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आशावरी
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1 |
पृष्ठ संख्या | 458 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पाण्डेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1964 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | डॉ. सद्गोपाल |
आशवरी (आसावरी) प्राचीन भारतीय संगीताचार्यों के अनुसार राग 'श्री' की एक प्रमुख रागिनी। ऋतु, समय और भावादि का वैज्ञानिक विश्लेषण करके प्रमुख 132 प्रकार के राग रागिनियों की कल्पना की गई थी किंतु आधुनिक विद्वानों ने यह विभेद हटाकर सबको राग की ही संज्ञा दी है। आशावरी वियोग श्रृंगार की रागिनी (राग) है और इसके गायन का समय दिन का द्वितीय प्रहर है। इसका लक्षण 'रागप्रकाशिका' नामक ग्रंथ (सन् 1899 ई.) में यो दिया है:
पीतम के बिरहा भरी, इत उत डोलत धाय।
ढूंढ़त भूतल शैल बन, कर मल मल पछिताय।।
अशावरी रागिनी के जो चित्र उपलब्ध हैं उनमें अपना जातीय परिधान पहने एक युवती बैठी सर्पों से खेल रही है और सामने दी बीनकार बैठे बीन बजा रहे हैं।
टीका टिप्पणी और संदर्भ