"महाभारत सभा पर्व अध्याय 38 भाग 27": अवतरणों में अंतर

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<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: सभा पर्व: अष्टात्रिंश अध्याय: भाग 27 का हिन्दी अनुवाद </div>
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: सभा पर्व: अष्टात्रिंश अध्याय: भाग 27 का हिन्दी अनुवाद </div>


उन महलों में विशाल अट्टालिकाएँ बनी थीं, जिन पर चढ़ने के लिए मणिनिर्मित सीढ़ियाँ सुशोभित हो रही थीं। वहाँ रहने वाली प्रधान-प्रधान गन्धर्वों और असुरों की परम सुन्दरी प्यारी पुत्रियों ने उस स्वर्ग के समान प्रदेश में खड़े हुए अपराजित वीर भगवान् मधुसूदन को देखा। देखते-देखते ही उन सबने महाबाहु श्रीकृष्ण को घरे लिया। वे सभी स्त्रियाँ एक वेणी धारण किये गेरुए वस्त्र पहिने इन्द्रय संयमपूर्वक वहाँ तपस्या करती थीं। उस समय व्रत और संतापजनित शोक उनमें से किसी को पीड़ा नहीं दे सका। वे निर्मल रेशमी वस्त्र पहने हुए यदुवीर श्रीकृष्ण के पास जा उनके सामने हाथ जोड़कर खड़ी हो गयीं। उन कमलनयनी कामिनियों ने अपनी सम्पूर्ण इन्द्रियों के स्वामी श्रीहरि से इस प्रकार कहा। कन्याएँ बोलीं- पुरुषोत्तम! देवर्षि नारद ने हमसे कह रखा था कि ‘देवताओं का कार्य सिद्ध करने के लिये भगवान गोविन्द यहाँ पधारेंगे। ‘एवं वे सपरिवार नरकासुर, निशम्भ, मुर, दानव हयग्रीव तथा पंचजन को मारकर अक्षय धन प्राप्त करेंगे। ‘थोड़े ही दिनों में भगवान् यहाँ पधाकर तुम सब लोगों का इस संकट से उद्धार करेंगे।’ ऐसा कहरक परम बुद्धिमान् देवर्षि नारद यहाँ से चले गये। हम सदा आपका ही चिन्तन करती हुई घोर तपस्या में लग गयीं। हमारे मन में यह संकल्प उठता रता था कि कितना समय बीतने पर हमें महाबाहु माधव का दर्शन प्राप्त होगा। पुरुषोत्तम! यही संकल्प लेकर दानवों द्वारा सुरक्षित हो हम सदा तपस्या करती आ रही हैं। भगवन्! आप गान्धर्व विवाह की रीति से हमारे साथ विवाह करके हमारा प्रिय करें। हमारे पूर्वोक्त मनोरथ को जान कर भगवान् वायुदेव ने भी हम सबके प्रिय मनोरथ की सिद्धि के लिये कहा था कि ‘देवर्षि नारदजी ने जो कहा है, वह शीघ्र ही पूर्ण होगा’। भीष्मजी कहते हैं- युधिष्ठिर! देवताओं तथा गन्धर्वों ने देखा, वृषभ के समान विशाल नेत्रों वाले भगवान् श्रीकृष्ण उन परम सुन्दरी नारियों के समक्ष वैस ही खड़े थे, जैसे नयी गायों के आगे साँड़ हो। भगवान् के मुखचन्द्र को देखकर उन सबकी इन्द्रियाँ उल्लसित हो उठीं और हर्ष में भरकर महाबाहु श्रीकृष्ण से पुन: इस प्रकार बोलीं। कन्याओं ने कहा- बड़े हर्ष की बात है कि पूर्वकाल में वायुदेव ने तथा सम्पूर्ण भूतों के प्रति कृतज्ञता रखने वाले महर्षि नारदजी ने जो बात कही थी, वह सत्य हो गयी। उन्होंने कहा था कि ‘शंख, चक्र, गदा और खड्ग धारण करने वाले सर्वव्यापी नारायण भगवान् विष्णु भूमिपुत्र नरक को मारकर तुम लोगों के पति होंगे’। ऋषियों में प्रधान महात्मा नारद का वह वचन आज आपके दर्शन मात्र से सत्य होने जा रहा है, यह बड़े सौभाग्य की बात है। तभी तो आज हम आपके परम प्रिय चन्द्रतुल्य मुख का दर्शन कर रही हैं। आप परमात्मा के दर्शन मात्र से ही हम कृतार्थ हो गयीं। उन सब के ह्रदय में कामभाव का संचार हो गया था। उस समय यदुश्रेष्ठ श्रीकृष्ण ने उनसे कहा। श्रीभगवान बोले- विशाल नेत्रों वाली सुन्दरियों! जैसा तुम कहती हो, उसके अनुसार तुम्हारी सारी अभिलाषा पूर्ण हो जायगी। भीष्मजी कहते हैं- युधिष्ठिर! सेवकों द्वारा उन सब रत्नों को तथा देवतओं एवं राजाओं आदि की कन्याओं को द्वारका भेजर देवकीनन्दन भगवान श्रीकृष्ण ने उन उत्तम मणिपर्वत को शीघ्र ही गरुड़ी बाँह (पंख या पीठ) पर चढ़ा दिया।
उन महलों में विशाल अट्टालिकाएँ बनी थीं, जिन पर चढ़ने के लिए मणिनिर्मित सीढ़ियाँ सुशोभित हो रही थीं। वहाँ रहने वाली प्रधान-प्रधान गन्धर्वों और असुरों की परम सुन्दरी प्यारी पुत्रियों ने उस स्वर्ग के समान प्रदेश में खड़े हुए अपराजित वीर भगवान् मधुसूदन को देखा। देखते-देखते ही उन सबने महाबाहु श्रीकृष्ण को घरे लिया। वे सभी स्त्रियाँ एक वेणी धारण किये गेरुए वस्त्र पहिने इन्द्रय संयमपूर्वक वहाँ तपस्या करती थीं। उस समय व्रत और संतापजनित शोक उनमें से किसी को पीड़ा नहीं दे सका। वे निर्मल रेशमी वस्त्र पहने हुए यदुवीर श्रीकृष्ण के पास जा उनके सामने हाथ जोड़कर खड़ी हो गयीं। उन कमलनयनी कामिनियों ने अपनी सम्पूर्ण इन्द्रियों के स्वामी श्रीहरि से इस प्रकार कहा। कन्याएँ बोलीं- पुरुषोत्तम! देवर्षि नारद ने हमसे कह रखा था कि ‘देवताओं का कार्य सिद्ध करने के लिये भगवान गोविन्द यहाँ पधारेंगे। ‘एवं वे सपरिवार नरकासुर, निशम्भ, मुर, दानव हयग्रीव तथा पंचजन को मारकर अक्षय धन प्राप्त करेंगे। ‘थोड़े ही दिनों में भगवान् यहाँ पधाकर तुम सब लोगों का इस संकट से उद्धार करेंगे।’ ऐसा कहरक परम बुद्धिमान देवर्षि नारद यहाँ से चले गये। हम सदा आपका ही चिन्तन करती हुई घोर तपस्या में लग गयीं। हमारे मन में यह संकल्प उठता रता था कि कितना समय बीतने पर हमें महाबाहु माधव का दर्शन प्राप्त होगा। पुरुषोत्तम! यही संकल्प लेकर दानवों द्वारा सुरक्षित हो हम सदा तपस्या करती आ रही हैं। भगवन्! आप गान्धर्व विवाह की रीति से हमारे साथ विवाह करके हमारा प्रिय करें। हमारे पूर्वोक्त मनोरथ को जान कर भगवान् वायुदेव ने भी हम सबके प्रिय मनोरथ की सिद्धि के लिये कहा था कि ‘देवर्षि नारदजी ने जो कहा है, वह शीघ्र ही पूर्ण होगा’। भीष्मजी कहते हैं- युधिष्ठिर! देवताओं तथा गन्धर्वों ने देखा, वृषभ के समान विशाल नेत्रों वाले भगवान् श्रीकृष्ण उन परम सुन्दरी नारियों के समक्ष वैस ही खड़े थे, जैसे नयी गायों के आगे साँड़ हो। भगवान् के मुखचन्द्र को देखकर उन सबकी इन्द्रियाँ उल्लसित हो उठीं और हर्ष में भरकर महाबाहु श्रीकृष्ण से पुन: इस प्रकार बोलीं। कन्याओं ने कहा- बड़े हर्ष की बात है कि पूर्वकाल में वायुदेव ने तथा सम्पूर्ण भूतों के प्रति कृतज्ञता रखने वाले महर्षि नारदजी ने जो बात कही थी, वह सत्य हो गयी। उन्होंने कहा था कि ‘शंख, चक्र, गदा और खड्ग धारण करने वाले सर्वव्यापी नारायण भगवान् विष्णु भूमिपुत्र नरक को मारकर तुम लोगों के पति होंगे’। ऋषियों में प्रधान महात्मा नारद का वह वचन आज आपके दर्शन मात्र से सत्य होने जा रहा है, यह बड़े सौभाग्य की बात है। तभी तो आज हम आपके परम प्रिय चन्द्रतुल्य मुख का दर्शन कर रही हैं। आप परमात्मा के दर्शन मात्र से ही हम कृतार्थ हो गयीं। उन सब के ह्रदय में कामभाव का संचार हो गया था। उस समय यदुश्रेष्ठ श्रीकृष्ण ने उनसे कहा। श्रीभगवान बोले- विशाल नेत्रों वाली सुन्दरियों! जैसा तुम कहती हो, उसके अनुसार तुम्हारी सारी अभिलाषा पूर्ण हो जायगी। भीष्मजी कहते हैं- युधिष्ठिर! सेवकों द्वारा उन सब रत्नों को तथा देवतओं एवं राजाओं आदि की कन्याओं को द्वारका भेजर देवकीनन्दन भगवान श्रीकृष्ण ने उन उत्तम मणिपर्वत को शीघ्र ही गरुड़ी बाँह (पंख या पीठ) पर चढ़ा दिया।


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१२:०२, २९ जुलाई २०१५ का अवतरण

अष्टात्रिंश (38) अध्‍याय: सभा पर्व (अर्घाभिहरण पर्व)

महाभारत: सभा पर्व: अष्टात्रिंश अध्याय: भाग 27 का हिन्दी अनुवाद

उन महलों में विशाल अट्टालिकाएँ बनी थीं, जिन पर चढ़ने के लिए मणिनिर्मित सीढ़ियाँ सुशोभित हो रही थीं। वहाँ रहने वाली प्रधान-प्रधान गन्धर्वों और असुरों की परम सुन्दरी प्यारी पुत्रियों ने उस स्वर्ग के समान प्रदेश में खड़े हुए अपराजित वीर भगवान् मधुसूदन को देखा। देखते-देखते ही उन सबने महाबाहु श्रीकृष्ण को घरे लिया। वे सभी स्त्रियाँ एक वेणी धारण किये गेरुए वस्त्र पहिने इन्द्रय संयमपूर्वक वहाँ तपस्या करती थीं। उस समय व्रत और संतापजनित शोक उनमें से किसी को पीड़ा नहीं दे सका। वे निर्मल रेशमी वस्त्र पहने हुए यदुवीर श्रीकृष्ण के पास जा उनके सामने हाथ जोड़कर खड़ी हो गयीं। उन कमलनयनी कामिनियों ने अपनी सम्पूर्ण इन्द्रियों के स्वामी श्रीहरि से इस प्रकार कहा। कन्याएँ बोलीं- पुरुषोत्तम! देवर्षि नारद ने हमसे कह रखा था कि ‘देवताओं का कार्य सिद्ध करने के लिये भगवान गोविन्द यहाँ पधारेंगे। ‘एवं वे सपरिवार नरकासुर, निशम्भ, मुर, दानव हयग्रीव तथा पंचजन को मारकर अक्षय धन प्राप्त करेंगे। ‘थोड़े ही दिनों में भगवान् यहाँ पधाकर तुम सब लोगों का इस संकट से उद्धार करेंगे।’ ऐसा कहरक परम बुद्धिमान देवर्षि नारद यहाँ से चले गये। हम सदा आपका ही चिन्तन करती हुई घोर तपस्या में लग गयीं। हमारे मन में यह संकल्प उठता रता था कि कितना समय बीतने पर हमें महाबाहु माधव का दर्शन प्राप्त होगा। पुरुषोत्तम! यही संकल्प लेकर दानवों द्वारा सुरक्षित हो हम सदा तपस्या करती आ रही हैं। भगवन्! आप गान्धर्व विवाह की रीति से हमारे साथ विवाह करके हमारा प्रिय करें। हमारे पूर्वोक्त मनोरथ को जान कर भगवान् वायुदेव ने भी हम सबके प्रिय मनोरथ की सिद्धि के लिये कहा था कि ‘देवर्षि नारदजी ने जो कहा है, वह शीघ्र ही पूर्ण होगा’। भीष्मजी कहते हैं- युधिष्ठिर! देवताओं तथा गन्धर्वों ने देखा, वृषभ के समान विशाल नेत्रों वाले भगवान् श्रीकृष्ण उन परम सुन्दरी नारियों के समक्ष वैस ही खड़े थे, जैसे नयी गायों के आगे साँड़ हो। भगवान् के मुखचन्द्र को देखकर उन सबकी इन्द्रियाँ उल्लसित हो उठीं और हर्ष में भरकर महाबाहु श्रीकृष्ण से पुन: इस प्रकार बोलीं। कन्याओं ने कहा- बड़े हर्ष की बात है कि पूर्वकाल में वायुदेव ने तथा सम्पूर्ण भूतों के प्रति कृतज्ञता रखने वाले महर्षि नारदजी ने जो बात कही थी, वह सत्य हो गयी। उन्होंने कहा था कि ‘शंख, चक्र, गदा और खड्ग धारण करने वाले सर्वव्यापी नारायण भगवान् विष्णु भूमिपुत्र नरक को मारकर तुम लोगों के पति होंगे’। ऋषियों में प्रधान महात्मा नारद का वह वचन आज आपके दर्शन मात्र से सत्य होने जा रहा है, यह बड़े सौभाग्य की बात है। तभी तो आज हम आपके परम प्रिय चन्द्रतुल्य मुख का दर्शन कर रही हैं। आप परमात्मा के दर्शन मात्र से ही हम कृतार्थ हो गयीं। उन सब के ह्रदय में कामभाव का संचार हो गया था। उस समय यदुश्रेष्ठ श्रीकृष्ण ने उनसे कहा। श्रीभगवान बोले- विशाल नेत्रों वाली सुन्दरियों! जैसा तुम कहती हो, उसके अनुसार तुम्हारी सारी अभिलाषा पूर्ण हो जायगी। भीष्मजी कहते हैं- युधिष्ठिर! सेवकों द्वारा उन सब रत्नों को तथा देवतओं एवं राजाओं आदि की कन्याओं को द्वारका भेजर देवकीनन्दन भगवान श्रीकृष्ण ने उन उत्तम मणिपर्वत को शीघ्र ही गरुड़ी बाँह (पंख या पीठ) पर चढ़ा दिया।


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