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१०:०१, १४ जुलाई २०१८ के समय का अवतरण
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एपिरस
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 2 |
पृष्ठ संख्या | 242 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पाण्डेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1964 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | ओंकारानाथ उपाध्याय |
एपिरस उत्तर ग्रीस का प्राचीन जिला अथवा राज्य जो यवन सागर (आयोनिया सागर) के बराबर बराबर चला गया था–इलीरिया, मकदूनिया और थेसाली से लगा लगा। आज यह आल्बेनिया का दक्खिनी भाग है। इसका भूभाग पहाड़ी है और यह सदा की अपेक्षा अपने घोड़ों और मवेशियों के लिए प्रसिद्ध रहा है। इसका प्राचीन इतिहास अंधकार के आवरण में छिपा है, यद्यपि अनुश्रुतियों में ई. पू. पाँचवीं सदी से ही इसके राजकुल का बखान होने लगा था। वहीं की राजकुमारी ओलिंपिया मकदूनिया के राजा फ़िलिप द्वितीय को ब्याही थी जो सिकंदर महान् की माँ बनी। एपिरस के राजा अलेग्ज़ांदर ने मकदूनिया के आंतगोनस गोनातस को परास्त किया पर स्वयं उसे देमेत्रियस से हराकर अपना राज्य छोड़ भागना पड़ा। उसने लौटकर एपिरस फिर जीत लिया और शांतिपूर्वक मरा। ग्रीस के पतन के साथ एपिरस का भी पतन हो गया और वह भी रोमन साम्राज्य का प्रांत बन गया। महत्व की बात है कि एपिरस का अलेग्ज़ांदर (अलिकसुंदर) और उसका पराजित शत्रु मकदूनिया का आंतिगोनस गोनातस (अंतेकिन) दोनों भारत के अशोक महान् के समकालीन थे। जिनका उल्लेख उसके द्वितीय शिलालेख में हुआ है। उनके देशों में उसने वानस्पतिक ओषधियाँ लगवाई थीं।
टीका टिप्पणी और संदर्भ