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१२:१८, ३ सितम्बर २०११ के समय का अवतरण
टमाटर
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 5 |
पृष्ठ संख्या | 113 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | फूलदेव सहाय वर्मा |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1964 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | यशवंतराम मेहता |
टमाटर अमरीका का देशज है, जहाँ से यहा १६वीं शताब्दी में संसार के दूसरे भागों में फैला। १८वीं शताब्दी के मध्य तक यह शाक की फसल की अपेक्षा कुतूहल और शोभा का पौधा समझा जाता था किंतु पिछली शताब्दी से यह अत्यंत महत्वपूर्ण फसल हो गया है। विटामिनों का श्रेष्ठ स्रोत होने के कारण इसका पोषक मान अत्यधिक है।
टमाटर को तुषार से क्षति पहुँचती है, किंतु मध्य तथा पूर्वी उत्तर प्रदेश में शीत ऋतु में इसकी फसल को शायद ही कोई हानि होती हो। यह लगभग सभी प्रकार की मिट्टी में उग सकता है। शीघ्र फसल के लिए हलकी मिट्टी अच्छी रहती है। अधिक उपज के लिए मटियार दुमट तथा गादमय दुमट (Silty loams) उपयुक्त हैं। इसे ५०-७५ पाउंड नाइट्रोजन प्रति एकड़ की आवश्यकता होती है। साधारणतया ८-१० टन अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद दी जाती है। सुपर फास्फेट के रूप में १०० पाउंड फॉसफोरस लाभदायक है। नाइट्रोजन की खाद का अत्यधिक उपयोग करने से पत्तियों की बाढ़ तो प्रचुर मात्रा में होगी, परंतु फल कम लगेंगे।
बुआई
जून के अंत से लेकर अक्टूबर के अंत, अथवा नवंबर के आरंभ, तक बीज को रोपनी (nursery) द्वारा कभी भी बोया जा सकता है। बीज को बड़ी सावधानी से उगाना चाहिए, क्योंकि वर्षा ऋ तु में सील से फैलनेवाले बीमारी का बहुत डर रहता है। कम से कम दो बाद बुआई करना बहुत अच्छा है। पहली बार वर्ष के आरंभ में तथा दूसरी बाद वर्षा के लगभग अंत में। पहली बुआई से अत्यधिक उपज मिलती है, किंतु उसमें दूसरी बार की अपेक्षा विषाणु (virus) रोग से हानि की आशंका अधिक रहती है, इसके अतिरिक्त दो या तीन बुआई से फसल का विपणनकाल (marketing period) बढ़ जाता है। जब पौधे लगभग ६" की ऊँचाई के हो जाते हैं, तब कतारों में २.५' और पौधों में २' की दूरी रखकर रोपाई की जाती है। ३' ३' की दूरी भी उपयुक्त है, जिसमें एक एकड़ में ४,८४० पौधों की आवश्यकता होती है। एक एकड़ के लिये ३-४ औंस बीज पर्याप्त पौधे दे देता है।
जुताई
टमाटर के खेत को बारंबार जुताई द्वारा, जो क्रमश: हलकी से हलकी होती जाए, खर पतवार से रहित रखना चाहिए, क्योंकि पौधों के बढ़ने के कारण, प्राय: मिट्टी की सतह तक फैली हुई पौधों की जड़ों को गहरी जुताई बरबाद कर देती है। पौधों में लकड़ियाँ न लगी होने के कारण यदि जमीन पूरी तरह पौधों से ढक गई हो तो जुताई आदि कार्य बंद कर देना चाहिए। जाड़े में १०-१५ दिनों पर तथा वसंत ऋतु में ५-६ दिनों पर सिंचाई करनी चाहिए। टमाटर सूखा मौसम काफी सहन कर लेता है, लेकिन यदि लंबी अवधि पर सिंचाई की जाती है तो फलों का फटना आरंभ हो जाता है।
फूल
टमाटर में फूल अत्यधिक आते हैं, किंतु फल उनके अनुपात में कम लगते हैं। इसके कई कारण हैं, जैसे अपर्याप्त पोषण, विपरीत ऋतु, बीमारियाँ इत्यादि। फल के लिए रात्रि का ताप अनुकूल होना बहुत आवश्यक है। शीघ्र बोए गए पौधे अगस्त सितंबर में फूलना आरंभ कर देते हैं, पर सिंतंबर के अंत या अक्टूबर के आरंभ में सब फूल गिर जाते हैं और फल नहीं लगते। इसका कारण यह है कि टमाटर के लिए दिन का ताप भले ही अधिक हो, रात्रि का ताप कम होना आवश्यक है।
टमाटर के पौधों में या तो एक तने को छोड़कर बाकी तनों को छाँटकर लकड़ी लगा देते हैं अथवा केवल लकड़ी ही लगा देते हैं या बिल्कुल वैसा ही छोड़ देते हैं। पौधों को इस प्रकार सहारा देने का कार्य उत्पादकों का है, जो समय की उपलब्धता तथा खर्च इत्यादि पर निर्भर करता है। छाँटने और सहारा देने के लाभ इस प्रकार हैं :
- प्रति एकड़ अधिक उपज। इसका मुख्य कारण यह है कि यदि पौधे छाँटकर सीमित रखे जाते हैं, तो यद्यपि उपज प्रति पौधा कम हो जाती है तथापि प्रति एकड़ पौधों की संख्या बड़कर अंतत: उपज भी बढ़ा देती है।
- अधिक पौधे और शीघ्र उपज।
- साफ, बड़े तथा समानाकार फल।
- फलों की चुनाई में शीघ्रता तथा सरलता।
- जुताई तथा छिड़काव (spraying) की सरलता।
- छाँटने और सहारा देने से ये हानियाँ भी हैं:-
- सहारा देने और उसमें लगनेवाले सामान तथा मजदूरी की रूप में काफी खर्च।
- फलों के धूप में अधिक खुले होने के कारण अधिक गरम मौसम में उनके झुलस जाने की अधिक आशंका।
- जब तक उचित पूर्वोपाय (precaution) न किया जाए तब तक विषाणु रोग के फैलने की बहुत आशंका रहती है। विषाणु रोग अत्यधिक संक्रामक होता है। अत: यदि एक भी पौधा रोगग्रस्त हो जाता है तो छाँटने का चाकू और हाथ उस रोग को अन्यान्य पौधों तक फल देते हैं। साधारणतया पौधों की छँटाई और सहारे की व्यवस्था विस्तृत रूप से की गई काश्तकारी में अधिक व्यय के कारण नहीं की जाती, किंतु छोटे टुकड़ों में तथा शाकोद्यान में यह लाभकारी और व्यावहारिक हो सकती है। टमाटर जब पक जाएँ, अथवा जब गुलाबी हो रहे हों, तभी तोड़ने चाहिए। पके टमाटरों पर प्राय: चिड़ियों का आक्रमण होता है। अत: उन्हें गुलाबी अवस्था में ही तोड़ लेना और अंदर रखकर पकाना विशेष लाभदायक होता है।
उपज में भिन्नता
टमाटर की प्रति एकड़ उपज में यथेष्ट भिन्नता पाई जाती है, लेकिन माध्य रूप से यह प्रति एकड़ १२५ मन से लेकर २०० मन तक हो जाती है। प्रति एकड़ २७५-३०० मन की उपज बहुत अच्छी समझी जाती है, यद्यपि कुछ उत्पादक ४०० मन प्रति एकड़ तक पैदा कर सकते हैं। एक अच्छा बढ़ा हुआ पौधा पाँच सेर या अधिक फल दे सकता है।
टीका टिप्पणी और संदर्भ