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अक्षर अनन्य
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1 |
पृष्ठ संख्या | 70 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पाण्डेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1973 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | कैलाश चंद्र शर्मा। |
अक्षर अनन्य के विषय में प्रसिद्ध है कि ये सेनुहरा (दतिया) के महाराज पृथ्वीचंद के दीवान थे। हिंदी साहित्य के इतिहास लेखकों के अनुसार इनका जन्म सन् 1710 वि. (1653 ई.) में सेनुहरा के एक कायस्थ परिवार में हुआ। विरक्ति के कारण इन्होंने दीवान का पद त्याग दिया और पन्ना में रहने लगे। प्रसिद्ध महाराजा छत्रसाल इनके शिष्य बन गए थे। ज्ञानयोग, विज्ञानयोग, ध्यानयोग, विवेकदीपिका, ब्रह्मज्ञान, अनन्य प्रकाश, राजयोग, सिद्धांतबोध आदि ग्रंथों के ये प्रणेता माने जाते हैं। इनमें अद्वैत वेदांत के गूढ़ रहस्यों को सरल भाषा में प्रस्तुत किया गया है। दुर्गा सप्तशती का हिंदी पद्यानुवाद भी इन्होंने किया है। ये संत कवि माने जाते हैं लेकिन संतों की सभी प्रवृतियाँ इनमें नहीं मिलतीं। इनके ग्रंथों में वैष्णव धर्म के साधारण देवताओं के प्रति आस्था के साथ-साथ कर्मकांड के प्रति झुकाव भी मिलता है। इनके काव्य ग्रंथों में दोहा, चौपाई, पद्धरि इत्यादि छंदों का प्रयोग हुआ है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ