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अंगारा प्रदेश
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1 |
पृष्ठ संख्या | 12 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पाण्डेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1964 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | श्री नृपेन्द्र कुमार सिंह |
भू-विज्ञान के अनुसार एशिया के उत्तरी भाग के प्राचीनतम स्थलखंड को अंगारा प्रदेश कहते हैं। इसका राजनीतिक महत्व नहीं है, परंतु भौगोलिक दृष्टि से इसका अध्ययन बहुत उपयोगी है। इस प्रदेश की भू-वैज्ञानिक खोज अभी अपेक्षाकृत कम हुई है। रूसी भूवैज्ञानिकों ने अपने अन्वेषणात्मक कार्यों द्वारा इसे बहुत अंशों में लारेशिया तथा बाल्टिक प्रदेश के समान बताया है। इस प्रदेश की पृष्ठतलीय चट्टानें कैबियन पूर्व की हैं, जिनमें अति प्राचीन गिरि-निर्माण-संरचना प्राप्त है और इनमें प्रचुर मात्रा में परिवर्तन हुआ है। इन तलीय चट्टानों के ऊपर कैबियन युग से लेकर 'अंतर्युगीन' (पैलिओजोइक, मेसोजोइक और केनोजोइक) चट्टानों का जमाव मिलता है।
भौगोलिक संरचना
कोबर ने रूसी विद्वानों के सदृश ही इसे यनीसी नदी के मुहाने से क्रांसनोयार्स्कें को मिलाती हुई रेखा द्वारा दो प्रमुख भागों में बाँटा है। यनीसी नदी का पश्चिमवर्ती भाग निम्नस्तरीय मैदान है, जिस पर अंशत: तृतीय कल्पिक अवशाय मिलते हैं और जो उत्तरी महासागर तल से मिल जाता है। यूराल पर्वत की ओर समुद्री जुरासिक, क्रिटेशस एवं पूर्वकालिक तृतीय कल्पिक चट्टानें मिलती हैं। यनीसी नदी का पूर्वी भाग बहुत अंशों में भिन्न है। इस भाग में पुराकल्पयुगीन चट्टानों का विकास महाद्वीपीय स्तर पर हुआ है। ये चट्टानें प्राय: क्षैतिज हैं तथा इनमें दो प्राचीन उद्वर्ग अनावर और येनीसे प्रमुख हैं।
सीमा निर्धारण
इस प्रदेश की पश्चिमी सीमा का निर्धारण कठिन है, परंतु इसका बृहत्तम फैलाव यूराल पर्वत श्रेणियों तक मिलता है। तमिर अंतरीप का विरंगा नामक पहाड़ इसकी उत्तरी सीमा निर्धारित करता है और इन पहाड़ों में संमित भंजित संरचना मिलती है। संभवत: ये कैलिडोनियन युग के हैं। लीना नदी के पूर्व स्थिर बरखोयान्स्क पहाड़ से इसकी पूर्वी सीमा और क्रांसनोयार्स्कें से बैकाल झील तथा यार्कुन्स्क को मिलाने वाली रेखा द्वारा इसकी दक्षिणी सीमा निर्धारित होती है। मध्य (मेसोज़ोइक) तथा तृतीय कल्पिक (टर्शियरी) चट्टानों से आच्छादित होने के कारण दक्षिण-पश्चिम में इसका सीमा निर्धारण कठिन है।
विद्वान मतभेद
बैकाल झील के पास चतुर्दिक पर्वतश्रेणियों से घिरा हुआ इरकुटस्क एक बृहत् रंगमंडल सा जान पड़ता है। इसके पश्चिम में सयान पर्वत और पूरब में बैकाल झील की श्रेणियाँ फैली हुई हैं। इस क्षेत्र के विकास के विषय में विद्वानों में गहरा मतभेद है। स्वेस के अनुसार यह क्षेत्र साइबेरियन शील्ड का प्राचीनतम स्थल भाग है, जिसके चारों ओर अंतरकालीन विकास हुआ। रूसी विद्वानों के नए अन्वेषणों ने इस विचार से असहमति प्रकट की है। तात्जों के अनुसार तुरीय युग का प्रारंभिक काल मे श्वेस का यह तथाकथित प्राचीनतम स्थल क्षेत्र केवल निम्नस्तरीय परंतु दृढ़ भाग था, जिसमें चौड़ी उथली घाटियाँ और अगणित झीलें थीं। अत: तात्जों ने इस क्षेत्र को नवनिर्मित स्थलीय भाग माना है और यह इसका उद्भवकाल मानवकाल के पूर्व नहीं मानता। देलाने के विचार से भी कुछ विद्वान सहमत हैं। इसके अनुसार यह प्राचीन भाग कैलिडोनियन युग का पुनरुत्थित क्षेत्र है, जिसमें कैब्रियन एवं साइलूरियन युगों की भंजित चट्टानें मिलती हैं।
प्रदेश की भिन्नता
साइबेरिया के पूर्वी मैदानी भाग में परमियन युग की बैसाल्ट चट्टानें पाई जाती हैं। प्रस्तुत लावा-प्रवाह तथा पुराकल्पीय एवं अंतरयुगीन चट्टानों का अवसाद इस प्रदेश के पृष्ठतलीय चट्टानों को ढके हुए हैं; इस कारण यह प्रदेश स्वजातीय बाल्टिक तथा कनाडियन प्रदेशों से भिन्न प्रतीत होता है। यहाँ अन्य स्वजातीय प्रदेशों के सदृश चारों ओर भंजित श्रेणियाँ फैली हुई हैं।
टीका टिप्पणी और संदर्भ