"जेबुन्निसा": अवतरणों में अंतर
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जेबुन्निसा मुगल सम्राट् औरंगजेब की सबसे बड़ी संतान जेबुन्निसा का जन्म ५ फरवरी | जेबुन्निसा मुगल सम्राट् औरंगजेब की सबसे बड़ी संतान जेबुन्निसा का जन्म ५ फरवरी 1६३९ को दक्षिण भारत के दौलताबाद स्थान में फारस के शाहनवाज खाँ की पुत्री बेगम दिलरस बानों के गर्भ से हुआ था। बचपन से ही जेबुन्निसा बहुत प्रतिभाशाली और होनहार थी। हफीजा मरियम नामक शिक्षिका से उसने शिक्षा प्राप्त की और सारा कुरान कंठस्थ कर लिया। विभिन्न लिपियों की बहुत सुंदर और साफ लिखावट की कला में वह दक्ष थी। | ||
जेबुन्निसा अपनी बाल्यावस्था से ही पहले अरबी और फिर फारसी में 'मखफी', अर्थात् 'गुप्त' उपनाम से कविता लिखने लगी थी। उसकी मँगनी शाहजहाँ की इच्छा के अनुसार दाराशिकोह के पुत्र तथा अपने चचेरे भाई सुलेमान शिकोह से हुई, किंतु सुलेमान शिकोह की असमय मृत्यु होने से विवाह न हो सका। | जेबुन्निसा अपनी बाल्यावस्था से ही पहले अरबी और फिर फारसी में 'मखफी', अर्थात् 'गुप्त' उपनाम से कविता लिखने लगी थी। उसकी मँगनी शाहजहाँ की इच्छा के अनुसार दाराशिकोह के पुत्र तथा अपने चचेरे भाई सुलेमान शिकोह से हुई, किंतु सुलेमान शिकोह की असमय मृत्यु होने से विवाह न हो सका। | ||
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जेबुन्निसा को उसका चाचा दाराशिकोह बहुत प्यार करता था और वह सूफी प्रवृत्ति की धर्मपरायण स्त्री थी। उसे चार लाख रुपये का जो वार्षिक भत्ता मिलता था उसका अधिकांश वह विद्वानों को प्रोत्साहन देने, विधवाओं तथा अनाथों की सहायता करने और प्रतिवर्ष मक्का मदीना के लिये तीर्थयात्री भेजने में खर्च करती थी। उसने बहुत सुंदर पुस्तकालय तैयार किया और सुंदर अक्षर लिखनेवालों से दुर्लभ तथा बहुमूल्य पुस्तकों की नकल करायी। अपने प्रस्ताव के अनुसार साहित्यिक कृतियाँ तैयार करनेवाले बहुत से विद्वानों को उसने अच्छे वेतन पर रखा और अपने अनुग्रहपात्र मुल्ला सैफुद्दीन अर्दबेली की सहायता से अरबी के ग्रंथ तफसीरे कबीर (महत् टीका) का 'जेबुन तफासिर' नाम से फारसी में अनुवाद किया। | जेबुन्निसा को उसका चाचा दाराशिकोह बहुत प्यार करता था और वह सूफी प्रवृत्ति की धर्मपरायण स्त्री थी। उसे चार लाख रुपये का जो वार्षिक भत्ता मिलता था उसका अधिकांश वह विद्वानों को प्रोत्साहन देने, विधवाओं तथा अनाथों की सहायता करने और प्रतिवर्ष मक्का मदीना के लिये तीर्थयात्री भेजने में खर्च करती थी। उसने बहुत सुंदर पुस्तकालय तैयार किया और सुंदर अक्षर लिखनेवालों से दुर्लभ तथा बहुमूल्य पुस्तकों की नकल करायी। अपने प्रस्ताव के अनुसार साहित्यिक कृतियाँ तैयार करनेवाले बहुत से विद्वानों को उसने अच्छे वेतन पर रखा और अपने अनुग्रहपात्र मुल्ला सैफुद्दीन अर्दबेली की सहायता से अरबी के ग्रंथ तफसीरे कबीर (महत् टीका) का 'जेबुन तफासिर' नाम से फारसी में अनुवाद किया। | ||
अपने पिता औरंगजेब के विरुद्ध विद्रोह करनेवाले शाहजादा अकबर के साथ गुप्त पत्र-व्यवहार का पता चल जाने पर जेबुन्निसा का निजी भत्ता बंद कर दिया, जमींदारी जब्त कर ली गई और उसे जनवरी | अपने पिता औरंगजेब के विरुद्ध विद्रोह करनेवाले शाहजादा अकबर के साथ गुप्त पत्र-व्यवहार का पता चल जाने पर जेबुन्निसा का निजी भत्ता बंद कर दिया, जमींदारी जब्त कर ली गई और उसे जनवरी 1६९1 में दिल्ली के सलीमगढ़ किले में नजरबंद कद दिया गया। | ||
जेबुन्निसा की मृत्यु | जेबुन्निसा की मृत्यु 1७०२ में हुई। उसे काबुली गेट के बाहर तीस हजारा बाग में दफनाया गया। | ||
११:५७, १२ अगस्त २०११ का अवतरण
जेबुन्निसा मुगल सम्राट् औरंगजेब की सबसे बड़ी संतान जेबुन्निसा का जन्म ५ फरवरी 1६३९ को दक्षिण भारत के दौलताबाद स्थान में फारस के शाहनवाज खाँ की पुत्री बेगम दिलरस बानों के गर्भ से हुआ था। बचपन से ही जेबुन्निसा बहुत प्रतिभाशाली और होनहार थी। हफीजा मरियम नामक शिक्षिका से उसने शिक्षा प्राप्त की और सारा कुरान कंठस्थ कर लिया। विभिन्न लिपियों की बहुत सुंदर और साफ लिखावट की कला में वह दक्ष थी।
जेबुन्निसा अपनी बाल्यावस्था से ही पहले अरबी और फिर फारसी में 'मखफी', अर्थात् 'गुप्त' उपनाम से कविता लिखने लगी थी। उसकी मँगनी शाहजहाँ की इच्छा के अनुसार दाराशिकोह के पुत्र तथा अपने चचेरे भाई सुलेमान शिकोह से हुई, किंतु सुलेमान शिकोह की असमय मृत्यु होने से विवाह न हो सका।
जेबुन्निसा को उसका चाचा दाराशिकोह बहुत प्यार करता था और वह सूफी प्रवृत्ति की धर्मपरायण स्त्री थी। उसे चार लाख रुपये का जो वार्षिक भत्ता मिलता था उसका अधिकांश वह विद्वानों को प्रोत्साहन देने, विधवाओं तथा अनाथों की सहायता करने और प्रतिवर्ष मक्का मदीना के लिये तीर्थयात्री भेजने में खर्च करती थी। उसने बहुत सुंदर पुस्तकालय तैयार किया और सुंदर अक्षर लिखनेवालों से दुर्लभ तथा बहुमूल्य पुस्तकों की नकल करायी। अपने प्रस्ताव के अनुसार साहित्यिक कृतियाँ तैयार करनेवाले बहुत से विद्वानों को उसने अच्छे वेतन पर रखा और अपने अनुग्रहपात्र मुल्ला सैफुद्दीन अर्दबेली की सहायता से अरबी के ग्रंथ तफसीरे कबीर (महत् टीका) का 'जेबुन तफासिर' नाम से फारसी में अनुवाद किया।
अपने पिता औरंगजेब के विरुद्ध विद्रोह करनेवाले शाहजादा अकबर के साथ गुप्त पत्र-व्यवहार का पता चल जाने पर जेबुन्निसा का निजी भत्ता बंद कर दिया, जमींदारी जब्त कर ली गई और उसे जनवरी 1६९1 में दिल्ली के सलीमगढ़ किले में नजरबंद कद दिया गया।
जेबुन्निसा की मृत्यु 1७०२ में हुई। उसे काबुली गेट के बाहर तीस हजारा बाग में दफनाया गया।