"महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 55 श्लोक 21-43": अवतरणों में अंतर

अद्‌भुत भारत की खोज
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
[अनिरीक्षित अवतरण][अनिरीक्षित अवतरण]
No edit summary
छो (Text replace - "{{महाभारत}}" to "{{सम्पूर्ण महाभारत}}")
पंक्ति १०: पंक्ति १०:
<references/>
<references/>
==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
{{महाभारत}}
{{सम्पूर्ण महाभारत}}
[[Category:कृष्ण कोश]] [[Category:महाभारत]][[Category:महाभारत भीष्मपर्व]]
[[Category:कृष्ण कोश]] [[Category:महाभारत]][[Category:महाभारत भीष्मपर्व]]
__INDEX__
__INDEX__

१३:०९, १९ जुलाई २०१५ का अवतरण

पञ्चपञ्चाशत्तम (55) अध्‍याय: भीष्म पर्व (भीष्‍मवध पर्व)

महाभारत: भीष्म पर्व: पञ्चपञ्चाशत्तम अध्याय: श्लोक 21-43 का हिन्दी अनुवाद

भरत श्रेष्ठ! उस समय कौरवों को अपने दुःसह एवं भयंकर अन्याय का परिणाम प्रत्यक्ष दिखायी देने लगा। किरीटधारी अर्जुन के शस्त्र समूहों से सब कुद आच्छादित हो जाने के कारण आकाश, दिशा, पृथ्वी और सूर्य किसी का भी भान नहीं होता था। उस रणभूमि में कितने ही रथ टूट गये, बहुतेरे हाथी नष्ट हो गये, कितने ही रथियों के घोडे़ मार डाले गये और कितने ही रथ-यूथपतियों के रथ भागते दिखायी दिये।अन्यान्य बहुत से रथी रथहीन होकर अंगद्भूषित भुजाओं में आयुध धारण किये जहां-तहां चारों ओर दौड़ते देखे जाते थे। महाराज! अर्जुन के भय से घुड़सवार घोड़ों को और हाथी सवार हाथियों को छोड़कर सब ओर भग चले।वहां बहुत से नरेश अर्जुन के सायकों से कटकर रथों, हाथियों और घोड़ों से गिरे और गिराये जाते हुए दृष्टिगोचर हो रहे थे। प्रजानाथ! अर्जुन ने उस रणक्षैत्र में अत्यन्त भयंकर रूप धारण किया था। उन्होंने अपने उग्रबाणों द्वारा योद्धाओं की ऊपर उठी हुई भुजाओं को, जिनमें गदा, खड़ग, प्रास, तूणीर, धनुष-बाण, अंकुश और ध्वजा-पताका आदि शोभा पा रहे थे, काट गिराया।आर्य! भरतनन्दन! भूपाल! उस रणभूमि में गिरे हुए उद्दीस परिघ, मुद्रर, प्रास, मिन्दिपाल, खड़ग, फरसे, तीखे तोमर, सुवर्णमय कवच, ध्वज, ढाल, सोने के डंडों से विभूषित छत्र, व्यंजन, चाबुक, जोते, कोडे़ और अंकुश ढेर-के-ढेर बिखरे दिखायी देते थे।भारत! उस समय आपकी सेना में कोई भी ऐसा पुष्ष नहीं थे, जो समर में शूरवीर अर्जुन का सामना करने के लिये किसी प्रकार आगे बढ़ सके। प्रजानाथ! उस युद्धऋभूमि में जो-जो वीर अर्जुन की ओर बढता था, वही-वही उनके पैने बाणों द्वारा परलोक पहुँचा दिया जाता था। तदनन्तर आपके सब योद्धा सब ओर भागने लगे। यह देख अर्जुन और भगवान श्री कृष्ण ने अपने श्रेष्ठ शंख बजाये। कौरव-सेना को इस प्रकार भागती देख समर भूमि में खउ़े हुए आपके ताऊ भीष्म ने वीरवर आचार्य द्रोण से मुस्कराते हुए से कहा- ‘यह श्री कृष्ण सहित बलवान वीर पाण्डूकुमार अर्जुन कौरव-सेना की वही दशा कर रहा है, जैसी उसे करनी चाहिये। ‘यह किसी प्रकार भी समर भूमि में जीता नहीं जा सकता, क्योंकि इसका रूप इस समय प्रलयकाल के यमराज-सा दिखायी दे रहा है। ‘यह विशाल सेना इस समय पीछे नहीं लौटायी जा सकती। देखिये, सारे सैनिक एक-दूसरे की देखा-देखी भागे जा रहे हैं। ‘इधर ये भगवान सूर्य सम्पूर्ण जगत् के नेत्रों की ज्योति सर्वथा समेटते हुए-से गिरिश्रेष्ठ अस्ताचल को जा पहूँचे हैं। ‘अतः नरश्रेष्ठ! मैं इस समय समस्त सैनिकों को युद्ध से हटा लेना ही उचित समझता हूं। हमारे सभी योद्धा थके-मांदे और डरे हुए हैं, अतः इस समय किसी तरह युद्ध नहीं कर सकेंगे। आचार्य प्रबर द्रोण से ऐसा कहकर महारथी भीष्म ने आपके समस्त सैनिकों को युद्धभूमि से लौटा लिया। तदनन्तर रथ, हाथी और घोड़ों सहित सोमक, पांचाल तथा पाण्डव वीर विजय पाकर बारंबार सिंहनाद करने लगे। वे सभी महारथी विजय सूचक वाद्यों की ध्वनि के साथ अत्यन्त हर्ष में भरकर नाचने लगे और अर्जुन को आगे करके शिविर की ओर चल दिये।।

इस प्रकार श्री महाभारत भीष्म पर्व के अन्तर्गत भीष्मवधपर्व में द्वितीय युद्ध दिवस में सेना को लौटाने से संबंध रखने वाला पचपनवां अध्याय पूरा हुआ।


« पीछे आगे »

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

साँचा:सम्पूर्ण महाभारत अभी निर्माणाधीन है।