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'''अदिति''' ऋग्वेद की मातृदेवी, जिसकी स्तुति में उस वेद में बीसों मंत्र कहे गए हैं। यह मित्रावरुण, अर्य्यमन्, रुद्रों, आदित्यों इंद्र आदि की माता हैं। इंद्र और आदित्यों को शक्ति अदिति से ही प्राप्त होती है। उसके मातृत्व की ओर संकेत अथर्ववेद (7.6.2) और वाजसनेयिसंहिता (21,5) में भी हुआ है। इस प्रकार उसका स्वाभाविक स्वत्व शिशुओं पर है और ऋग्वैदिक ऋषि अपने देवताओं सहित बार बार उसकी शरण जाता है एवं कठिनाइयों में उससे रक्षा की अपेक्षा करता है। (ऋ. 10, 100; 1,94,15)। | '''अदिति''' ऋग्वेद की मातृदेवी, जिसकी स्तुति में उस वेद में बीसों मंत्र कहे गए हैं। यह मित्रावरुण, अर्य्यमन्, रुद्रों, आदित्यों इंद्र आदि की माता हैं। इंद्र और आदित्यों को शक्ति अदिति से ही प्राप्त होती है। उसके मातृत्व की ओर संकेत अथर्ववेद (7.6.2) और वाजसनेयिसंहिता (21,5) में भी हुआ है। इस प्रकार उसका स्वाभाविक स्वत्व शिशुओं पर है और ऋग्वैदिक ऋषि अपने देवताओं सहित बार बार उसकी शरण जाता है एवं कठिनाइयों में उससे रक्षा की अपेक्षा करता है। (ऋ. 10, 100; 1,94,15)। | ||
अदिति अपने शाब्दिक अर्थ में बंधनहीनता और स्वतंत्रता की द्योतक है। दिति का अर्थ बँधकर और दा का बाँधना होता है। इसी से पाप के बंधन से रहित होना भी अदिति के संपर्क से ही संभव माना गया है। ऋग्वेद (1,162,22) में उससे पापों से मुक्त करने की प्रार्थना की गई है। कुछ अर्थों में उसे गो का भी पर्याय माना गया है। ऋग्वेद का वह प्रसिद्ध मंत्र (8,101,15)- मा गां अनागां अदिति वधिष्ट- गाय रूपी अदिति को न मारो। -जिसमें गोदत्या का निषेध माना जाता है-इसी अदिति से संबंध रखता है।-इसी मातृदेवी की उपासना के लिए किसी न किसी रूप में बनाई मृण्मूर्तियां प्राचीन काल में सिंधुनद से भूमध्यसागर तक बनी थीं। | अदिति अपने शाब्दिक अर्थ में बंधनहीनता और स्वतंत्रता की द्योतक है। दिति का अर्थ बँधकर और दा का बाँधना होता है। इसी से पाप के बंधन से रहित होना भी अदिति के संपर्क से ही संभव माना गया है। ऋग्वेद (1,162,22) में उससे पापों से मुक्त करने की प्रार्थना की गई है। कुछ अर्थों में उसे गो का भी पर्याय माना गया है। ऋग्वेद का वह प्रसिद्ध मंत्र (8,101,15)- मा गां अनागां अदिति वधिष्ट- गाय रूपी अदिति को न मारो। -जिसमें गोदत्या का निषेध माना जाता है-इसी अदिति से संबंध रखता है।-इसी मातृदेवी की उपासना के लिए किसी न किसी रूप में बनाई मृण्मूर्तियां प्राचीन काल में सिंधुनद से भूमध्यसागर तक बनी थीं। | ||
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०४:४१, १३ मार्च २०१३ का अवतरण
अदिति
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1 |
पृष्ठ संख्या | 97 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पाण्डेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1973 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | भगवतीशरण उपाध्याय। |
अदिति ऋग्वेद की मातृदेवी, जिसकी स्तुति में उस वेद में बीसों मंत्र कहे गए हैं। यह मित्रावरुण, अर्य्यमन्, रुद्रों, आदित्यों इंद्र आदि की माता हैं। इंद्र और आदित्यों को शक्ति अदिति से ही प्राप्त होती है। उसके मातृत्व की ओर संकेत अथर्ववेद (7.6.2) और वाजसनेयिसंहिता (21,5) में भी हुआ है। इस प्रकार उसका स्वाभाविक स्वत्व शिशुओं पर है और ऋग्वैदिक ऋषि अपने देवताओं सहित बार बार उसकी शरण जाता है एवं कठिनाइयों में उससे रक्षा की अपेक्षा करता है। (ऋ. 10, 100; 1,94,15)।
अदिति अपने शाब्दिक अर्थ में बंधनहीनता और स्वतंत्रता की द्योतक है। दिति का अर्थ बँधकर और दा का बाँधना होता है। इसी से पाप के बंधन से रहित होना भी अदिति के संपर्क से ही संभव माना गया है। ऋग्वेद (1,162,22) में उससे पापों से मुक्त करने की प्रार्थना की गई है। कुछ अर्थों में उसे गो का भी पर्याय माना गया है। ऋग्वेद का वह प्रसिद्ध मंत्र (8,101,15)- मा गां अनागां अदिति वधिष्ट- गाय रूपी अदिति को न मारो। -जिसमें गोदत्या का निषेध माना जाता है-इसी अदिति से संबंध रखता है।-इसी मातृदेवी की उपासना के लिए किसी न किसी रूप में बनाई मृण्मूर्तियां प्राचीन काल में सिंधुनद से भूमध्यसागर तक बनी थीं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ