"उग्रतारा": अवतरणों में अंतर

अद्‌भुत भारत की खोज
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
[अनिरीक्षित अवतरण][अनिरीक्षित अवतरण]
(''''उग्रतारा''' देवी भगवती का ही एक अन्य नाम है। इनकी उत्...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
No edit summary
 
पंक्ति १: पंक्ति १:
{{भारतकोश पर बने लेख}}
'''उग्रतारा''' देवी भगवती का ही एक अन्य नाम है। इनकी उत्पत्ति की कथा इस प्रकार कही गई है-
'''उग्रतारा''' देवी भगवती का ही एक अन्य नाम है। इनकी उत्पत्ति की कथा इस प्रकार कही गई है-



१३:२०, २ फ़रवरी २०१४ के समय का अवतरण

चित्र:Tranfer-icon.png यह लेख परिष्कृत रूप में भारतकोश पर बनाया जा चुका है। भारतकोश पर देखने के लिए यहाँ क्लिक करें

उग्रतारा देवी भगवती का ही एक अन्य नाम है। इनकी उत्पत्ति की कथा इस प्रकार कही गई है-

शुंभ और निशुंभ नाम के राक्षसों ने एक बार देवताओं के यज्ञ का अंश चुरा लिया और दिक्पाल बनकर सारी सृष्टि पर अत्याचार करने लगे। इनके अत्याचारों से दु:खी देवता हिमालय स्थित मातंग ऋषि के आश्रम में एकत्र हुए। ऋषि के परामर्श से उन्होंने महामाया भगवती का स्तवन किया, जिससे तुष्ट हो भगवती मातंग ऋषि की पत्नी के रूप में अवतरित हुईं। इन्हें ही 'उग्रतारा' कहा जाता है। मातंग की पत्नी के रूप में अवतार लेने से इन्हें 'मातंगी' संज्ञा भी प्राप्त है। उग्रतारा के शरीर से एक दिव्य तेज निकला, जिससे शुंभ-निशुंभ राक्षसों का नाश संभव हुआ। ये खड्ग, चामर, करपालिका और खर्पर लिए चतुर्भुजा, कृष्णवर्णा, सिर पर आकाश भेदी जटा, छाती पर सीप का हार और मुंडमालधारिणी थीं। इनके नेत्र रक्त वर्ण और वस्त्र काले रंग के थे। इनका बायाँ पैर शव के वक्ष पर तथा दायाँ सिंह की पीठ पर था।[१]

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. कैलास चन्द्र शर्मा, हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 2, पृष्ठ संख्या 52