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१२:५५, २ अगस्त २०१४ के समय का अवतरण
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कन्हेरी
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 2 |
पृष्ठ संख्या | 395 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पांडेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1975 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | चन्द्रभान पाण्डेय |
कन्हेरी पश्चिमी भारत के दरी मंदिरों में से एक है। कन्हेरी का यह गिरिमंदिर बंबई से लगभग २५ मील दूर सालसेट द्वीप पर अवस्थित पर्वत की चट्टान काटकर बना बौद्धों का चैत्य है। हीनयान संप्रदाय का यह चैत्यमंदिर आंध्रसत्ता के प्राय: अंतिम युगों में दूसरी शती ई. के अंत में निर्मित हुआ था। यह बना प्राय: कार्ली की परंपरा में ही हैं, उसी का सा इसका चैत्य हाल है, उसी के से स्तंभों पर युगल आकृतियों इसमें भी बैठाई गई हैं। दोनों में अतंर मात्र इतना है कि कन्हेरी की कला उतनी प्राणवान् और शालीन नहीं जितनी कार्ली की है। कार्ली की गुफा से इसकी गुफा कुछ छोटी भी है। फिर, लगभग एक तिहाई छोटी यह गुफा अपूर्ण भी रह गई है। इसकी बाहरी दीवारों पर जो बुद्ध की मूर्तियाँ बनी हैं, उनसे स्पष्ट है कि इसपर महायान संप्रदाय का भी बाद में प्रभाव पड़ा और हीनयान उपासना के कुछ काल बाद बौद्ध भिक्षुओं का संबंध इससे टूट गया था जो गुप्त काल आते आते फिर जुड़ गया, यद्यपि यह नया संबंध महायान उपासना को अपने साथ लिए आया, जो बुद्ध और बोधिसत्वों की मूर्तियों से प्रभावित है। इन मूर्तियों में बुद्ध की एक मूर्ति २५ फुट ऊँची है।
कन्हेरी के चैत्यमंदिर का प्लान प्राय: इस प्रकार है–चतुर्दिक् फैली वनसंपदा के बीच बहती जलधाराएँ, जिनके ऊपर उठती हुई पर्वत की दीवार और उसमें कटी कन्हेरी की यह गहरी लंबी गुफा। बाहर एक प्रांगण नीची दीवार से घिरा है जिसपर मूर्तियाँ बनी हैं और जिससे होकर एक सोपानमार्ग चैत्यद्वार तक जाता है। दोनों ओर द्वारपाल निर्मित हैं और चट्टानी दीवार से निकली स्तंभों की परंपरा बनती चली गई है। कुछ स्तंभ अलंकृत भी हैं। स्तंभों की संख्या ३४ है और समूची गुफा की लंबाई ८६ फुट, चौड़ाई ४० फुट और ऊँचाई ५० फुट है। स्तंभों के ऊपर की नर-नारी-मूर्तियों को कुछ लोगों ने निर्माता दंपति होने का भी अनुमान किया है जो संभवत: अनुमान मात्र ही है। कोई प्रमाण नहीं जिससे इनको इस चैत्य का निर्माता माना जाए। कन्हेरी की गणना पश्चिमी भारत के प्रधान बौद्ध दरीमंदिरों में की जाती है, और उसका वास्तु अपने द्वार, खिड़कियों तथा मेहराबों के साथ कार्ली की शिल्पपरंपरा का अनुकरण करता है।
टीका टिप्पणी और संदर्भ