"महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 145 भाग-31": अवतरणों में अंतर

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१३:१८, २० जुलाई २०१५ का अवतरण

पन्चचत्वारिंशदधिकशततम (145) अध्‍याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)

यमलोक तथा यहॉ के मार्गों का वर्णन,पापियों की नरकयातनाओं तथा कर्मानुसार विभिन्न योंनियों मे उनके उन्मका उल्लेख

महाभारत: अनुशासन पर्व: पन्चचत्वारिंशदधिकशततम अध्याय: भाग-31 का हिन्दी अनुवाद

इस प्रकार त्रिविध प्राणियों को लेकर वे उन्हें यमलोक में पहुँचाते हैं। महाभागे! वहाँ धर्म के आसन पर अपने तेज से प्रकाशित होते हुए अपनी सभा के सभापति के रूप में चतुर लोकपाल यम बैठे होते हैं। यमदूत उन्हें सूचना देकर अपने साथ लाये हुए प्राणी को दिखाते हैं। यमराज कई सहस्त्र सदस्यों से घिरे हुए अपनी सभा में विराजमान होते हैं। वे वहाँ आये हुए प्राणियों के शुभाशुभ कर्मों का ब्यौरेवार वर्णन सुनकर उनमें से किन्हीं का आदर करते हैं और किन्हीं को दण्ड देते हैं। यमलोक में गये हुए प्राणियों में से जो उत्तम होते हैं, उन्हें विधिपूर्वक अपनाकर स्वागतपूर्वक उनका कुशल-समाचार पूछकर यमराज उनकी पूजा करते हैं। उनके सत्कर्मों की भूरि-भूरि प्रशंसा करके यमराज उन्हें यह संदेश देते हैं कि ‘आपको अमुक पुण्य लोक में जाना है।’ यमराज की ऐसी आज्ञा पाने के पश्चात् वे स्वर्गलोक में जाते हैं। मध्यम कोटि के पुरूषों के कर्मों का यथावत् वर्णन सुनकर यमराज उनके लिये यह आज्ञा देते हैं कि ‘ये लोग फिर मनुष्यों में ही जन्म लें। पाशों में बँधे हुए जो अधम कोटि के प्राणी आते हैं, यमराज उनकी ओर आँख उठाकर देखते तक नहीं हैं। चाण्डाल के समान दिखायी देने वाले भयंकर यमदूत ही लोकपाल यम की आज्ञा से उन पापियों को यातना के स्थानों में ले जाते हैं। वे उन्हें विदीर्ण किये डालते हैं, भाँति-भाँति की पीड़ाएँ देते हैं, जहाँ-तहाँ घसीटकर ले जाते हैं तथा उन्हें कोसते हुए नीचे मुँह करके नरक के गड्ढों में गिरा देते हैं।। प्रिये! फिर उनके सिर पर ऊपर से संयामिनी शिलाएँ गिरायी जाती हैं तथा लोहे की सी चोंचवाले अत्यन्त भयंकर कौए और बगुले उन्हें नोच खाते हैं। दूसरे पापियों को यमदूत घोर असिपत्रवन में घुमाते हैं। वहाँ तीखी दाढ़ों वाले कुत्ते कुछ पापियों को काट खाते हैं। यमलोक में वैतरणी नामवाली एक नदी है, जो पानी की जगह मूत और रक्त बहाती है। ग्राहों से भरी होने के कारण वह बड़ी भयंकर जान पड़ती है। उसमें प्रवेश करना अत्यन्त कठित है। यमदूत इन पापियों को उसी नदी में डुबो देते हैं। प्यासे प्राणियों को उस वैतरणी का ही जल पिलाते हैं। वहाँ कितने ही काँटेदार सेमल के वृक्ष हैं। यमदूत कुछ पापियों को उन्हीं वृक्षों पर चढ़ाते हैं। जैसे कोल्हू में तिल पेरे जाते हैं, उसी प्रकार कितने ही पापी मशीन के चक्कों में पेरे जाते हैं। कितने ही अंगारों में डालकर जलाये जाते हैं। कुछ कुम्भीपाकों में पकाये जाते हैं, कुछ तपी हुई बालुकाओं में भूने जाते हैं और कितने ही पापी आरे आदि शस्त्रों द्वारा वृक्ष की भाँति चीरे जाते हैं। कितनों के शूलों द्वारा टुकड़े-टुकड़े कर दिये जाते हैं। कुछ पापियों के शरीरों में महीन सूइयाँ चुभोयी जाती हैं। दण्ड देने वाले यमदूत अपनी वाणी द्वारा सब ओर यह घोषित करते रहते हैं कि तूने अमुक पाप किया है, जिसके लिये यह दण्ड तुझे मिल रहा है।। इस प्रकार यातनाधीन शरीरों द्वारा यातना पाकर नारकी जीव उसके दुःख को सहते और अपने पाप को स्मरण करते हुए चीखते-चिल्लाते एवं रोते रहते हैं, किंतु किसी तरह उस यातना से छुटकारा नहीं पाते हैं। अपने किये हुए पाप को याद करके वे अत्यन्त संतप्त हो उठते हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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