"महाभारत द्रोणपर्व अध्याय 183 श्लोक 1-23": अवतरणों में अंतर
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०७:१४, ७ जुलाई २०१५ का अवतरण
त्र्यशीत्यधिकशततम (183) अध्याय: द्रोणपर्व (घटोत्कचवध पर्व )
धृतराष्ट्र का पश्चात्ताप, संजय का उत्तर एवं राजा युधिष्ठिर का शोक और भगवान् श्रीकृष्ण तथा महर्षि व्यास द्वारा उसका निवारण
धृतराष्ट्र बोले- तात संजय! कर्ण, दुर्योधन और सुबल पुत्र शकुनि का तथा विशेषतः तुम्हारा इस विषय में महान् अन्याय है। यदि तुम लोग जानते थे कि यह शक्ति रणभूमि में सदा किसी एक ही वीर को मार सकती है तथा इन्द्रसहित सम्पूर्ण देवता भी न तो इसे रोक सकते हैं और न इसका आघात ही सह सकते हैं, तब तुम्हारे सुझाने से युद्ध आरमभ होने पर कर्ण ने पहले ही देवकीनन्दन श्रीकृष्ण अथवा अर्जुन पर वह शक्ति क्यों नहीं छोड़ी?
संजय ने कहा- प्रजानाथ! कुरूकुलश्रेष्ठ! प्रतिदिन संग्राम से लौटने पर रात्रि में हम लोगों की यही सलाह हुआ करती थी कि ‘कर्ण! तुम कल सवेरा होते ही श्रीकृष्ण अथवा अर्जुन पर यह शक्ति चला देना’। परंतु राजन्! प्रातःकाल आने पर देवता लोग कर्ण तथा अन्य योद्धाओं के उस विचार को पुनः नष्ट कर देते थे। मैं तो दैव (प्रारब्ध) को ही सबसे बड़ा मानता हूँ, जिससे कर्ण ने हाथ में आयी हुई शक्ति के द्वारा रणभूमि में कुन्ती कुमार अर्जुन अथवा देवकीनन्दन श्रीकृष्ण का वध नहीं किया। कर्ण के हाथ में स्थित हुई वह शक्ति कालरात्रि के समान शत्रुवध के लिये उद्यत थी, परंतु दैव के द्वारा बुद्धि मारी जाने के कारण देवमाया से मोहित हुए कर्ण ने इन्द्र की दी हुई उस शक्ति को देवकीनन्दन श्रीकृष्ण अथवा इन्द्र के समान पराक्रमी अर्जुन पर उने वध के लिये नहीं छोड़ा।
धृतराष्ट्र बोले- संजय! निश्चय ही तुम लोग दैव के द्वारा मारे गये थे। श्रीकृष्ण की अपनी बुद्धि से वह इन्द्र की शक्ति तिनके के समान घटोत्कच का वध करके चली गयी। अब तो मैं समझता हूँ कि उस दुर्नीति के कारण कर्ण, मेरे सभी पुत्र तथ्ज्ञा अन्य भूपाल यमलोक में जा पहुँचे। अब घटोत्कच के मारे जाने पर कौरवों तथा पाण्डवों में पुनः जिस प्रकार युद्ध आरम्भ हुआ, उसी का मुझसे वर्णन करो। प्रहार करने में कुशल जिन सृंजयों और पान्चालों ने अपनी सेना का व्यूह बनाकर द्रोणाचार्य पर धावा किया था, उन्होंने किस प्रकार संग्राम किया? भूरिश्रवा तथा जयद्रथ के वध से कुपित हो जब द्रोणाचार्य आये और जीवन का मोह छोड़कर पाण्डव-सेना में उसका मन्थन करते हुए प्रवेश करने लगे, उस समय जँभाई लेते हुए व्याघ्र तथा मुँह बाये हुए यमराज के समान बाणवर्षा करते हुए द्रोणाचार्य के सम्मुख पाण्डव् और सृंजय योद्धा कैसे आ सके? तात! अश्वत्थामा, कर्ण, कृपाचार्य तथा दुर्योधन आदि जो महारथी रणभूमि में आचार्य द्रोण की रक्षा करते थे, उन्होंने वहाँ क्या किया? संजय! द्रोणाचार्य को मार डालने की इच्छा वाले अर्जुन और भीमसेन पर युद्धस्थल में मेरे सैनिकों ने किस प्रकार आक्रमण किया? यह मुझे बताओ। सिंधुराज जयद्रथ के वध से अमर्ष में भरे हुए कौरवों तथा घटोत्कच के मारे जाने से अत्यन्त कुपित हुए पाण्डवों ने रात्रि में किस प्रकार युद्ध किया?
संजय ने कहा- राजन्! जब रात में कर्ण के द्वारा राक्षस घटोत्कच मारा गया, आपके सैनिक हर्ष में भरकर युद्ध की इच्छा से गर्जना करते हुए वेगपूर्वक आक्रमण करने लगे तथा पाण्डवसेना मारी जाने लगी, उस समय प्रगाढ़ रजनी में राजा युधिष्ठिर अत्यन्त दीन एवं दुखी हो गये। उन महाबाहु नरेश ने भीमसेन से इस प्रकार कहा- ‘महाबाहो! तुम्हीं दुर्योधन की सेना को रोको। घटोत्कच के मारे जाने से मेरे मन में महान् मोह छा गया है’। इस प्रकार भीम को आदेश देकर राजा युधिष्ठिर बारंबार सिकते हुए अपने रथ पर जा बैठे। उस समय उने मुख पर आँसुओं की धारा बह रही थी। वे कर्ण का पराक्रम देखकर घोर चिन्ता में डूब गये थे।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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