"एयर ब्रश": अवतरणों में अंतर

अद्‌भुत भारत की खोज
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
[अनिरीक्षित अवतरण][अनिरीक्षित अवतरण]
('{{लेख सूचना |पुस्तक नाम=हिन्दी विश्वकोश खण्ड 2 |पृष्ठ स...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
No edit summary
 
पंक्ति १: पंक्ति १:
{{भारतकोश पर बने लेख}}
{{लेख सूचना
{{लेख सूचना
|पुस्तक नाम=हिन्दी विश्वकोश खण्ड 2
|पुस्तक नाम=हिन्दी विश्वकोश खण्ड 2

११:४४, १४ जुलाई २०१८ के समय का अवतरण

चित्र:Tranfer-icon.png यह लेख परिष्कृत रूप में भारतकोश पर बनाया जा चुका है। भारतकोश पर देखने के लिए यहाँ क्लिक करें
लेख सूचना
एयर ब्रश
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 2
पृष्ठ संख्या 245
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक सुधाकर पाण्डेय
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1964 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक ओंकारनाथ उपाध्याय

एयर ब्रश एयर ब्रश (Air Brush) अथवा वायुकूर्चिका एक यंत्र है जो संपीडित वायु से चलता है और चित्र आदि रँगने के काम में आता है। इसे हम वायुतूलिका भी कह सकते हैं। बड़े एयर ब्रश को साधारणत: स्प्रेगन कहते हैं। इसे हम झींसीमार या सीकरयंत्र कह सकते हैं। इससे कपड़ा, फर्नीचर, मोटरकार, भवन, रेल पुल आदि रँगे जाते हैं। बड़े यंत्रों से सीमेंट मिश्रण भी दीवालों पर लगाया जा सकता है। इन सब यंत्रों का सिद्धांत यही है कि जब संपीडित वायु सँकरी नली से निकलती है तो वह अपने मार्ग में पड़नेवाले द्रव को झींसी या फुहार में बदल देती है और यह झींसी रँगी जानेवाली वस्तु पर जा चिपकती है। द्रव रंग, वार्निश, आदि दो प्रकार से वायुमार्ग में डाले जाते हैं। एक रीति में रंग की कटोरी को वायुनलिका के ऊपर रखकर रंग को वायुमार्ग में टपकने दिया जाता है। दूसरी रीति में कटोरी को नीचे रखा जाता है। इस दशा में दोनों ओर खुली एक नलिका का नीचेवाला सिरा रंग में डूबा रहता है और दूसरा सिरा वायुमार्ग में पहुँचा रहता है। वायु अपने वेग के कारण इस नलिका द्वारा रंग चूस लेती है। रंग आदि के पतला या गाढ़ा होने के अनुसार वायुकूर्चिका या झींसीमार पर छोटे बड़े का मुख लगाया जा सकता है।

चित्र:Air Brush.jpg


आरंभ में फोटोग्राफो को सुधारने के लिए छोटी वायुकूर्चिकाओं का असफल प्रयोग हुआ। इससे बारीक से बारीक रेखाएँ खींची जा सकती हैं और बढ़िया छाया और प्रकाश का काम भी हो सकता है। फुहार की मोटाई एक घुंडी या घोड़े (ट्रिगर) को दबाने से नियंत्रित की जाती है। अब अधिकांश रँगाई का काम झींसी से ही किया जाता है। इससे बहुत समय बचता है और रंग सर्वत्र एक समान चढ़ता है। कई झींसीमार लगे स्वयंचालित यंत्र में एक ओर से बिना रँगा मोटर घुसता है और दूसरी ओर से वही चमचमाता रँगा हुआ निकलता है, और इस क्रिया में एक मिनट से भी कम समय लगता है।

चित्र:2Air Brush.jpg

वायुसंपीडन के लिए साधारण विद्युत्‌ मोटर या इंजन से चलनेवाले संपीडकों का प्रयोग होता है, परंतु छोटे यंत्रों के लिए पदचालित पंपों से काम अच्छी तरह चल जाता है।


टीका टिप्पणी और संदर्भ