"महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 145 भाग-32": अवतरणों में अंतर

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==पञ्चचत्वारिंशदधिकशततम (145) अध्‍याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)==  
==पञ्चचत्वारिंशदधिकशततम (145) अध्‍याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)==  
<h4 style="text-align:center;">यमलोक तथा यहॉ के मार्गों का वर्णन,पापियों की नरकयातनाओं तथा कर्मानुसार विभिन्न योंनियों मे उनके उन्मका उल्लेख </h4>
<h4 style="text-align:center;">यमलोक तथा यहॉ के मार्गों का वर्णन,पापियों की नरकयातनाओं तथा कर्मानुसार विभिन्न योंनियों मे उनके जन्मका उल्लेख </h4>
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: अनुशासन पर्व: पञ्चचत्वारिंशदधिकशततम अध्याय: भाग-32 का हिन्दी अनुवाद</div>
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: अनुशासन पर्व: पञ्चचत्वारिंशदधिकशततम अध्याय: भाग-32 का हिन्दी अनुवाद</div>



०८:१०, २७ जुलाई २०१५ के समय का अवतरण

पञ्चचत्वारिंशदधिकशततम (145) अध्‍याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)

यमलोक तथा यहॉ के मार्गों का वर्णन,पापियों की नरकयातनाओं तथा कर्मानुसार विभिन्न योंनियों मे उनके जन्मका उल्लेख

महाभारत: अनुशासन पर्व: पञ्चचत्वारिंशदधिकशततम अध्याय: भाग-32 का हिन्दी अनुवाद

इस प्रकार पापाचारी प्राणियों को नाना प्रकार के दण्ड भोगने पड़ते हैं। वे बारंबार नरकों में विविध यातनाओं द्वारा पकाये जाते हैं। दूसरे लोग वहाँ यातनाएँ भोगकर उस पाप से मुक्त हो जाते हैं। जैसे अधिक तपया हुआ लोहा निर्मल एवं शुद्ध हो जाता है, उसी प्रकार मनुष्यों को जो नरकों में यातनाएँ प्राप्त होती हैं, वे उनके पाप-दोष का विनाष करने वाली मानी गयी हैं। उमा ने पूछा- भगवन्! महेश्वर! नरकों में पापियों को किस प्रकार दण्ड दिया जाता है? वे भयानक नरक कितने और कैसे हैं? श्रीमहेश्वर ने कहा- भामिनि! तुमने जो पूछा है, वह सब सुनो। पापाचारी प्राणियों के लिये भूमि के नीचे जो भयानक नरक बनाये गये हैं, वे मुख्यतः पाँच माने गये हैं। उनमें पहला रौरव नामक नरक है, जिसकी लंबाई सौ योजन है। उसकी चैड़ाई भी उतनी ही है। वह तमोमय नरक पाप के कारण प्राप्त होने वाली पीड़ाओं से परिपूर्ण है। उससे बड़ी दुर्गन्ध निकलती है, वह कठोर नरक क्रूर स्वभाव वाले कीटों से भरा हुआ है। वह अत्यन्त घोर, अवर्णनीय और सर्वथा प्रतिकूल है।। वे पापी उस नरक में सुदीर्घकाल तक खड़े रहते हैं। वहाँ सोने और बैठने की सुविधा नहीं है। विष्ठा की दुर्गन्ध में सने हुए उन पापियों को वहाँ के कीड़े खाते रहते हैं। ऐसे विशाल नरक में वे जब तक रहते हैं, उद्विग्न भाव से खड़े रहते हैं। साधारण यातनाओं की अपेक्षा नरक में दस गुना दुःख होता है। शुभेक्षणे! वहाँ आत्यन्तिक दुःख की प्राप्ति होती है। पापी जीव चीखते-चिल्लाते और राते हुए वहाँ की यातनाएँ भोगते हैं। वे दुःखों से छुटकारा पाने के लिये चारों ओर चक्कर काटते हैं, परंतु कोई भी उन्हें जानने वाला वहाँ नहीं होता। उस दुःख में तनिक भी अन्तर नहीं होता और न उसे छुड़ाने वाला ज्ञान ही उपलब्ध होता है। प्रिये! दूसरे नरक का नाम है महारौरव। वह लंबाई, चैड़ाई और दुःख में रौरव से दूना बड़ा है।। वहाँ तीसरा नरक है कण्टकावन, जो दुःख और लंबाई-चैड़ाई में पहले के दोनों नरकों से दुगुना बड़ा है। उसमें घोर महापातकयुक्त प्राणी प्रवेश करते हैं।। प्रिये! चैथा नरक अग्निकुण्ड के नाम से विख्यात है। यह पहले की अपेक्षा दूना दुःख देने वाला है। वहाँ महान् अमानुषिक दुःख भोगने पड़ते हैं। उन सभी में पापाचारी प्राणी दुःख भोगते हैं। प्रिये! पाँचवें नरक का नाम पंचकष्ट है। वहाँ जो महाघोर दुःख प्राप्त होता है, उसका यथावत् वर्णन नहीं किया जा सकता। पाँचों इन्द्रियों से असह्या होने के कारण उसका नाम ‘पंचकष्ट’ है। पापी पुरूष उन-उन नरकों में महान् दुःख भोगते हैं। वहाँ बड़े-बड़े जीव चिरकाल तक अत्यन्त घोर अमानुषिक दुःख भोगते हैं और महान् भूतों के समुदाय उस पापी पुरूष का अनुसरण करते हैं। प्रिये! पंचकष्ट के समान या उससे बढ़कर दुःख काई नहीं हैं पंचकष्ट को समस्त दुःखों का निवासस्थान बताया गया है। इस प्रकार इन नरकों में दुख भोगने वाले प्राणी निवास करते हैं। प्रिये! इन नरकों के सिवा और भी बहुत से अवीचि आदि नरक हैं। वेदना से पीडि़त हो अत्यन्त आतुर हुए नरक निवासी जीव राते-चिल्लाते रहते हैं। कोई चारों ओर चक्कर काटते हैं, कोई पृथ्वी पर पड़े-पड़े छटपटाते हैं और कोई आतुर होकर दौड़ते रहते हैं। कोई दौड़ते हुए प्राणी हाथ में त्रिशूल लिये हुए यमदूतों द्वारा जहाँ-तहाँ रोके जाते हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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