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कुणिंद भारत का एक प्रख्यात प्राचीन जनसमूह जिसका पहली और चौथी शती ई. के बीच अपना महत्वपूर्ण गणराज्य था। महाभारत में इसका उल्लेख पैशाच, अंबष्ठ और बर्बर नामक पर्वतीय जातियों के साथ हुआ है और कहा गया है कि वे शैलोद नदी के दोनों तटों पर निवास करते थे। उनका प्रदेश काफी विस्तृत था और उनके कई सौ कुल थे। उन्होंने युधिष्ठिर को राजसूय यज्ञ के समय पिपीलिका सुवर्ण भेंट किया था। कुणिदों का उल्लेख रामायण और पुराणों में भी हुआ है। वराहमिहिर के कथनानुसार के उत्तरपूर्व के निवासी थे। उन्होंने इनका उल्लेख कश्मीर, कुलूत और सैरिन्ध के साथ किया है। टालमी ने की इनकी चर्चा की है। उसके कथनानुसार ये लोग विपाशा (व्यास), शतद्रु (सतलज), यमुना और गंगा नदियों के उद्गम प्रदेश में रहते थे। इस प्रकार साहित्यिक सूत्रों के अनुसार ये लोग हिमालय के पंजाब और उत्तरप्रदेश से सटे निचले हिस्से में रहते थे। संभवत: कुमायूँ और गढ़वाल का क्षेत्र इनके अधिकार में था।
कुणिंद भारत का एक प्रख्यात प्राचीन जनसमूह जिसका पहली और चौथी शती ई. के बीच अपना महत्वपूर्ण गणराज्य था। महाभारत में इसका उल्लेख पैशाच, अंबष्ठ और बर्बर नामक पर्वतीय जातियों के साथ हुआ है और कहा गया है कि वे शैलोद नदी के दोनों तटों पर निवास करते थे। उनका प्रदेश काफी विस्तृत था और उनके कई सौ कुल थे। उन्होंने युधिष्ठिर को राजसूय यज्ञ के समय पिपीलिका सुवर्ण भेंट किया था। कुणिदों का उल्लेख रामायण और पुराणों में भी हुआ है। वराहमिहिर के कथनानुसार के उत्तरपूर्व के निवासी थे। उन्होंने इनका उल्लेख कश्मीर, कुलूत और सैरिन्ध के साथ किया है। टालमी ने की इनकी चर्चा की है। उसके कथनानुसार ये लोग विपाशा (व्यास), शतद्रु (सतलज), यमुना और गंगा नदियों के उद्गम प्रदेश में रहते थे। इस प्रकार साहित्यिक सूत्रों के अनुसार ये लोग हिमालय के पंजाब और उत्तरप्रदेश से सटे निचले हिस्से में रहते थे। संभवत: कुमायूँ और गढ़वाल का क्षेत्र इनके अधिकार में था।



१४:०८, १४ फ़रवरी २०१४ के समय का अवतरण

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कुणिंद भारत का एक प्रख्यात प्राचीन जनसमूह जिसका पहली और चौथी शती ई. के बीच अपना महत्वपूर्ण गणराज्य था। महाभारत में इसका उल्लेख पैशाच, अंबष्ठ और बर्बर नामक पर्वतीय जातियों के साथ हुआ है और कहा गया है कि वे शैलोद नदी के दोनों तटों पर निवास करते थे। उनका प्रदेश काफी विस्तृत था और उनके कई सौ कुल थे। उन्होंने युधिष्ठिर को राजसूय यज्ञ के समय पिपीलिका सुवर्ण भेंट किया था। कुणिदों का उल्लेख रामायण और पुराणों में भी हुआ है। वराहमिहिर के कथनानुसार के उत्तरपूर्व के निवासी थे। उन्होंने इनका उल्लेख कश्मीर, कुलूत और सैरिन्ध के साथ किया है। टालमी ने की इनकी चर्चा की है। उसके कथनानुसार ये लोग विपाशा (व्यास), शतद्रु (सतलज), यमुना और गंगा नदियों के उद्गम प्रदेश में रहते थे। इस प्रकार साहित्यिक सूत्रों के अनुसार ये लोग हिमालय के पंजाब और उत्तरप्रदेश से सटे निचले हिस्से में रहते थे। संभवत: कुमायूँ और गढ़वाल का क्षेत्र इनके अधिकार में था।

इन लोगों के गणराज्य के जो सिक्के मिले हैं उनसे ज्ञात होता है कि वे लोग अपना शासन भगवान्‌ चित्रेश्वर (शिव) के नाम पर करते थे। चित्रेश्वर शिव: (भू-लिंग) का मंदिर कुमाऊँ में चित्रशिला नामक स्थान में आज भी विद्यमान है। ऐसा भी जान पड़ता है कि इस गणतंत्रीय राज्य ने राजतंत्र का रूप धारण कर लिया था। सिक्कों पर अमोघभूति नामक महाराज का उल्लेख मिलता है।

टीका टिप्पणी और संदर्भ