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०९:३३, १८ जुलाई २०१८ के समय का अवतरण
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ऐंथ्रासीन
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 2 |
पृष्ठ संख्या | 270 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पाण्डेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1964 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | कृष्णबहादुर |
ऐंथ्राासीन त्रिचक्रीय हाइड्रोकार्बन है। इसका गलनांक 216रू सेंटीग्रेड और क्वथनांक 345रू सें. है। यह अलकतरा (कोलटार) से अधिक मात्रा में प्राप्त होता है। ऐं्थ्राासीन रंजक बनाने में उपयुक्त होता है। इसके चौदहों कार्बन परमाणु एक ही तल में रहते हैं। इन कार्बन परमाणुओं को निम्नांकित प्रकार से गिना जाता है :
इनमें से 9 और 10 अंक के कार्बन परमाणुओं को मेसो स्थिति के कार्बन परमाणु कहा जाता है। ऐंथ्राासीन के तीन-प्रतिस्थापन-उत्पाद और 15 द्वि-प्रतिस्थापन-उत्पाद पदार्थ होते हैं। ऐंथ्राासीन के दो सूत्र संभव हैं। एक में केवल एक आर्थोक्विनायड चक्र है और दूसरे में दो।
फ्ऱाइज नियम के अनुसार प्रथम सूत्र अधिक स्थायी है। शुद्ध ऐंथ्राासीन मणिभ या विलेय अवस्था में सुंदर नीला प्रतिदीप्त पदार्थ होता है। गलाने पर इसकी प्रतिदीप्ति नष्ट हो जाती है, परंतु जैसे ही यह पुन: ठोस होता है, प्रतिदीप्ति पुन: प्रकट हो जाती है।
टीका टिप्पणी और संदर्भ