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१२:३५, २० जुलाई २०१५ के समय का अवतरण

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लेख सूचना
वचनेश मिश्र
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 10
पृष्ठ संख्या 373-374
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक रामप्रसाद त्रिपाठी
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1975 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी

वचनेश मिश्र का जन्म वैशाख शुक्ल 4, सन् 1932 वि. को फर्रुखाबाद में हुआ था। इनके पूर्वज पहले जिला हरदोई के नौगाँव (सुठिआएँ) में रहते थे पर बाद में फर्रुखाबाद चले आए थे। पुत्तूलाल वचनेश के पिता, मुन्नालाल पितामह, ठाकुरदास प्रपितामह और बद्रीप्रसाद वृद्ध प्रपितामह थे। चूँकि वचनेश अपने माता-पिता के एकमात्र पुत्र थे, इस कारण उनका लालन-पालन बड़े लाड़-प्यार के साथ किया गया। जब वे फारसी पढ़ रहे थे तब उनकी भेंट स्वामी दयानंद सरस्वती से हुई। स्वामी जी से प्रेरणा पाकर वचनेश ने फारसी छोड़ हिंदी संस्कृत को अपने अध्ययन का विषय बनाया। कुछ समय बाद 'ब्रजविलास' पढ़ना आरंभ किया। बाद में उससे प्रेरित हो वे भजनों का निर्माण करने लगे।

नौ वर्ष की उम्र में उनका विवाह हुआ। 10 वर्ष की उम्र से ही ये स्थानीय कवि सभा में भाग लेने लगे। इसके बाद उन्होंने 'भारत हितैषी' (सन्‌ 1887 ई. आरंभ) नामक मासिक निकाला। फतेहगढ़ से निकलनेवाले पत्र 'कवि चित्रकार' की समस्या पूर्तियाँ भी वे करने लगे, जिसके संपादक कुंदनलाल से उन्हें पर्याप्त प्रोत्साहन भी मिला था। कालाकांकर के राजा रामपाल सिंह के अनुरोध से 'हिंदोस्थान' में भी वे अपनी रचनाएँ भेजने लगे। राजा रामपालसिंह के बुलाने पर 16 वर्ष की अवस्था (सन्‌ 1891 ई.) में वचनेश जी कालाकांकर चले गए और राजा साहब को पिंगल पढ़ाने लगे। 'हिंदोस्थान' के संपादक के रूप में अब वे संपादकीय लेख और टिप्पणियाँ भी लिखने लगे। अब तक उनकी 'भारती-भूषण' और 'भर्तृहरि निर्वेंद' संज्ञक कृतियाँ निकल चुकी थीं। उन्होंने कालाकांकर में 'कान्यकुब्ज-सभा', 'कविसमाज', 'नाटक मंडली', 'धनुषयज्ञ लीला' और 'रामलीला' जैसी कई संस्थाओं की स्थापना कर उनमें खेले जाने के लिए अनेक नाटकों की रचना भी की थी।

कुछ दिनों बाद वचनेश जी सन्‌ 1908 ई. में राजा रामपालसिंह से रूठकर फर्रुखाबाद चले आए। यहाँ आकर उन्होंने शिवप्रसाद मिश्र और लालमणि भट्टाचार्य वकील के साझे में 'आनंद प्रेस' स्थापित किया जिसमें अंततोगत्वा उन्हें भारी आर्थिक हानि उठानी पड़ी। इसी प्रेस में उनकी 'अनन्य प्रकाश' और 'वर्णांग व्यवस्था' नामक कृतियाँ प्रकाशित हुई थीं।

हिंदी शब्दसागर का संपादन

इसी बीच वचनेश जी 'नागरीप्रचारिणी सभा' काशी द्वारा 'हिंदी शब्दसागर' के संपादन के लिए आमंत्रित किए गए। उन्हें काव्य ग्रंथों से शब्द चुनने एवं उनके अर्थ लिखने का काम सौंपा गया। तीन मास काम करने के बाद वे अस्वस्थ हो गए और बाद में स्वस्थ होकर कालाकांकर नरेश राजा राजपालसिंह के निधन के बाद उनके उत्तराधिकारी राजा रमेशसिंह के बुलाने पर पुन: कालाकांकर चले गए। वे अब निश्चित रूप से वहाँ रहकर पहले से ही निकलनेवाले पत्र 'सम्राट' का संपादन करने लगे।

फिर वे प्रतापगढ़ राज्य के सेक्रेटेरियट में काम करने लगे। पर इस नीरस काम में उनका मन न लगा और वे वहाँ से रायबरेली चले गये जहाँ 'मानस' पर हो रहे कार्य में तीन महीने तक रहकर सहायता पहुंचाई। तत्पचात्‌ वे फर्रुखाबाद आए और रस्तोगी विद्यालय के प्रधानाध्यापक बने।

वचनेश ही फर्रखाबाद से रसिक' नामक पत्र मार्च, 1924 ई. से निकाल रहे थे, पर बाद में गयाप्रसाद शुक्ल 'सनेही' के आग्रह से यह पत्र 'सुकवि' में सम्मिलित कर लिया गया। अब 'सुकवि' में उनकी कविताएँ निकलने लगीं। इसके बाद राजा रमेशसिंह के पुत्र अवधेशसिंह फिर साग्रह उन्हें कालाकाँकर लिवा ले गए।

मृत्यु

वचनेश मिश्र ने 'दरिद्रनारायण' (जुलाई, 1931 ई. से आरंभ) पत्र का संपादन किया। अवधेशसिंह की मृत्यु के बाद वे फिर फर्रुखाबाद आ गए और तब से अंत तक यहीं रहे। सन्‌ 1958 ई. में वचनेश जी गोलोकवासी हुए।

वचनेश जी उदार, शालीन, काव्यक्षेत्र में परंपरावादी, अछूतोद्वार पक्षपाती, विधवा-विवाह-समर्थक, तलाक प्रथा को प्रेम के लिए हानिकारक समझनेवाले, दहेज विरोधी और भूत प्रेत तथा शकुनअपशकुन आदि को व्यर्थ माननेवाले थे। चूँकि वचनेश जी ने आठ वर्ष की अवस्था से ही काव्यरचना आरंभ कर दी थी, इस कारण मृत्युकाल तक आते आते उन्होंने दर्जनों पुस्तकों का प्रणयन कर डाला था। स्वयं वचनेश जी अपने को 47 पुस्तकों का रचयिता बतलाते थे, जिनमें कई प्रसिद्ध हैं। उपर्युक्त रचनाओं में 'शबरी' का स्थान काफी ऊँचा है जिसके प्रौढ़ काव्यकौशल और मनोरम भावविधान की सराहना समस्त हिंदीजगत्‌ ने मुक्त कंठ से ही है। शृंगार, हास्य, नीति और भक्ति ही उनकी सारी कविता के प्रमुख विषय थे।

टीका टिप्पणी और संदर्भ