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जोधबाई अकबर की रानी, कछवाहा राजा भारमल की पुत्री। जनवरी, १५६२, में निर्बल भारमल ने अजमेर के मुईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह की तीर्थयात्रा पर आ रहे मुगल बादशाह की अधीनता संगनेर जाकर स्वीकार कर ली। सम्राट् की प्रेरणा, स्वार्थ और कृतज्ञतावश उसने जोधबाई को साँभर में अकबर से ब्याह दिया। इस वैवाहिक संबंध से मुगल साम्राज्य को अत्यधिक प्रभावित करनेवाली अकबर की हिंदू नीति प्रारंभ हुई। जोधबाई का अकबर ने समुचित आदर किया। उसके गर्भ से मुगल साम्राज्य के उत्तराधिकारी सलीम (जहाँगीर) का जन्म होने के बाद अकबर की पत्नियों में उसका विशिष्ट स्थान हो गया और उसे मरियम जामनी की उपाधि मिली। फतेहपुर सीकरी में अकबर ने एक जोधबाई महल बनवाया था जो आज भी खड़ा है। उसके संपर्क से अकबर हिंदू धर्म की ओर भी आकृष्ट हुआ। अपने जीवनकाल में इस्लाम और उसके रीतिरिवाजों के प्रति आदर रखते हुए भी वह अपनी आस्था हिंदू धर्म में बनाए रही, किंतु उसकी अंत्योष्टि इसलाम के अनुरूप हुई। उसकी कब्र अकबर के मकबरे के निकट सिकंदराबाद में है।
जोधबाई अकबर की रानी, कछवाहा राजा भारमल की पुत्री। जनवरी, १५६२, में निर्बल भारमल ने अजमेर के मुईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह की तीर्थयात्रा पर आ रहे मुगल बादशाह की अधीनता संगनेर जाकर स्वीकार कर ली। सम्राट् की प्रेरणा, स्वार्थ और कृतज्ञतावश उसने जोधबाई को साँभर में अकबर से ब्याह दिया। इस वैवाहिक संबंध से मुगल साम्राज्य को अत्यधिक प्रभावित करनेवाली अकबर की हिंदू नीति प्रारंभ हुई। जोधबाई का अकबर ने समुचित आदर किया। उसके गर्भ से मुगल साम्राज्य के उत्तराधिकारी सलीम (जहाँगीर) का जन्म होने के बाद अकबर की पत्नियों में उसका विशिष्ट स्थान हो गया और उसे मरियम जामनी की उपाधि मिली। फतेहपुर सीकरी में अकबर ने एक जोधबाई महल बनवाया था जो आज भी खड़ा है। उसके संपर्क से अकबर हिंदू धर्म की ओर भी आकृष्ट हुआ। अपने जीवनकाल में इस्लाम और उसके रीतिरिवाजों के प्रति आदर रखते हुए भी वह अपनी आस्था हिंदू धर्म में बनाए रही, किंतु उसकी अंत्योष्टि इसलाम के अनुरूप हुई। उसकी कब्र अकबर के मकबरे के निकट सिकंदराबाद में है।



१४:०३, २१ फ़रवरी २०१५ के समय का अवतरण

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जोधबाई अकबर की रानी, कछवाहा राजा भारमल की पुत्री। जनवरी, १५६२, में निर्बल भारमल ने अजमेर के मुईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह की तीर्थयात्रा पर आ रहे मुगल बादशाह की अधीनता संगनेर जाकर स्वीकार कर ली। सम्राट् की प्रेरणा, स्वार्थ और कृतज्ञतावश उसने जोधबाई को साँभर में अकबर से ब्याह दिया। इस वैवाहिक संबंध से मुगल साम्राज्य को अत्यधिक प्रभावित करनेवाली अकबर की हिंदू नीति प्रारंभ हुई। जोधबाई का अकबर ने समुचित आदर किया। उसके गर्भ से मुगल साम्राज्य के उत्तराधिकारी सलीम (जहाँगीर) का जन्म होने के बाद अकबर की पत्नियों में उसका विशिष्ट स्थान हो गया और उसे मरियम जामनी की उपाधि मिली। फतेहपुर सीकरी में अकबर ने एक जोधबाई महल बनवाया था जो आज भी खड़ा है। उसके संपर्क से अकबर हिंदू धर्म की ओर भी आकृष्ट हुआ। अपने जीवनकाल में इस्लाम और उसके रीतिरिवाजों के प्रति आदर रखते हुए भी वह अपनी आस्था हिंदू धर्म में बनाए रही, किंतु उसकी अंत्योष्टि इसलाम के अनुरूप हुई। उसकी कब्र अकबर के मकबरे के निकट सिकंदराबाद में है।

जोधबाई अथवा जगत मुसाई नामक एक दूसरी राजपूतनी का विवाह जहाँगीर से १५८६ ई. में हुआ था। वह मोटा राजा उदयसिंह की पुत्री थी और उसी के गर्भ से खुर्रम (शाहजहाँ) उत्पन्न हुआ था।

टीका टिप्पणी और संदर्भ