"महाभारत माहात्म्य 2": अवतरणों में अंतर

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अर्थात उसके लिये ये सब पाप नष्‍ट हो जाते है जो मनुष्‍य दोष बुद्वि का त्‍याग करके भरतवंशियों के महान जीवन की बातों को पढ़ते-सुनते है उनको यहां व्‍याधिका भी भय नहीं रहता, है फिर परलोक का भय तो रहता ही कहां से? यह भारत वेद सदृश (पंचमवेद) है, उत्‍तम है, साथ ही पवित्र भी है, श्रवण करने योग्‍य है, कानों को सुख देने वाला है, पवित्र श्‍लोक को बढाने वाला है। अतएव हे राजन ! जो मनुष्‍य यह भारत ग्रन्‍थ पढ़ने वाले को दान करता है उसको समुद्र पर्यन्‍त सारी पृथ्‍वी के दान का फल मिलता है। अठाराहों पुराण, समस्‍त धर्मशास्‍त्र, अंगों सहित वेद-इन सबकी बराबरी अकेला महाभारत कर सकता है। क्‍योंकि यह ग्रन्‍थ महत्‍वपूर्ण है और रहस्‍य रूपी असाधारण भार से युक्‍त हैं, शब्‍द के इस अर्थ को जानता है, वह सब पापों से छूट जाता है। ‘जय’ नामक इतिहास मोक्ष की इच्‍छा रखने वाले, ब्राह्मण, राजा और गर्भवती स्त्रियों को तो अवश्‍य सुनना चाहिये। इसके सुनने से स्‍वर्ग की इच्‍छा करने वाले को स्‍वर्ग, जय की इच्‍छा वाले को जय और गर्भवती स्‍त्री को पुत्र या बड़े भाग्‍य वाली कन्‍या प्राप्‍त होती है। वेद को जानने वाले बहुश्रुत ब्राह्मण को कोई सुवर्ण से मंढ़े सींगों वाली सौ गौ दान दे, और दूसरा कोई निरन्‍तर महाभारत की कथा सुनने को इन दोनों को समान फल की प्राप्‍ति होती है। व्‍यासदेव रचित इस (पच्‍चम) वेद रूप महाभारत का जो समाहित चित्‍त से आद्योपान्‍त श्रवण करता है उसके ब्रह्म हत्‍या आदि करोडों पाप नष्‍ट हो जाते है। फिर,इस इतिहास को सुनने वाले पुत्र माता-पिता के सेवको न्‍मुख,तथा सेवक अपने स्‍वामी का प्रिय कार्य करने वाले बन जाते है। इसमें महान भरतवंशियों की जीवन-कथा का वर्णन है, इससे भी इसको महाभारत कहते हैं। इस महाभारत में पवित्र देवताओं, राजर्षियों और पूर्ण स्‍वरूप ब्रह्मिर्षियों का वर्णन है; इसमें भगवान केशव के चरित्रों का कीर्तन है, इसमें भगवान महादेव तथा देवी पार्वती का वर्णन है। और इसमें अनेक माताओं वाले कार्तिकेय के जन्‍म का भी वर्णन है। फिर इस इतिहास में ब्राह्मणों तथा गौओं का माहात्‍म्‍य बतलाया गया है। और यह समस्‍त श्रुतियों का समरूप हैं अत: धर्म बुद्वि मनुष्‍यों को इसे पढ़ना-सुनना चाहिये। विजय की इच्‍छा करने वालों को यह ‘जय’ नामक इतिहास अवश्‍य सुनना चाहिये। इसके सुनने से मनुष्‍य सब पापों से वैसे ही मुक्‍त हो जाता है जैसे राहु के ग्रहण से चन्‍द्रमा मुक्‍त हो जाता है। इस महान पवित्र इतिहास में अर्थ और काम का ऐसा सर्वांग पूर्ण उपदेश है कि जिससे इसे पढ़ने-सुनने वाले की बुद्धि परमात्‍मा में परिनिष्ठित हो जाती है । अत्‍: महाभारत का श्रवण-कीर्तन सदा करना चाहिये। जिसके घर महाभारत का श्रवण-कीर्तन होता है। उसके विजय को हस्‍तगत ही है। श्रीकृष्‍ण द्वैपायन व्‍यास जी सत्‍यवादी, सर्वज्ञ, शास्‍त्र विधि के ज्ञाता, धर्म ज्ञान युक्‍त संत, अतीन्द्रियज्ञानी, पवित्र तपस्‍या के द्वारा शुद्वचित्‍त, ऐश्‍वर्यवान, सांख्‍ययोगी, योगनिष्‍ठ तथा अनेक शास्‍त्रों के ज्ञाता तथा दिव्‍यदृष्टि से देखकर ही महात्‍मा पाण्‍डव तथा अन्‍यान्‍य महान तेजस्‍वी एवं ऐश्‍वर्यशाली क्षत्रियों की कीर्ति को जगत में प्रसिद्व किया है। उन्‍ही नें ‘इतिहास’ नाम से प्रसिद्व इस पुण्‍यमय पवित्र महाभारत की रचना की है, इसी से यह ऐसा उत्‍तम हुआ है।  
अर्थात उसके लिये ये सब पाप नष्‍ट हो जाते है जो मनुष्‍य दोष बुद्वि का त्‍याग करके भरतवंशियों के महान जीवन की बातों को पढ़ते-सुनते है उनको यहां व्‍याधिका भी भय नहीं रहता, है फिर परलोक का भय तो रहता ही कहां से? यह भारत वेद सदृश (पंचमवेद) है, उत्‍तम है, साथ ही पवित्र भी है, श्रवण करने योग्‍य है, कानों को सुख देने वाला है, पवित्र श्‍लोक को बढाने वाला है। अतएव हे राजन ! जो मनुष्‍य यह भारत ग्रन्‍थ पढ़ने वाले को दान करता है उसको समुद्र पर्यन्‍त सारी पृथ्‍वी के दान का फल मिलता है। अठाराहों पुराण, समस्‍त धर्मशास्‍त्र, अंगों सहित वेद-इन सबकी बराबरी अकेला महाभारत कर सकता है। क्‍योंकि यह ग्रन्‍थ महत्‍वपूर्ण है और रहस्‍य रूपी असाधारण भार से युक्‍त हैं, शब्‍द के इस अर्थ को जानता है, वह सब पापों से छूट जाता है। ‘जय’ नामक इतिहास मोक्ष की इच्‍छा रखने वाले, ब्राह्मण, राजा और गर्भवती स्त्रियों को तो अवश्‍य सुनना चाहिये। इसके सुनने से स्‍वर्ग की इच्‍छा करने वाले को स्‍वर्ग, जय की इच्‍छा वाले को जय और गर्भवती स्‍त्री को पुत्र या बड़े भाग्‍य वाली कन्‍या प्राप्‍त होती है। वेद को जानने वाले बहुश्रुत ब्राह्मण को कोई सुवर्ण से मंढ़े सींगों वाली सौ गौ दान दे, और दूसरा कोई निरन्‍तर महाभारत की कथा सुनने को इन दोनों को समान फल की प्राप्‍ति होती है। व्‍यासदेव रचित इस (पच्‍चम) वेद रूप महाभारत का जो समाहित चित्‍त से आद्योपान्‍त श्रवण करता है उसके ब्रह्म हत्‍या आदि करोडों पाप नष्‍ट हो जाते है। फिर,इस इतिहास को सुनने वाले पुत्र माता-पिता के सेवको न्‍मुख,तथा सेवक अपने स्‍वामी का प्रिय कार्य करने वाले बन जाते है। इसमें महान भरतवंशियों की जीवन-कथा का वर्णन है, इससे भी इसको महाभारत कहते हैं। इस महाभारत में पवित्र देवताओं, राजर्षियों और पूर्ण स्‍वरूप ब्रह्मिर्षियों का वर्णन है; इसमें भगवान केशव के चरित्रों का कीर्तन है, इसमें भगवान महादेव तथा देवी पार्वती का वर्णन है। और इसमें अनेक माताओं वाले कार्तिकेय के जन्‍म का भी वर्णन है। फिर इस इतिहास में ब्राह्मणों तथा गौओं का माहात्‍म्‍य बतलाया गया है। और यह समस्‍त श्रुतियों का समरूप हैं अत: धर्म बुद्वि मनुष्‍यों को इसे पढ़ना-सुनना चाहिये। विजय की इच्‍छा करने वालों को यह ‘जय’ नामक इतिहास अवश्‍य सुनना चाहिये। इसके सुनने से मनुष्‍य सब पापों से वैसे ही मुक्‍त हो जाता है जैसे राहु के ग्रहण से चन्‍द्रमा मुक्‍त हो जाता है। इस महान पवित्र इतिहास में अर्थ और काम का ऐसा सर्वांग पूर्ण उपदेश है कि जिससे इसे पढ़ने-सुनने वाले की बुद्धि परमात्‍मा में परिनिष्ठित हो जाती है । अत्‍: महाभारत का श्रवण-कीर्तन सदा करना चाहिये। जिसके घर महाभारत का श्रवण-कीर्तन होता है। उसके विजय को हस्‍तगत ही है। श्रीकृष्‍ण द्वैपायन व्‍यास जी सत्‍यवादी, सर्वज्ञ, शास्‍त्र विधि के ज्ञाता, धर्म ज्ञान युक्‍त संत, अतीन्द्रियज्ञानी, पवित्र तपस्‍या के द्वारा शुद्वचित्‍त, ऐश्‍वर्यवान, सांख्‍ययोगी, योगनिष्‍ठ तथा अनेक शास्‍त्रों के ज्ञाता तथा दिव्‍यदृष्टि से देखकर ही महात्‍मा पाण्‍डव तथा अन्‍यान्‍य महान तेजस्‍वी एवं ऐश्‍वर्यशाली क्षत्रियों की कीर्ति को जगत में प्रसिद्व किया है। उन्‍ही नें ‘इतिहास’ नाम से प्रसिद्व इस पुण्‍यमय पवित्र महाभारत की रचना की है, इसी से यह ऐसा उत्‍तम हुआ है।  


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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
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१२:५८, २४ अगस्त २०१५ के समय का अवतरण

महाभारत माहात्म्य 2

महाभारत माहात्म्य 2 का हिन्दी अनुवाद

अर्थात उसके लिये ये सब पाप नष्‍ट हो जाते है जो मनुष्‍य दोष बुद्वि का त्‍याग करके भरतवंशियों के महान जीवन की बातों को पढ़ते-सुनते है उनको यहां व्‍याधिका भी भय नहीं रहता, है फिर परलोक का भय तो रहता ही कहां से? यह भारत वेद सदृश (पंचमवेद) है, उत्‍तम है, साथ ही पवित्र भी है, श्रवण करने योग्‍य है, कानों को सुख देने वाला है, पवित्र श्‍लोक को बढाने वाला है। अतएव हे राजन ! जो मनुष्‍य यह भारत ग्रन्‍थ पढ़ने वाले को दान करता है उसको समुद्र पर्यन्‍त सारी पृथ्‍वी के दान का फल मिलता है। अठाराहों पुराण, समस्‍त धर्मशास्‍त्र, अंगों सहित वेद-इन सबकी बराबरी अकेला महाभारत कर सकता है। क्‍योंकि यह ग्रन्‍थ महत्‍वपूर्ण है और रहस्‍य रूपी असाधारण भार से युक्‍त हैं, शब्‍द के इस अर्थ को जानता है, वह सब पापों से छूट जाता है। ‘जय’ नामक इतिहास मोक्ष की इच्‍छा रखने वाले, ब्राह्मण, राजा और गर्भवती स्त्रियों को तो अवश्‍य सुनना चाहिये। इसके सुनने से स्‍वर्ग की इच्‍छा करने वाले को स्‍वर्ग, जय की इच्‍छा वाले को जय और गर्भवती स्‍त्री को पुत्र या बड़े भाग्‍य वाली कन्‍या प्राप्‍त होती है। वेद को जानने वाले बहुश्रुत ब्राह्मण को कोई सुवर्ण से मंढ़े सींगों वाली सौ गौ दान दे, और दूसरा कोई निरन्‍तर महाभारत की कथा सुनने को इन दोनों को समान फल की प्राप्‍ति होती है। व्‍यासदेव रचित इस (पच्‍चम) वेद रूप महाभारत का जो समाहित चित्‍त से आद्योपान्‍त श्रवण करता है उसके ब्रह्म हत्‍या आदि करोडों पाप नष्‍ट हो जाते है। फिर,इस इतिहास को सुनने वाले पुत्र माता-पिता के सेवको न्‍मुख,तथा सेवक अपने स्‍वामी का प्रिय कार्य करने वाले बन जाते है। इसमें महान भरतवंशियों की जीवन-कथा का वर्णन है, इससे भी इसको महाभारत कहते हैं। इस महाभारत में पवित्र देवताओं, राजर्षियों और पूर्ण स्‍वरूप ब्रह्मिर्षियों का वर्णन है; इसमें भगवान केशव के चरित्रों का कीर्तन है, इसमें भगवान महादेव तथा देवी पार्वती का वर्णन है। और इसमें अनेक माताओं वाले कार्तिकेय के जन्‍म का भी वर्णन है। फिर इस इतिहास में ब्राह्मणों तथा गौओं का माहात्‍म्‍य बतलाया गया है। और यह समस्‍त श्रुतियों का समरूप हैं अत: धर्म बुद्वि मनुष्‍यों को इसे पढ़ना-सुनना चाहिये। विजय की इच्‍छा करने वालों को यह ‘जय’ नामक इतिहास अवश्‍य सुनना चाहिये। इसके सुनने से मनुष्‍य सब पापों से वैसे ही मुक्‍त हो जाता है जैसे राहु के ग्रहण से चन्‍द्रमा मुक्‍त हो जाता है। इस महान पवित्र इतिहास में अर्थ और काम का ऐसा सर्वांग पूर्ण उपदेश है कि जिससे इसे पढ़ने-सुनने वाले की बुद्धि परमात्‍मा में परिनिष्ठित हो जाती है । अत्‍: महाभारत का श्रवण-कीर्तन सदा करना चाहिये। जिसके घर महाभारत का श्रवण-कीर्तन होता है। उसके विजय को हस्‍तगत ही है। श्रीकृष्‍ण द्वैपायन व्‍यास जी सत्‍यवादी, सर्वज्ञ, शास्‍त्र विधि के ज्ञाता, धर्म ज्ञान युक्‍त संत, अतीन्द्रियज्ञानी, पवित्र तपस्‍या के द्वारा शुद्वचित्‍त, ऐश्‍वर्यवान, सांख्‍ययोगी, योगनिष्‍ठ तथा अनेक शास्‍त्रों के ज्ञाता तथा दिव्‍यदृष्टि से देखकर ही महात्‍मा पाण्‍डव तथा अन्‍यान्‍य महान तेजस्‍वी एवं ऐश्‍वर्यशाली क्षत्रियों की कीर्ति को जगत में प्रसिद्व किया है। उन्‍ही नें ‘इतिहास’ नाम से प्रसिद्व इस पुण्‍यमय पवित्र महाभारत की रचना की है, इसी से यह ऐसा उत्‍तम हुआ है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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