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लेख सूचना
कृत्रिम सूत
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 3
पृष्ठ संख्या 92-93
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक सुधाकर पांडेय
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1976 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक फूलदेवसहाय वर्मा, महादेवलाल र्शमा, निरंकार सिहं

कृत्रिम सूत कृत्रिम ढंग से सूत (रेशा, Fibre) निर्माण करने का विचार पहले पहल एक अंग्रेज वैज्ञानिक राबर्ट हुक के दिमाग में उठा था। इसका उल्लेख १६६४ ई. में प्रकाशित उसकी माइक्रोग्राफिया नामक पुस्तक में है। इसके बाद १७३४ ई. में एक फ्रेंच वैज्ञानिक ने रेजिन से कृत्रिम सूत बनाने की बात कही; लेकिन उसे भी कोई व्यावहारिक रूप नहीं दिया जा सका। १८४२ ई. में पहली बार अंग्रेज वैज्ञानिक लुइस श्वाब ने कृत्रिम सूत बनाने की मशीन का आविष्कार किया। इस मशीन में महीन सूराखवाले तुंडों (nozzles) का प्रयोग किया गया जिसमें से होकर निकलनेवाला द्रव पदार्थ सूत में परिवर्तित हो जाता था। सूत बनानेवाली आज की मशीनों का भी मुख्य सिद्धांत यही है। श्वाब ने काँच से सूत का निर्माण किया था; लेकिन वह इससे संतुष्ट न था। उसने ब्रिटिश वैज्ञानिकों से कृत्रिम सूत बनाने हेतु अच्छे पदार्थ की खोज की अपील की। १८४५ ई. में स्विस रसायनशास्त्री सी. एफ. शूनबेन ने कृत्रिम सूत के निर्माण के निमित्त नाइट्रो सेल्यूलोज की खोज की।

कृत्रिम सूत के निर्माण का पहला पेटेंट १८५५ में जार्ज एडेमर्स ने प्राप्त किया। उसने कृत्रिम सूत के निर्माण के लिए शहतूत और कुछ अन्य वृक्षों के भीतरी भाग का प्रयोग किया। शहतूत के वृक्ष के भीतरी भाग को पहले उसने नाइट्रीकृत किया। फिर ईथर और ऐलकोहल के साथ-साथ रबर के विलयन में उसका मिश्रण तैयार किया। फिर उसका उपयोग उसने कृत्रिम सूत के निर्माण के लिए किया। दो वर्ष बाद ई. जे. हग्स को कुछ लचीले पदार्थो जैसे स्टार्च, ग्लेटिन, रेजिन, टैनिन और चर्बी आदि से कृत्रिम सूत के निर्माण के लिए पेटेंट मिला। इसके बाद जोसेफ स्वान ने इस दिशा में और अधिक कार्य किया। तब से अब तक इस क्षेत्र में अनेक वैज्ञानिकों ने बहुत काम किया है। फलस्वरूप अनेक प्रकार के कृत्रिम सूत बाजार में उपलब्ध हैं। भारत में कृत्रिम सूत का निर्माण १९५० ई. में आरंभ हुआ।

जब प्रयोगशाला में पहले पहल कृत्रिम सूत बने तब रंगरूप, कोमलता और चमक दमक में वे रेशम से थे, यद्यपि उनकी दृढ़ता और टिकाऊपन रेशम के बराबर नहीं थी। उनका तनाव सामर्थ्य भी निम्न कोटि का था। फिर भी उन्हें कृत्रिम रेशम का नाम दिया गया। १९२४ ई. तक ऐसे मानवनिर्मित सूतों को कृत्रिम रेशम ही कहते थे। बाद में अमरीका में कृत्रिम सूत के लिए रेयन शब्द का उपयोग आरंभ हुआ और आज सारे संसार में कृत्रिम सूत के लिए रेयन शब्द का ही उपयोग होता है।

मानवनिर्मित सूत (रेशों) के मुख्य प्रकार निम्नलिखित हैं-

  • फिलामेंट धागा (Filament yarn)-इन धागों में अनेक महीन अखंड तंतु (filament) होते हैं, जो हलकी ऐंठन से एक साथ जुड़े रहते हैं।
  • एकतंतु धागा (monofilament)-इसमें केवल एक तंतु होता है।
  • स्टेप्ल (staple)-ये कृत्रिम तंतुओं के बने होते हैं और ये ७ से १५ इंच तक लंबे और एकरूप होते हैं
  • टो (Tow)-इसमें भी अनेक अखंड तंतु, रस्सी के रूप में, एक साथ बैटे रहते है, किंतु उनमें ऐंठन नहीं होती तथा वे समांतर रहते हैं। छोटे टो ५०० से ५००० डेनियर (Denier) तक के होते हैं, जबकि बड़े टो ७५,००० से ५,००,००० डेनियर के होते हैं।
  • कते धागे (Spun yarn)-ये धागे कृत्रिम रेशों को कातकर बनाए जाते हैं। कभी-कभी ये कृत्रिम रेशे कपास, ऊन, पटसन इत्यादि रेशों के मिश्रण से भी बनते हैं।

मानवनिर्मित कृत्रिम रेशों के विभीन्न वर्गों, उनके औद्योगिक अथवा वाणिज्य नाम, उनके निर्माण के लिए आवश्यक आधारभूत सामग्री तथा उत्पादक देशों का विवरण इस प्रकार है-

वर्ग औद्योगिक नाम आधारभूत सामग्री उत्पादक देश

क. सेल्युलोस रेयन (Rayon) काष्ठ लुगदी अनेक देश

ख. प्राकृतिक ऐसीटेट (Acetate) कपास लिंटर और काष्ठ लुगदी अनेक देश, संयुक्त राज्य (अमरीका)

विकारा (Vicara) मक्का प्रोटीन

मेरिनोवा (Merinova) केसीन (मथे दुध से) इटली

फाइब्रोलेन (Fibrolane) केसीन (मथे दुध से) संयुक्त राज्य (अमरीका)

ऐल्गिनेट (Alginate) ऐल्गिनिक अम्ल (Alginic acid), समुद्री घास से युनाइटेड किंगडम

ग. संश्लिष्ट तंतु :

१. -पॉलिऐमाइड (Polyamide) नाइलान ६६ (Nylon 66) हेक्सामेथिलीन डायामिन, यूनाइटेड किंगडम, संयुक्त राज्य (अमरीका), कैनाडा

ऐडिपिक अम्ल

ऐमिलान (Amylon) हेक्सामिथिलीन डायामिन,

ऐडिपिक अम्ल जापान

नाइलान ६ (Nylon 6), पार्लान कैप्रालेक्टम पश्चिमी जर्मनी

नाइलान ११ (Nylon 11) सिबैसिक अम्ल फ्रांस, हंगरी

रिल्सान

२-पॉलिएस्टर (Polyester) टेरीलीन (Terylene) टेरिथैलिक अम्ल संयुक्त राज्य (अमरीका), जर्मनी

३-पॉलिऐक्रिलिक (Poly-Acrilic) ओर्लान (Orlon), ऐक्रिलान (Acrilon), एक्रिलोनाइट्रिल संयुक्त राज्य (अमरीका), इंग्लैड

डाइनाइट्रिल बेल्जियम, कैनाडा, फ्रांस, पश्चिमी जर्मनी इत्यादि

डार्लान (Darlan), जफ्रोन (Zefran)

पॉलिएथिलान इंग्लैंड

४-पॉलिएथिलीन (Poly-ethylene) कौर्लीन (Courlene)

इटली

५-पॉलिप्रोपिलोन मोप्लेन (Moplen) विनाइल क्लोराइड संयुक्त राज्य (अमरीका)

६-पॉलिविनाइल ऐसीटेट एविस्कोविनियान (Avisco Vinyon) विनाइल ऐल्कोहल जापान

७-पॉलिऐल्कोहल विन्यॉन्‌ (Vinyon) विनिलिडीन क्लोराइड एवं विनिल क्लोराइड फ्रांस जर्मनी

८-पॉलिक्लोराइड रोविल (Rhovyl) विनिनिडीन क्लोराइड एवं विनिल क्लोराइड जापान

९-ट्राइविनिल क्लोराइड पे से (Pe Ce)

१०-पॉलिविनिलिडीन क्लोराइड सारन (Saran) विनिलिडीन क्लोराइड संयुक्त राज्य (अमरीका), इंग्लैंड, जापान, फ्रांस

११-पॉलिस्टेराइट (Polysterite) डॉबार्न (Dawbarn) संयुक्त राज्य (अमरीका)

१२-पॉलिटेट्राफ्लुओर एथिलीन टेफ्लॉन (Teflon) संयुक्त राज्य (अमरीका)

घ. खनिज तंतु (काच) सिलिका बालू, चूना पत्थर


औद्योगिक उपयोग

इन मानवनिर्मित रेशों का उपयोग वस्त्रोद्योग तक ही सीमित नहीं है; वरन्‌ इनके अनेक अन्य

औद्योगिक उपयोग भी हैं। कुछ मुख्य उपयोग निम्नलिखित हैं :

  • बबलफिल (bubblefill) -विस्कोस रेशों का बना होता है, जिसमें वायु पाशित होती है। इसका उपयोग जीवनरक्षी जैकेट, नौकासेतु (पॉण्टून pontoon), बेड़ा (रैफ्ट, raft) तथा हवाई उड़ाकों की वेशभूषा के पृथक्कारी (इंसुलेटुर, insulator) माध्यम बनाने के लिए किया जाता है। रेयन का उपयोग श्ल्य संभार (surgical dressing) तैयार करने में भी होता है।
  • सेल्युलोस ऐसीटेट-स्त्रियों के लिए सुंदर आकर्षक वस्त्र तथा स्नान वस्त्रों के बनाने में काम आता है। पुरुषों के लिए टाई, ड्रेसिंग गाउन और कॉलर बनाने में भी इसका उपयोग होता है। इसका पारविद्युत्‌ सामर्थ्य (dielectric strength) अधिक होता है। अत: यह बिजली के तार एवं कुंडली (coil) के लिए पृथक्कारी (insulator) के रूप में भी प्रयुक्त होता है।
  • टेनास्को और फॉर्टिसन-बड़ी उच्च दृढ़ता (tenacite) के सेज्युलूसीय तंतु हैं। टेनास्को का उपयोग मोटरों तथा वायुयानों के टायरों की रस्सी, वाहक पट्टों तथा रस्सियों के बनाने में होता है। संश्लिष्ट रेशों में फॉर्टिसन सबसे अधिक पुष्ट होता है इसकी दृढ़ता ७ ग्राम प्रति डेनियर होता है। इसका मुख्य उपयोग टायर की रस्सी बनाने में किया जाता है। पैराशूट के कपड़े बनाने में भी इसका व्यापक उप्योग होता है।
  • ऐल्गिनेट-इस प्रकार के रेशों की विशेषता यह है कि ये धात्वीय ऐल्गिनेटों के कारण ज्वालासह (flame proof) होते है। इसलिए इनका उपयोग थियेटरों के पर्दे तथा अग्निसह कपड़े बनाने के लिए विशेष रूप से किया जाता है।
  • नाइलॉन-इसकी दृढ़ता भी यथेष्ट अधिक होती है (४.५ से ७ ग्राम प्रति डेनियर तक)। इसका उपयोग भी पैराशूट के कपड़े, रस्सी, अश्वसज्जा (harness) और ग्लाइडर की रस्सी बनाने में होता है। एकतंतु (monofilament) नाइलॉन दाँत, कपड़े, बाल एवं बोतल साफ करनेवाले ब्रश तथा टाइपराइटर के फीते बनाने के काम आता है । इसके बने तिरपाल (tarpaulins) भी बड़े हलके और टिकाऊ होते हैं। हवाई जहाज की पेट्रोल टंकी बनाने के लिए नाइलॉन बड़ा उपयुक्त होता है। विद्युल्लेपन (electroplating) द्रव, रंक द्रव एवं प्रबल क्षायतावाले रासायनिक द्रवों को छानने के लिए नाइलॉन बड़ा उपयुक्त माध्यम है। वाहक पट्टी के बनाने में भी नाइलॉन काम आता है। नाइलॉन एकतंतुओं से श्ल्य सीवनी एवं पाश (surgical suture and ligature) भी बनाए जाते है।
  • विनियान-इससे छाननेवाले गत्ते (filter pad) तथा रसायनिक कार्य करनेवालों के आरक्षी वस्त्र बनाए जाते हैं। जलरोधी होने के कारण मछली पकड़ने के जाल तथा रस्सियाँ बनाने के लिए इसका अच्छा उपयोग होता है।
  • सारन-यह जीवाणुओं, कीटों एवं रस द्रव्यों के प्रति यथेष्ट अवरोधी होता है। इसलिये मसहरी, छनने, मोटरों तथा जलपानगृहों के आलंकारिक पर्दे बनाने में इसका विशेष उपयोग होता है। कलाशानाओं तथा सिनेमागृहों की दीवारों पर भी सारन के आवरण लगाए जाते है, जिससे उनपर सिगरेट के धुएँ का कोई प्रभाव न पड़े। इस्पात की नलियों में सारन का अस्तर लगाने से वे रसद्रव्यों के प्रति अवरोधी हो जाती हैं। पॉलिविनाइल क्लोराइडों का उपयोग भी सारन की ही भाँति होता है।
  • ऑर्लान-इसका उपयोग विद्युतल्लेपन में धनाग्र (anode) थैले के बनाने में किया जाता है।
  • कांच तंतु-इसके कपड़े अग्निसह होने के कारण जीवनरक्षी नौकाओं तथा तेल की टंकियों में उपयुक्त होते हैं। स्टेपुल तंतु कांच के कपड़े, विद्युत्‌ पृथक्करण एवं उष्मा पृथक्करण के लिए उपयुक्त होते हैं।
  • पॉलिथीन-रासायनिक दृष्टिसे स्थायी होने के कारण प्लास्टिक के रूप में व्यापक रूप से प्रयुक्त होता है। सामग्रियों पर आरक्षी आवरण चढ़ाने अथवा रासायनिक दृष्टि से अवरोधी नलियों और धारको के निर्माण में भी इसका विशेष उपयोग होता है।

टीका टिप्पणी और संदर्भ