबी से तैर और चल लेता है। इसकी कई जातियाँ यूरोप तथा एशिया में फैली हुई जहाँ ये नदियों, झीलों और बड़े तालाबों के किनारे कई मुँहवाले बिल बनाकर रहती हैं।
ऊद का शरीर लंबा, टाँगें छोटी, सर चपटा और थूथन चौड़ा होता है। इसकी आँखें छोटी, मूँछे घनी और कान छोटे तथा गोलाकार होते हैं। पैरों की उँगलियाँ बत्तखों की तरह जालपाद होती हैं और पंजों में तेज नाखून रहते हैं। इनके शरीर का ऊपरी भाग कत्थई लिए भूरा और नीचे का सफेद रहता है। शरीर के बड़े वालों के नीचे छोटे और घने बालों की एक तह रहती है जिसका रंग सफेदी लिए रहता है। नर का भार 10-12 सेर और मादा का लगभग 8 सेर रहता है। नर मादा से कुछ बड़ा होता है।
ऊद की लुट्रा नाम की जाति संसार में सबसे अधिक संख्या में पाई जाती है। उत्तरी अमरीका में इसका स्थान लुट्रा कैनाडेन्सिस तथा दक्षिणी अमरीका, अफ्रीका और एशिया के दक्षिणी भागों में अन्य जातियाँ ले लेती हैं, परंतु इनकी आकृति तथा स्वभाव में अधिक भेद नहीं होता।
ऊद बहुत खिलाड़ी जीव हैं, जो पानी के भीतर मछलियों की तरह तैर लेते हैं। ये प्राय : 5-7 के समूह में रहते हैं और पानी में घेरा डालकर मछलियों का शिकार करते हैं। इनका मुख्य भोजन तो मछली ही है, परंतु ये पानी की चिडियाँ, छोटे जानवर, घोघें, कटुए तथा कीड़े मकोड़ों से भी अपना पेट भरते हैं। मादा अपने बिल में मार्च अप्रैल में दो तीन बच्चे जनती है जिनकी आँखें कुछ दिनों बाद खुलती हैं। ये बच्चे बहुत आसानी से पालतू हो जाते हैं और अपने मालिक के पीछे-पीछे कुत्तों की तरह फिरा करते हैं।
ऊद की एक जाति इनहाइड्रा लुट्रिस प्रशांत महासागर के उत्तरी भागों में कैलिफ़ोर्निया से अलास्का तक पाई जाती है। ये समुद्री ऊद लगभग 5 फुट लंबे होते हैं और इनका ऊर्णजिन (फ़र) संसार में सबसे सुंदर माना जाता है। इसी कारण इनका इतना शिकार हुआ कि यदि समय से इनके शिकार पर प्रतिबंध न लग गया होता तो अब तक इनका लोप हो गया होता।
समुद्री ऊद भूमि पर बहुत कम जाते हैं और बहुधा अपनी अगली टाँगों को सीने पर रखकर पानी में चित्त होकर तैरते रहते हैं। इनका भी मुख्य भोजन मछली है।
टीका टिप्पणी और संदर्भ