"भीमस्वामी": अवतरणों में अंतर
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'''भीमस्वामी''' छठी शताब्दी ई० के अंतिम चरण में इनकी स्थिति मानी जाती है। इनका 'रावणार्जुनीय काव्य' प्रसिद्ध है। 27 सर्गों वाले इस काव्य में कार्तवीर्य अर्जुन तथा रावण के युद्ध का वर्णन है। भट्टि काव्य की तरह इस काव्य में भी काव्य के बहाने संस्कृत व्याकरण के नियमों के उदाहरण उपस्थित किए गए हैं जिससे काव्यपक्ष कमजोर हो गया है। | '''भीमस्वामी''' छठी शताब्दी ई० के अंतिम चरण में इनकी स्थिति मानी जाती है। *इनका 'रावणार्जुनीय काव्य' प्रसिद्ध है। 27 सर्गों वाले इस काव्य में कार्तवीर्य अर्जुन तथा रावण के युद्ध का वर्णन है। *भट्टि काव्य की तरह इस काव्य में भी काव्य के बहाने संस्कृत व्याकरण के नियमों के उदाहरण उपस्थित किए गए हैं जिससे काव्यपक्ष कमजोर हो गया है। | ||
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११:४५, २३ सितम्बर २०१५ का अवतरण
भीमस्वामी
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 9 |
पृष्ठ संख्या | 34 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
लेखक | रामचंद्र पांडेय |
संपादक | फुलदेवसहाय वर्मा |
प्रकाशक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1967 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
भीमस्वामी छठी शताब्दी ई० के अंतिम चरण में इनकी स्थिति मानी जाती है। *इनका 'रावणार्जुनीय काव्य' प्रसिद्ध है। 27 सर्गों वाले इस काव्य में कार्तवीर्य अर्जुन तथा रावण के युद्ध का वर्णन है। *भट्टि काव्य की तरह इस काव्य में भी काव्य के बहाने संस्कृत व्याकरण के नियमों के उदाहरण उपस्थित किए गए हैं जिससे काव्यपक्ष कमजोर हो गया है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
[{भारत के कवि}]