"भगवद्गीता -राधाकृष्णन पृ. 38": अवतरणों में अंतर
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१०:५७, २२ सितम्बर २०१५ के समय का अवतरण
हमारे लिए पूर्णता के लक्ष्य तक पहुँचने के, रक्षक सत्य को प्राप्त करने के तीन विभिन्न मार्ग हैं। वे हैं वास्तविकता का ज्ञान भगवान् की उपासना और भक्ति या अपने संकल्प को दिव्य प्रयोजन के अधीन कर देना (कर्म)। इन तीनों में अन्तर इस आधार पर किया गया है कि इनमें अलग-अलग सैद्धान्तिक, भावनात्मक और व्यावहारिक पक्ष पर बल दिया गया है मनुष्य विभिन्न प्रकारों के होते हैं: चिन्तनशील, भावुक या सक्रिय। परन्तु वे ऐकान्तिक रूप से इनमें से किसी एक ही प्रकार के नहीं होते। अन्त में जाकर ज्ञान, भक्ति और कर्म परस्पर मिल जाते हैं। परमात्मा अपने-आप में सत्, चित् और आनन्द, अर्थात् वास्तविक, सत्य और परम आनन्दमय है। जो लोग ज्ञान की खोज करते हैं, उनके लिए वह शाश्वत प्रकाश है, मध्यह्न के सूर्य की भाँति उज्ज्वल और देदीप्यमान् जिसमें अन्धकार का नाम भी नहीं है; जो पुण्य पाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं, उनके लिए वह शाश्वत पवित्रता है, स्थिर और समदर्शी; जो लोगा भावुक प्रकृति के हैं, उनके लिए वह शाश्वत प्रेम और पावनता का सौन्दर्य है। जिस प्रकार परमात्मा में ये तत्व आश्रित रहते हैं, उसी प्रकार मनुष्य भी आत्मा के समग्र जीवन को उद्देश्य बनाकर चलता है। भले ही तार्किक दृष्टि से ज्ञान, संकल्प और अनुभूति में अन्तर किया जा सके, परन्तु वास्तविक जीवन में और मन की एकता में इन तीनों में वस्तुतः अन्तर नहीं किया जा सकता। वे आत्मा की एक ही गति के विभिन्न पहलू है।[१]पूर्णता तक पहुँचने के लिए बौद्धिक मार्ग के रूप में ज्ञान आध्यात्मिक ज्ञान के रूप में ज्ञान से भिन्न वस्तु है। वास्तविक (ब्रह्म) का आत्मिक ज्ञान सेवा या भक्ति का, यह इस दृष्टि से ज्ञान का कार्य नहीं है, भले ही ये कार्य उसकी ओर ले जाने में कितने ही सहायक क्यों न हों।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ प्लौटिनस से तुलना कीजिएः “ऐसे विभिन्न मार्ग हैं, जिनके द्वारा यह (आध्यात्मिक ज्ञान का) लक्ष्य प्राप्त किया जा सकता है; सौन्दर्य का प्रेम, जो कवि को प्रेरणा देता है; किसी के प्रति भक्ति और ज्ञान का वह आरोहण, जो किसी दार्शनिक की महत्वाकांक्षा होता है; वह प्रेम और वे प्रार्थनाएं, जिसके साथ कोई श्रद्धालु और प्रेमी आत्मा अपनी नैतिक पवित्रता को पूर्णता की ओर ले जाती है। ये हैं वे महान् मार्ग, जो वास्तविक और विशिष्ट से ऊपर हमें उस ऊँचाई तक ले जाते हैं, जहां पहुँचकर हम असीम के निकट सान्निध्य में खड़े हो जाते हैं, जो इस प्रकार चमकता है, मानो आत्मा की गहराइयों में से चमक रहा हो।”—फ़्लैक्स के नाम पत्र। मधुसूदन का मतह कि पूर्ण भगवान् तक पहुँचने के लिए, जो सत् चित् और आनन्द रूप है, वेदों के तीन अनुभाग हैं, जिनमें कर्म, उपासना और ज्ञान के सम्बन्ध में बताया गया है। इसी प्रकार ये तीन अनुभाग गीता के अट्ठारह अध्यायों में भी रखे गए हैं।
सच्चिदानन्दरूप तत् पूर्ण विष्णोः पर पदम्, यत्प्राप्तये समारब्धा वेदाः काण्डत्रयात्मिकाः। कर्मापास्तिस्तथा ज्ञानमिति काण्डत्रयं क्रमात्, तद्रूपाअष्टादशाध्यायैर्गीता काण्डत्रयात्मिका।।