"तंत्रिकार्ति": अवतरणों में अंतर

अद्‌भुत भारत की खोज
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
[अनिरीक्षित अवतरण][अनिरीक्षित अवतरण]
No edit summary
छो (श्रेणी:नया पन्ना; Adding category Category:चिकित्सा विज्ञान (को हटा दिया गया हैं।))
 
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति ३६: पंक्ति ३६:
<references/>
<references/>
[[Category:हिन्दी_विश्वकोश]]
[[Category:हिन्दी_विश्वकोश]]
[[Category:नया पन्ना]]
[[Category:चिकित्सा विज्ञान]]
__INDEX__
__INDEX__
__NOTOC__
__NOTOC__

११:३४, ३१ जुलाई २०१५ के समय का अवतरण

लेख सूचना
तंत्रिकार्ति
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 5
पृष्ठ संख्या 297-298
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक फूलदेवसहाय वर्मा
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1965 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक भानुशंकर मेहता

तंत्रिकार्तिं (Neuritis) किसी तंत्रिका के प्रदाह या विघटन को कहते हैं। यह आर्ति या पीड़ा एक तंत्रिका की अथवा अनेक तंत्रिकाओं की हा सकती है। एक तंत्रिका की अथवा अनेक तंत्रिकाओं की हो सकती है। एक तंत्रिका को अर्ति के कारणों में (१) चोट, (२) अर्बुद या सूजी हुई गिल्टी का दबाब, (३) सूत्रिकार्ति, जिसमें तंत्रिका आवरण भी शामल होता है, (४) जीवाणुविष, तथा (५) कट जाने पर विघटन इत्यादि होते हैं। ठंढ लगना (बेल्स पाल्सी Bells palse), जिसमें आधे चेहरे को लकवा मार जाता है) प्रवर्तक कारण है। कौन सी तंत्रिका में आर्ति है, इसके आधार पर लक्षण प्रकट होते हैं। इस व्याधि में तंत्रिकापथ पर जलन और छेदन की पीड़ा, दबाने से बढ़नेवाला दर्द आदि होते हैं।

बहुतंत्रिकार्ति

इसके कारण हैं: (१) रासायनिक पदार्थ - शराब, संखिया, सीस, पारा, ईथर, बार्बिटोन आदि, (२) जीवाणु विष- डिपथीरिया, मोतीझरा, फ्लू, सुजाक, उपदंश, मलेरिया, कुष्ट, क्षय। आदि, (३) विटामिनहीनता- बेरी बेरी, (४) रोग- मधुमेह, गठिया, रक्ताल्पता, कैंसर तथा (५) तीव्रतंत्रिकार्ति - अज्ञात विष या जीवाणु जन्य। यह रोग विशेषकर युवावस्था में होता है और ठंढ लगने से उभरता है।

लक्षण

रोग का आरंभ धीरे धीरे होता है। थकावट और पैरों में कमजोरी, चलने में लड़खड़ाहट, पैरों में दर्द, शून्यता, चुनचुननाहट, पोषणहीनता के च्ह्रि, पेशियों का संकुचन, पैर या कलाई का लकवा तथा मानसिक लक्षण प्रकट हो सकते हैं। रोगी अपाहिज हो जाता है। भिन्न कारणों से उत्पन्न तंत्रिकार्ति के लक्षण भी भिन्न होते हैं। उदाहरण के लिये संखिया के विष के प्रभाव से पैरों की कमजोरी, सीस के विष के प्रभाव से अंगुलियों और कलाइयां का लकवा, मधुमेह में पैरों में दुर्बलता तथा पोषण ्व्राण, डिपथीरिया में कोमल तालु का लकवा, शराब के विषैले प्रभाव से पैरों का सुन्न होना, हाथ पैर की ऐंठन, हिलने डुलने में दर्द, स्पर्शवेदना आदि लक्षण होते हैं।

चिकित्सा

यह कठिन रोग है। कारण ज्ञात होने पर उसकी तदनुसार चिकित्सा की जाती है। कष्टदायक लक्षणों की शांति का उपाय किया जाता है, यथा सेंक, हल्की मालिश, विद्युत्तेजन, पीड़ानाशक औषधि आदि । विटामिन बी १ का उपयाग लाभदायक हो सकता है। पेशियों का संकुचन रोकना चाहिए।

टीका टिप्पणी और संदर्भ