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|पुस्तक नाम=हिन्दी विश्वकोश खण्ड 3 | |||
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|भाषा= हिन्दी देवनागरी | |||
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|संपादक=सुधाकर पांडेय | |||
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'''कुसुम''' यह सीधी एकवर्षीय बूटी है जो रबी की फसल के साथ खोतों में बीजों या फलों के लिए बोई जाती है। उत्तर भारत के किसान इसे प्राय: बर्रे के नाम से जानते हैं। लैटिन में इसका नाम कार्थेसम टिंक्टोरियस है। विभिन्न भाषाओं में इसके भिन्न-भिन्न नाम हैं। संस्कृत कुसुम्भ:, कुक्कुटशिखम, वा्ह्रशिखम्, वस्त्रञ्जनम्; हिंदी-कुसुम, बर्रे; बंगला-कुसुम: गुजराती-कुसुम्बो; मराठी-करडई; अंग्रेजी-सैफ्फ्लावर (Safflower)। | '''कुसुम''' यह सीधी एकवर्षीय बूटी है जो रबी की फसल के साथ खोतों में बीजों या फलों के लिए बोई जाती है। उत्तर भारत के किसान इसे प्राय: बर्रे के नाम से जानते हैं। लैटिन में इसका नाम कार्थेसम टिंक्टोरियस है। विभिन्न भाषाओं में इसके भिन्न-भिन्न नाम हैं। संस्कृत कुसुम्भ:, कुक्कुटशिखम, वा्ह्रशिखम्, वस्त्रञ्जनम्; हिंदी-कुसुम, बर्रे; बंगला-कुसुम: गुजराती-कुसुम्बो; मराठी-करडई; अंग्रेजी-सैफ्फ्लावर (Safflower)। | ||
कुसुम का पौधा कँटीला तथा लगभग ४-५ फुट ऊँ चा होता है। पत्ते लंबे तथा ऊपर की ओर आधार से अधिक चौड़े होते हैं तथा तने एवं शाखा के जोड़ पर और शाखा पर निकलते हैं। पत्तियों का किनारा दंतित या बहुश: क्षुद्र कँटीली रचनाओं से व्याप्त होते हैं। तना और शाखाएँ छोटे और अपरिपक्व पौधे की हरी तथा पक्व एवं पुष्ट पौधे की सफेद दिखाई पड़ती है। फूट कँटीले तथा रक्तवर्ण के होते हैं। फलकोष कँटीला तथा फूलों के निचले भाग में होता है इसके भीतर बीज भरे होते हैं। बीज आकृति में शंक्वाकार, कुछ कुछ चौड़े और चौपहल, चिकने तथा सफेद होते हैं। बीज के ऊपर का छिलका तथा भीतर की मींगी सफेद होती है। ये जितने पुराने पड़ते जाते हैं उतना ही छिलका स्याह पड़ता जाता है और अंत में ये काले पड़ जाते हैं। सफेद, नया, भारी और मोटा बीज उत्तम होता है तथा तेल निकालने के लिये प्रयक्त होता है। इसके तेल का उपयोग खाद्य सामग्रियों तथा अन्य विविध कार्यों में किया जाता है। | कुसुम का पौधा कँटीला तथा लगभग ४-५ फुट ऊँ चा होता है। पत्ते लंबे तथा ऊपर की ओर आधार से अधिक चौड़े होते हैं तथा तने एवं शाखा के जोड़ पर और शाखा पर निकलते हैं। पत्तियों का किनारा दंतित या बहुश: क्षुद्र कँटीली रचनाओं से व्याप्त होते हैं। तना और शाखाएँ छोटे और अपरिपक्व पौधे की हरी तथा पक्व एवं पुष्ट पौधे की सफेद दिखाई पड़ती है। फूट कँटीले तथा रक्तवर्ण के होते हैं। फलकोष कँटीला तथा फूलों के निचले भाग में होता है इसके भीतर बीज भरे होते हैं। बीज आकृति में शंक्वाकार, कुछ कुछ चौड़े और चौपहल, चिकने तथा सफेद होते हैं। बीज के ऊपर का छिलका तथा भीतर की मींगी सफेद होती है। ये जितने पुराने पड़ते जाते हैं उतना ही छिलका स्याह पड़ता जाता है और अंत में ये काले पड़ जाते हैं। सफेद, नया, भारी और मोटा बीज उत्तम होता है तथा तेल निकालने के लिये प्रयक्त होता है। इसके तेल का उपयोग खाद्य सामग्रियों तथा अन्य विविध कार्यों में किया जाता है। | ||
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जंगली कुसुम का पौधा ग्राम्य कुसुम के पौधे से ऊँ चा होता है तथा इसकी पत्तियाँ भी बड़ी होती हैं। ग्राम्य कुसुम की तरह इसकी पत्तियाँ भी कँटीली होती हैं तथा शाखामूल से निकलती हैं। शेष शाखा पत्र शून्य तथा सफेद होती हैं। शाखामूल में पाँच काँटे होते हैं। फूल पीला तथा बजी ग्राम्य कुसुम की तरह होता है। | जंगली कुसुम का पौधा ग्राम्य कुसुम के पौधे से ऊँ चा होता है तथा इसकी पत्तियाँ भी बड़ी होती हैं। ग्राम्य कुसुम की तरह इसकी पत्तियाँ भी कँटीली होती हैं तथा शाखामूल से निकलती हैं। शेष शाखा पत्र शून्य तथा सफेद होती हैं। शाखामूल में पाँच काँटे होते हैं। फूल पीला तथा बजी ग्राम्य कुसुम की तरह होता है। | ||
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जंगली कुसुम कफवर्धक तथा कामोद्दीपक है और क्षुधा की वृद्धि करता है। | जंगली कुसुम कफवर्धक तथा कामोद्दीपक है और क्षुधा की वृद्धि करता है। | ||
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कुसुम
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 3 |
पृष्ठ संख्या | 83 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पांडेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1976 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
कुसुम यह सीधी एकवर्षीय बूटी है जो रबी की फसल के साथ खोतों में बीजों या फलों के लिए बोई जाती है। उत्तर भारत के किसान इसे प्राय: बर्रे के नाम से जानते हैं। लैटिन में इसका नाम कार्थेसम टिंक्टोरियस है। विभिन्न भाषाओं में इसके भिन्न-भिन्न नाम हैं। संस्कृत कुसुम्भ:, कुक्कुटशिखम, वा्ह्रशिखम्, वस्त्रञ्जनम्; हिंदी-कुसुम, बर्रे; बंगला-कुसुम: गुजराती-कुसुम्बो; मराठी-करडई; अंग्रेजी-सैफ्फ्लावर (Safflower)।
कुसुम का पौधा कँटीला तथा लगभग ४-५ फुट ऊँ चा होता है। पत्ते लंबे तथा ऊपर की ओर आधार से अधिक चौड़े होते हैं तथा तने एवं शाखा के जोड़ पर और शाखा पर निकलते हैं। पत्तियों का किनारा दंतित या बहुश: क्षुद्र कँटीली रचनाओं से व्याप्त होते हैं। तना और शाखाएँ छोटे और अपरिपक्व पौधे की हरी तथा पक्व एवं पुष्ट पौधे की सफेद दिखाई पड़ती है। फूट कँटीले तथा रक्तवर्ण के होते हैं। फलकोष कँटीला तथा फूलों के निचले भाग में होता है इसके भीतर बीज भरे होते हैं। बीज आकृति में शंक्वाकार, कुछ कुछ चौड़े और चौपहल, चिकने तथा सफेद होते हैं। बीज के ऊपर का छिलका तथा भीतर की मींगी सफेद होती है। ये जितने पुराने पड़ते जाते हैं उतना ही छिलका स्याह पड़ता जाता है और अंत में ये काले पड़ जाते हैं। सफेद, नया, भारी और मोटा बीज उत्तम होता है तथा तेल निकालने के लिये प्रयक्त होता है। इसके तेल का उपयोग खाद्य सामग्रियों तथा अन्य विविध कार्यों में किया जाता है।
जंगली कुसुम का पौधा ग्राम्य कुसुम के पौधे से ऊँ चा होता है तथा इसकी पत्तियाँ भी बड़ी होती हैं। ग्राम्य कुसुम की तरह इसकी पत्तियाँ भी कँटीली होती हैं तथा शाखामूल से निकलती हैं। शेष शाखा पत्र शून्य तथा सफेद होती हैं। शाखामूल में पाँच काँटे होते हैं। फूल पीला तथा बजी ग्राम्य कुसुम की तरह होता है।
कुसुम का शाक मधुर, मूत्रदोषघ्न, दृष्टि प्रसादक, रु चिकारक और अग्निवर्धक है। इसका पत्र मधुर, नेत्ररोग नाशक, अग्निदीपक, अम्लपाकी, गुदा रोगकारक एवं गुरु पाकी है और पुष्प सुस्वादु, मेदक, त्रिदोषघ्न, रु क्ष, उष्ण, पित्तकारक, लघुपाकी तथ कफनाशक है। कुसुम का बीज कटुपाकी तथा शुक्र और दृष्टिनाशक है और उसका तेल कृमिघ्न, बल तथा तेजवर्धक राजयक्षमानाशक, त्रिदोषकारक, मलघ्न, तथा बलक्षयकारक माना जाता है। पुष्प का प्रयोग वस्त्रों को रँगने के लिए भी किया जाता है।
जंगली कुसुम कफवर्धक तथा कामोद्दीपक है और क्षुधा की वृद्धि करता है।
टीका टिप्पणी और संदर्भ