"स्टेफेनस जोहानेस पौलुस क्रुगर": अवतरणों में अंतर

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'''स्टेफेनस जोहानेस पौलुस क्रुगर''' (1825-1904 ई.)। ट्रांसवाल गणतंत्र का राष्ट्रपति। 10 अक्तूबर, 1825 ई. को कोल्सबर्ग (केपकालोनी) में जन्म हुआ था। दस वर्ष की अवस्था में वह अपने माता पिता के साथ केपकालोनी के बड़े भगदड़ के समय आरेंज के उत्तरी प्रदेश में चला आया। सभ्यता और असभ्यता के सीमावर्ती भूभाग में रहने के कारण उसका बचपन भागते, लड़ते, आखेट करते ही बीता इस कारण उसे विशेष शिक्षा प्राप्त न हो सकी। उसका साहित्यिक ज्ञान बाइबिल तक ही सीमित था। उसकी धारणा थी कि ईश्वर उसे विशेष रूप से निर्देश देते हैं। 25 वर्ष की अवस्था में धर्मोन्माद में जंगल में जाकर काफी दिनों अकेले रहा।
'''स्टेफेनस जोहानेस पौलुस क्रुगर''' (1869-1939 ई.)। लेनिन की सहधर्मिणी और मित्र तथा राष्ट्र और सोवियत कम्यूनिस्ट दल की नेत्री। इनका जन्म एक सैनिक परिवार में पेतरबुर्ग नामक नगर में हुआ था। 1809 ई. में इन्होंने रूसी क्रांति आंदोलन में सक्रिय भाग लिया। पेतरबुर्ग में लेनिन ने जिस मजदूरवर्ग मुक्ति संघर्ष संघ की स्थापना की थी उसमें क्रुप्स्काया ने 1895 ई. में योगदान किया। उन्होंने 1897 से 1900 ई. तक लेनिन के साथ साइबेरिया में निर्वासित जीवन व्यतीत किया। 1901 ई. में विदेश में रहकर ‘ईस्क्रा’ (स्फुलिंग), ‘ज़पिरोद’ (आगे की ओर) और ‘प्रलितारी’ (सर्वहारा) नामक बोलशेविक समाचार पत्रों के संपादकीय विभाग में सचिव का कार्य किया। अप्रैल, 1918 ई. में रूस लौटने के पश्चात्‌ कम्यूनिस्ट दल की केंद्रीय समिति (बोलशेविक) के कार्यालय में कार्य करती रहीं। 1927 ई. में कम्यूनिस्ट दल की केंद्रीय समिति की सदस्यता चुनी गई। 1929 ई. में रूसी संघात्मक यूनियन के शिक्षा विभाग में शिक्षा विभाग में डिप्टी पीपुल्स कमिश्नर नियुक्त हुई। जनता की शिक्षा के विषय में ये प्रभावशाली विचारक रही हैं। उन्होंने शिक्षाविज्ञान संबंधी अनेक लेख तथा लेनिन के संस्मरण लिखा हैं।


14 वर्ष की अवस्था में उसने मताबेले और जूलू लोगों के विरुद्ध संघर्ष में भाग लिया। इस प्रकार उसका परिवार ट्रांसवोल राज्य के स्थापकों में था। 17 वर्ष की अवस्था में वह सहायक फील्ड कार्नेट और 20 वर्ष की अवस्था में फील्ड कार्नेट बना। 27 वर्ष की अवस्था में बेचुआना के मुखिया शेचेले के विरुद्ध अभियान का नेतृत्व किया। इस अभियान में डेविड लिविंग्स्टन नामक सुविख्यात पादरी का घर नष्ट हो गया था। 1853 ई. में वह मांटासिओओ के विरुद्ध अभियान में सम्मिलित हुआ।


1952 ई. में ट्रांसवाल को ग्रेट ब्रिटेन से स्वतंत्रता की स्वीकृति प्राप्त हुई। 1853-57 ई. में ट्रांसवाल की जिला सरकारों के उन्मूलन और आरेंज फ्री स्टेट की सरकार को अपदस्थ करने तथा दोनों प्रदेशों के बीच संघ स्थापित करने के प्रयास में प्रिटोरियस का सहयोग किया। 1864 ई. मेें जब गृहयुद्ध समाप्त हुआ और प्रिटोरियस राष्ट्रपति बनाए गए तब क्रुगर ट्रांसवाल की सेना का प्रधान सेनापति बना। 1870 ई. में ब्रिटिश सरकार के साथ सीमा विवाद आरंभ हुआ। इस विवाद में कीट ने जो निर्णय दिया उससे ट्रांसवाल के लोग संतुष्ट न हो सके और यह असंतोष इतना बढ़ा कि राष्ट्रपति प्रिटोरियास और उसके दल का पदत्याग करना पड़ा। उनके स्थान पर जब डच पादरी थामस फ्रैंकायस वर्जर्स राष्ट्रपति हुआ तब क्रुगर ने यथाशक्ति उसके अधिकार की अवमानना करने और उसे नीचा दिखाने का प्रयास किया। यहाँ तक कि उसने बोअर लोगों को बर्जर्स की सरकार के रहते कर न देने के लिये भड़काया। इसका फल यह हुआ कि अप्रैल, 1877 ई. में ब्रिटिश सरकार ने उसे अपने अधीन ले लिया।


क्रुगर ने तत्क्षण ब्रिटिश सरकार के अंतर्गत काम करना स्वीकार कर लिया किंतु ट्रांसवाल की स्वतंत्रता पुन:स्थापित करने के लिये आंदोलन करता रहा। इसके लिये दो बार प्रतिनिधिमंडल इंग्लैंड गया और दोनों बार क्रुगर उसका सदस्य रहा। फलत: 1878 ई. में अंग्रेज प्रशासक सर थियोफिलस शेपस्टोन ने उसे नौकरी से अलग कर दिया। जब 1880 ई. में बोअर युद्ध छिड़ा तब शांति समझौता करनेवाले तीन व्यक्तियों में यह भी था। फलस्वरूप अगस्त, 1881 ई. में प्रिटोरिया कन्वेंशन में शांति की शर्ते निर्धारित हुई। 1883 ई. में वह राष्ट्रपति निर्वाचित हुआ और 1888 ई. में वह दूसरी बार राष्ट्रपति चुना गया। जब 1889 ई. में डाक्टर लीड्स नामक व्यक्ति राज्यमंत्री बना और राज्य पर अपना जाति अधिकार का जाल फैलाने लगा तब राष्ट्रपति क्रुगर ने बोअरों के राजनीतिक एकाधिकार का प्रयास आरंभ किया। फलत: 1890, 1891, 1892 और 1894 ई. में मतदाता संबंधी कानूनों में धीरे धीरे इस प्रकार के संशोधन किए कि यूट्लैंडर लोग प्रच्छन्न रूप से मतदान से वंचित हो गए। 1893 ई. में घोर विरोध के बावजूद क्रुगर तीसरी बार पुन: राष्ट्रपति चुना गया।


क्रुगर की नीति सदैव यह रही कि जिस प्रकार भी हो ट्रांसवाल की सीमा का विस्तार किया जाय। इस संबंध में वह इंग्लैंड के साथ जब जब विवाद उठा, कुछ लाभ प्राप्त करता ही रहा।
जब 1898 ई. में क्रुगर चौथी बार राष्ट्रपति चुना गया तो मतदान एवं अन्य प्रश्नों को लेकर ब्रिटिश हाई कमिश्नर सर अल्फ्रडे मिलनर के साथ वार्तालाप आरंभ हुआ किंतु कोई परिणाम न निकला और 1899 ई. के अक्तूबर में ट्रांसवाले ने ब्रिटेन को युद्ध के लिये ललकारा। फलस्वरूप ब्रिटिश सेना ने ब्लोमफोंटेन और प्रिटारिया पर अधिकार कर लिया। क्रुगर अत्यधिक वृद्धावस्था के कारण स्वयं सेना संचालन में असमर्थ था अत: वह अपने मंत्रिमंडल की सहमति से यूरोप के देशों से अपने पक्ष में समर्थन प्राप्त करने वहाँ गया। किंतु इसमें उसे सफलता नहीं मिली।
अंत में वह हालैंड में उड्रेच में बस गया और अपने संस्मरण लिखा। 14 जुलाई, 1904 ई. को जिनेवा झील के किनारे स्थित क्लेरेंस में उसकी मृत्यु हुई।





१०:५२, ९ फ़रवरी २०१७ के समय का अवतरण

लेख सूचना
स्टेफेनस जोहानेस पौलुस क्रुगर
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 3
पृष्ठ संख्या 213
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक सुधाकर पांडेय
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1976 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक लियो स्तेस्फान शौम्यान

स्टेफेनस जोहानेस पौलुस क्रुगर (1869-1939 ई.)। लेनिन की सहधर्मिणी और मित्र तथा राष्ट्र और सोवियत कम्यूनिस्ट दल की नेत्री। इनका जन्म एक सैनिक परिवार में पेतरबुर्ग नामक नगर में हुआ था। 1809 ई. में इन्होंने रूसी क्रांति आंदोलन में सक्रिय भाग लिया। पेतरबुर्ग में लेनिन ने जिस मजदूरवर्ग मुक्ति संघर्ष संघ की स्थापना की थी उसमें क्रुप्स्काया ने 1895 ई. में योगदान किया। उन्होंने 1897 से 1900 ई. तक लेनिन के साथ साइबेरिया में निर्वासित जीवन व्यतीत किया। 1901 ई. में विदेश में रहकर ‘ईस्क्रा’ (स्फुलिंग), ‘ज़पिरोद’ (आगे की ओर) और ‘प्रलितारी’ (सर्वहारा) नामक बोलशेविक समाचार पत्रों के संपादकीय विभाग में सचिव का कार्य किया। अप्रैल, 1918 ई. में रूस लौटने के पश्चात्‌ कम्यूनिस्ट दल की केंद्रीय समिति (बोलशेविक) के कार्यालय में कार्य करती रहीं। 1927 ई. में कम्यूनिस्ट दल की केंद्रीय समिति की सदस्यता चुनी गई। 1929 ई. में रूसी संघात्मक यूनियन के शिक्षा विभाग में शिक्षा विभाग में डिप्टी पीपुल्स कमिश्नर नियुक्त हुई। जनता की शिक्षा के विषय में ये प्रभावशाली विचारक रही हैं। उन्होंने शिक्षाविज्ञान संबंधी अनेक लेख तथा लेनिन के संस्मरण लिखा हैं।




टीका टिप्पणी और संदर्भ