"महाभारत अनुशासनपर्व अध्याय 94 श्लोक 29-43": अवतरणों में अंतर

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<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: अनुशासनपर्व: चतुर्नवतितमो अध्याय: श्लोक 29-43 का हिन्दी अनुवाद </div>
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: अनुशासनपर्व: चतुर्नवतितमो अध्याय: श्लोक 29-43 का हिन्दी अनुवाद </div>


अम्बरीष ने कहा जो आपका कमल ले गया हो, वह क्रूर स्वभाव का हो जाये, स्त्रियों, बन्धु-बान्धवों और गौओं के प्रति अपने धर्म का पालन न करे तथा ब्रह्म हत्या के पाप का भागी हो। नारदजी ने कहा- जिसने आपके कमलों का अपहरण किया हो, वह देह रूपी घर का ही आत्मा समझे। मर्यादा का उल्लंघन करके शास्त्र पढ़े। स्वरहीन पद का उच्चारण करे और गुरूजनों का अपमान करता रहे, अर्थात उपयुक्त पापों का भागी बने । नाभाग बोले- जिसने आपके कमल चुराये हों, एसे सदा झूठ बोलने का, संतो के साथ विरोध करने का, और कीमत लेकर कन्या बेचने का पाप लगे। कवि ने कहा- जिसने आपका कमल लिया हो, उसे गौ का लात मारने का, सूर्य की ओर मुंह करके पेशाब करने का और शरणागत का त्याग देने का पाप लगे। विश्‍वामित्र बोले- जो आपका कमल चुरा ले गया हो, वह वैश्‍य का भृत्य होकर उसी के खेत में वर्षा में बाधा उपस्थित करे। राजा का पुरोहित हो और यज्ञ के अनधिकारी का यज्ञ कराने के लिये ऋत्विज बने, अर्थात इन पापों के फल का भागी हो। पर्वत ने कहा- जो आपका कमल ले गया हो, वह गांव का मुखिया हो जाये, गधे की सवारी पर चले तथा पेट भरने के लिये कुत्तों का साथ लेकर शिकार खेले।भरद्वाज ने कहा- जिसने आपके कमलों की चोरी की है, उस पापी को निर्दयी और असत्यवादी मनुष्यों में रहने वाला सारा-का-सारा पाप सदा ही प्राप्त होता रहे । अष्टक बोले- जो आपका कमल ले गया हो, वह राजा मन्दबुद्वि, स्वेच्छाचारी और पापात्मा होकर अधर्मपूर्वक इस पृथ्वी का शासन करे। गालव बोले- जो आपका कमल चुरा ले गया हो, वह महापापियों से भी बढ़कर अनादरणीय हो, स्वजनों का भी अपकार करे तथा दान देकर अपने ही मुख से उसका बखान करे। अरून्धती बोलीं- जिस स्त्री ने आकपा कमल लिया हो, वह अपने सास की निन्दा करे, पति के लिये अपने मन में दुर्भावना रखे और अकेली ही स्वादिष्ट भोजन किया करे, अर्थात इन सब पापों की फलभागिनी बने। बालखिल्य बोले- जो आपका कमल ले गया हो, वह अपनी जीविका के लिये गांव के दरवाजे पर एक पैर से खड़ा रहे और धर्म को जानते हुए भी उसका परित्याग करे। शुनः सख बोले- जो आपका कमल ले गया हो, वह द्विज होकर भी सवेरे और शाम को अग्निहोत्र की अवहेलना करके सुख से सोये तथा संन्यासी होकर भी मनमाना बर्ताव करे। अर्थात उपर्युक्त पापों के फल का भागी हो । सुरभि बोली- जो गाय आपका कमल ले गयी हो, उसके पैर बालों की रस्सी से बांधे जायें उसके दूध के लिये तांवे मिले हुए धातु का दोहन पात्र हो और वह दूसरे गाय के बछड़े से दुही जाये। भीष्मजी जी कहते हैं- कौरवेन्द्र। इस प्रकार जब सब लोग नाना प्रकार की अनेकानेक शपथ कर चुके, तब सहस्त्रनेत्र धारी देवराज इन्द्र बड़े प्रसन्न हुए और उन विप्रवर अगस्त्य को कुपित हुआ देख उनके सामने प्रकट हो गये। राजन।ब्रह्मर्षियों, देवर्षियों ओर राजर्षियों के बीच में कुपित हुए महर्षि अगस्त्य को संबोधित करके देवराज इन्द्र ने जो अपना अभिप्राय व्यक्त किया, उसे आज तुम मेरे मुख से यहां सुनो ।
अम्बरीष ने कहा जो आपका कमल ले गया हो, वह क्रूर स्वभाव का हो जाये, स्त्रियों, बन्धु-बान्धवों और गौओं के प्रति अपने धर्म का पालन न करे तथा ब्रह्म हत्या के पाप का भागी हो। नारदजी ने कहा- जिसने आपके कमलों का अपहरण किया हो, वह देह रूपी घर को ही आत्मा समझे। मर्यादा का उल्लंघन करके शास्त्र पढ़े। स्वरहीन पद का उच्चारण करे और गुरुजनों का अपमान करता रहे, अर्थात उपयुक्त पापों का भागी बने । नाभाग बोले- जिसने आपके कमल चुराये हों, उसे सदा झूठ बोलने का, संतो के साथ विरोध करने का, और कीमत लेकर कन्या बेचने का पाप लगे। कवि ने कहा- जिसने आपका कमल लिया हो, उसे गौ को लात मारने का, सूर्य की ओर मुंह करके पेशाब करने का और शरणागत को त्याग देने का पाप लगे। विश्‍वामित्र बोले- जो आपका कमल चुरा ले गया हो, वह वैश्‍य का भृत्य होकर उसी के खेत में वर्षा में बाधा उपस्थित करे। राजा का पुरोहित हो और यज्ञ के अनधिकारी का यज्ञ कराने के लिये ऋत्विज बने, अर्थात इन पापों के फल का भागी हो। पर्वत ने कहा- जो आपका कमल ले गया हो, वह गांव का मुखिया हो जाये, गधे की सवारी पर चले तथा पेट भरने के लिये कुत्तों का साथ लेकर शिकार खेले। भरद्वाज ने कहा- जिसने आपके कमलों की चोरी की है, उस पापी को निर्दयी और असत्यवादी मनुष्यों में रहने वाला सारा-का-सारा पाप सदा ही प्राप्त होता रहे । अष्टक बोले- जो आपका कमल ले गया हो, वह राजा मन्दबुद्वि, स्वेच्छाचारी और पापात्मा होकर अधर्मपूर्वक इस पृथ्वी का शासन करे। गालव बोले- जो आपका कमल चुरा ले गया हो, वह महापापियों से भी बढ़कर अनादरणीय हो, स्वजनों का भी अपकार करे तथा दान देकर अपने ही मुख से उसका बखान करे। अरुन्धती बोलीं- जिस स्त्री ने आपका कमल लिया हो, वह अपने सास की निन्दा करे, पति के लिये अपने मन में दुर्भावना रखे और अकेली ही स्वादिष्ट भोजन किया करे, अर्थात इन सब पापों की फलभागिनी बने। बालखिल्य बोले- जो आपका कमल ले गया हो, वह अपनी जीविका के लिये गांव के दरवाजे पर एक पैर से खड़ा रहे और धर्म को जानते हुए भी उसका परित्याग करे। शुनःसख बोले- जो आपका कमल ले गया हो, वह द्विज होकर भी सवेरे और शाम को अग्निहोत्र की अवहेलना करके सुख से सोये तथा संन्यासी होकर भी मनमाना बर्ताव करे। अर्थात उपर्युक्त पापों के फल का भागी हो । सुरभि बोली- जो गाय आपका कमल ले गयी हो, उसके पैर बालों की रस्सी से बांधे जायें उसके दूध के लिये तांबे मिले हुए धातु का दोहन पात्र हो और वह दूसरे गाय के बछड़े से दुही जाये। भीष्मजी जी कहते हैं- कौरवेन्द्र ! इस प्रकार जब सब लोग नाना प्रकार की अनेकानेक शपथ कर चुके, तब सहस्त्रनेत्र धारी देवराज इन्द्र बड़े प्रसन्न हुए और उन विप्रवर अगस्त्य को कुपित हुआ देख उनके सामने प्रकट हो गये। राजन ! ब्रह्मर्षियों, देवर्षियों ओर राजर्षियों के बीच में कुपित हुए महर्षि अगस्त्य को संबोधित करके देवराज इन्द्र ने जो अपना अभिप्राय व्यक्त किया, उसे आज तुम मेरे मुख से यहां सुनो ।


<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">इस प्रकार श्रीमहाभारत अनुशासनपर्व के अन्‍तगर्त दानधर्मपर्वमें शपथविधिनामक चौरानवाँ अध्‍याय पूरा हुआ।</div>
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">इस प्रकार श्रीमहाभारत अनुशासनपर्व के अन्‍तगर्त दानधर्मपर्वमें शपथविधिनामक चौरानवाँ अध्‍याय पूरा हुआ।</div>


{{लेख क्रम |पिछला=महाभारत अनुशासनपर्व अध्याय 94 श्लोक 14-28|अगला=महाभारत अनुशासनपर्व अध्याय 94 श्लोक 44-54}}
{{लेख क्रम |पिछला=महाभारत अनुशासनपर्व अध्याय 94 श्लोक 14-28|अगला=महाभारत अनुशासनपर्व अध्याय 94 श्लोक 44-54}}
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
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१२:५२, ७ जुलाई २०१५ का अवतरण

चतुर्नवतितमो (94) अध्याय :अनुशासनपर्व (दानधर्म पर्व)

महाभारत: अनुशासनपर्व: चतुर्नवतितमो अध्याय: श्लोक 29-43 का हिन्दी अनुवाद

अम्बरीष ने कहा जो आपका कमल ले गया हो, वह क्रूर स्वभाव का हो जाये, स्त्रियों, बन्धु-बान्धवों और गौओं के प्रति अपने धर्म का पालन न करे तथा ब्रह्म हत्या के पाप का भागी हो। नारदजी ने कहा- जिसने आपके कमलों का अपहरण किया हो, वह देह रूपी घर को ही आत्मा समझे। मर्यादा का उल्लंघन करके शास्त्र पढ़े। स्वरहीन पद का उच्चारण करे और गुरुजनों का अपमान करता रहे, अर्थात उपयुक्त पापों का भागी बने । नाभाग बोले- जिसने आपके कमल चुराये हों, उसे सदा झूठ बोलने का, संतो के साथ विरोध करने का, और कीमत लेकर कन्या बेचने का पाप लगे। कवि ने कहा- जिसने आपका कमल लिया हो, उसे गौ को लात मारने का, सूर्य की ओर मुंह करके पेशाब करने का और शरणागत को त्याग देने का पाप लगे। विश्‍वामित्र बोले- जो आपका कमल चुरा ले गया हो, वह वैश्‍य का भृत्य होकर उसी के खेत में वर्षा में बाधा उपस्थित करे। राजा का पुरोहित हो और यज्ञ के अनधिकारी का यज्ञ कराने के लिये ऋत्विज बने, अर्थात इन पापों के फल का भागी हो। पर्वत ने कहा- जो आपका कमल ले गया हो, वह गांव का मुखिया हो जाये, गधे की सवारी पर चले तथा पेट भरने के लिये कुत्तों का साथ लेकर शिकार खेले। भरद्वाज ने कहा- जिसने आपके कमलों की चोरी की है, उस पापी को निर्दयी और असत्यवादी मनुष्यों में रहने वाला सारा-का-सारा पाप सदा ही प्राप्त होता रहे । अष्टक बोले- जो आपका कमल ले गया हो, वह राजा मन्दबुद्वि, स्वेच्छाचारी और पापात्मा होकर अधर्मपूर्वक इस पृथ्वी का शासन करे। गालव बोले- जो आपका कमल चुरा ले गया हो, वह महापापियों से भी बढ़कर अनादरणीय हो, स्वजनों का भी अपकार करे तथा दान देकर अपने ही मुख से उसका बखान करे। अरुन्धती बोलीं- जिस स्त्री ने आपका कमल लिया हो, वह अपने सास की निन्दा करे, पति के लिये अपने मन में दुर्भावना रखे और अकेली ही स्वादिष्ट भोजन किया करे, अर्थात इन सब पापों की फलभागिनी बने। बालखिल्य बोले- जो आपका कमल ले गया हो, वह अपनी जीविका के लिये गांव के दरवाजे पर एक पैर से खड़ा रहे और धर्म को जानते हुए भी उसका परित्याग करे। शुनःसख बोले- जो आपका कमल ले गया हो, वह द्विज होकर भी सवेरे और शाम को अग्निहोत्र की अवहेलना करके सुख से सोये तथा संन्यासी होकर भी मनमाना बर्ताव करे। अर्थात उपर्युक्त पापों के फल का भागी हो । सुरभि बोली- जो गाय आपका कमल ले गयी हो, उसके पैर बालों की रस्सी से बांधे जायें उसके दूध के लिये तांबे मिले हुए धातु का दोहन पात्र हो और वह दूसरे गाय के बछड़े से दुही जाये। भीष्मजी जी कहते हैं- कौरवेन्द्र ! इस प्रकार जब सब लोग नाना प्रकार की अनेकानेक शपथ कर चुके, तब सहस्त्रनेत्र धारी देवराज इन्द्र बड़े प्रसन्न हुए और उन विप्रवर अगस्त्य को कुपित हुआ देख उनके सामने प्रकट हो गये। राजन ! ब्रह्मर्षियों, देवर्षियों ओर राजर्षियों के बीच में कुपित हुए महर्षि अगस्त्य को संबोधित करके देवराज इन्द्र ने जो अपना अभिप्राय व्यक्त किया, उसे आज तुम मेरे मुख से यहां सुनो ।

इस प्रकार श्रीमहाभारत अनुशासनपर्व के अन्‍तगर्त दानधर्मपर्वमें शपथविधिनामक चौरानवाँ अध्‍याय पूरा हुआ।


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